आइएसआइएस से बचाकर लाई गई पांडुलिपियां होंगी ऑनलाइन
- महमूदाबाद हाउस में पांडुलिपियों की सुरक्षा विषय पर आयोजित कार्यशाला का समापन - हिल संग
- महमूदाबाद हाउस में पांडुलिपियों की सुरक्षा विषय पर आयोजित कार्यशाला का समापन
- हिल संग्रहालय के प्रो. कोलंबा स्टीवर्ट करेंगे पांडुलिपियों का डिजीटलीकरण
जागरण संवाददाता, लखनऊ : अमेरिका हिल संग्रहालय व लाइब्रेरी के निदेशक प्रो. कोलंबा स्टीवर्ट राजा महमूदाबाद की पांडुलिपियों के संग्रह का जल्द ही डिजीटलीकरण करेंगे। इन पाडुलिपियों को इराक और सीरिया में दुनिया के शीर्ष आतंकी संगठन आइएसआइएस से बचाया गया है। शनिवार को कैसरबाग के महमूदाबाद हाउस में पांडुलिपियों की सुरक्षा विषय पर आयोजित दो दिवसीय कार्यशाला का समापन हो गया।
कार्यशाला के अंतिम दिन पांडुलिपियों के संरक्षण प्रो. कोलंबा स्टीवर्ट ने व्याख्यान दिया। उन्होंने बताया कि 2013 में इस्लाम सामग्री के रूप में डिजिटलीकरण शुरू करने का फैसला किया गया था। वर्तमान में तीन लाख इस्लामी पांडुलिपियों को ऑनलाइन करने का काम चल रहा है। आतंकी संगठन आइएसआइएस ने बेशकीमती इस्लामी पांडुलिपियों को नष्ट करना शुरू कर दिया था, लेकिन हम लोगों ने वर्ष 2009 से 2014 के बीच क्षेत्रीय लोगों और एनजीओ की सहायता से छह हजार में दो हजार पांडुलिपियों को बचाकर उनको ऑनलाइन करने का काम किया।
प्रो. स्टीवर्ट ने कहा कि दो साल में राजा महमूदाबाद की पांडुलिपियों को ऑनलाइन कर दिया जाएगा। फ्रांस के राष्ट्रीय संग्रहालय के पूर्व निदेशक प्रो. फ्रांसिस रिचर्ड ने कहा कि पांडुलिपियां केवल लिखित रूप में इतिहास की जानकारी नहीं देती, बल्कि वह एक वस्तु के रूप में बहुत कुछ बताती हैं। इससे हमें स्थानीय, क्षेत्रीय आरै राष्ट्रीय इतिहास की जानकारी मिलती है। फारसी की पांडुलिपियों में संगमरमर की तकनीक के विशेषज्ञ डॉ. जेक बेंसन ने कहा कि पांडुलिपियों की सुरक्षा और संरक्षण के लिए उचित पर्यावरण का होना बेहद जरूरी है। कार्यशाला में मैरीलैंड विश्वविद्यालय के प्रो. मैथ्यू मिलर और अशोका विश्वविद्यालय के प्रो. अली खान महमूदाबाद ने पांडुलिपियों के महत्व के साथ उनको संरक्षित रखने का तरीका बताया।
दिखी मुगल काल की झलक
कार्यशाला में मुगलकालीन बेशकीमती पांडुलिपियों की प्रदर्शनी भी लगाई गई। इसमें मुगल बादशाह शाहजहां और उनके परिवार से संबंधित दस्तावेजों को प्रदर्शित किया गया। वहीं 1780 में अरबी भाषा में लिखी दुआ की किताब सहीफा-ए-कामिला, फारसी के कई शायरों का संग्रह, मीर के दीवान, 16वीं सदी में फारसी में लिखी पैगंबर और फलीफा की जीवनी सहित कई महत्वपूर्ण दस्तावेज प्रदर्शित किए गए।