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नाक कटाने और ऊंची रखने वाली यूपी पुलिस, चंद हरकतें पूरे महकमे पर लगा देती है दाग

Manish Gupta Murder Case अवैध धंधों में लिप्त पुलिसकर्मियों की पहचान कर उनकी सूची बनाई जानी चाहिए जिनके संरक्षण में अवैध कारोबार फल-फूल रहा हो। इनका केवल निलंबन या स्थानांतरण ही नहीं होना चाहिए बल्कि मुकदमा दर्ज कर जेल भेजना चाहिए।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Mon, 18 Oct 2021 09:31 AM (IST)Updated: Mon, 18 Oct 2021 09:35 AM (IST)
नाक कटाने और ऊंची रखने वाली यूपी पुलिस, चंद हरकतें पूरे महकमे पर लगा देती है दाग
मनीष गुप्ता हत्याकांड के आरोपित मुख्य आरक्षी कमलेश यादव को बुधवार को गिरफ्तार करने के बाद न्यायालय ले जाती पुलिस।

लखनऊ, राजू मिश्र। Manish Gupta Murder Case चुनावी साल में प्रदेश सरकार की किरकिरी का कारण बनी गोरखपुर में कारोबारी मनीष गुप्ता की हत्या के जिम्मेदार सभी छह पुलिसकर्मी अब सलाखों के पीछे हैं। मनीष की पत्नी और प्रदेश सरकार के लिए यह थोड़ा राहत देने वाली बात हो सकती है। अभियुक्तों की गिरफ्तारी के साथ ही न्याय होता दिखने लगा है। दरअसल लखीमपुर कांड के बाद अचानक विपक्ष के निशाने पर आए सत्ता दल के लिए भी विरोध के स्वर मद्धिम करने में ये गिरफ्तारियां अहम भूमिका निभाएंगीं।

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सरकार अब कह सकती है कि चाहे कारोबारी मनीष की हत्या का मामला हो या लखीमपुर का, सभी प्रमुख आरोपित अब जेल में या पुलिस की गिरफ्त में हैं। इसके बावजूद कारोबारी मनीष की हत्या ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। इंटरनेट मीडिया पर ब्रांडिंग और समाजसेवा के कार्यो से जुड़कर कुछ पुलिस अधिकारी खाकी की सकारात्मक छवि निर्मित करते हैं, लेकिन ऐसी ही चंद हरकतें पूरे महकमे पर फिर दाग लगा देती हैं।

कानपुर के कारोबारी मनीष गुप्ता की 27-28 सितंबर की रात गोरखपुर के रामगढ़ ताल थाना क्षेत्र में स्थित होटल कृष्णा पैलेस में पीटकर हत्या कर दी गई थी। मनीष की पत्नी मीनाक्षी ने रामगढ़ ताल थाना के निरीक्षक जगत नारायण सिंह, दारोगा अक्षय मिश्र, राहुल दुबे व विजय यादव, मुख्य आरक्षी कमलेश यादव और सिपाही प्रशांत कुमार यानी छह लोगों पर हत्या का मुकदमा दर्ज कराया था। इन सब पर पहले 25- 25 हजार रुपये, फिर एक-एक लाख रुपये का इनाम घोषित किया गया था। गोरखपुर से शव लेकर कानपुर जाने के बाद परिवार ने अंतिम संस्कार करने से मना कर दिया। इसके बाद कानपुर पुलिस ने समझा-बुझाकर परिवार को 40 लाख रुपये मुआवजा, पत्नी मीनाक्षी को कानपुर विकास प्राधिकरण में ओएसडी के पद पर नौकरी और मामले की विवेचना कानपुर ट्रांसफर किए जाने की बात मुख्यमंत्री तक पहुंचाने और उनसे मुलाकात करवाने के आश्वासन देकर अंतिम संस्कार करवा दिया था।

कानपुर दौरे पर गए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने परिवार से मुलाकात के दौरान इन मांगों को पूर्ण करने का आश्वासन दिया। सभी आश्वासन पूर्ण भी किए गए। दारोगा विजय यादव ने अपने खिलाफ दर्ज मुकदमे को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी, लेकिन अब वह गिरफ्त में है। सबसे पहले 10 अक्टूबर को इंस्पेक्टर जगत नारायण सिंह और दारोगा अक्षय मिश्र को गिरफ्तार किया गया। उस दिन एसआइटी ने मुकदमे में साक्ष्य मिटाने और समूह में अपराध करने की धारा भी बढ़ाई थी। इसके बाद से ही गिरफ्तारी की कोशिशें और तेज कर दी गईं। इस मामले में अंतिम गिरफ्तारी शनिवार को विजय यादव की तब हुई जब वह नेपाल भागने की फिराक में था।

दरअसल, इस समय उत्तर प्रदेश पुलिस में दो तरह के पुलिसवाले हैं। एक खाकी की नाक कटाने वाले और दूसरे खाकी की नाक ऊंची करने वाले। इधर, नई भर्तियों के साथ पुलिस में कई ऐसे युवा आए हैं जो अपने कार्यो से लगातार पुलिस का मानवीय चेहरा बनाने की कोशिश कर रहे हैं। कोरोना काल में ऐसे तमाम पुलिसकर्मियों की कहानी मीडिया में आती रही जो आगे बढ़कर कर्तव्य निभा रहे थे। नाक कटाने वाली पुलिस का चेहरा कुछ समय पहले बिकरू कांड में नजर आया था, जिसमें पुलिस के ही लोग गैंगस्टर विकास दुबे के मुखबिर बने थे। यह मामला अब पुराना पड़ने लगा था कि गोरखपुर पुलिस का कारनामा सामने आ गया।

यह नाक कटाने वाली पुलिस वही है जो परंपरा से अपने थाना क्षेत्र के सभी अवैध कार्यो को संरक्षण देकर कराने के लिए कुख्यात रही हो। अवैध शराब का कारोबार, गांजा या हेरोइन की तस्करी, अवैध सोना गलाने का व्यवसाय, सूदखोरी और वसूली जैसे तमाम काम ऐसे ही नाक कटाने वाली पुलिस के संरक्षण में पलते हैं। इस मामले में दिक्कत यह है कि खाकी की अगुवाई करने वाले खादी के हिसाब से गोटें फिट करने में इतना व्यस्त रहते हैं कि पुलिसिंग के लिए जरूरी ऐसे मामलों की तरफ उनका ध्यान ही नहीं जाता। ध्यान तब जाता है जब बिकरू और गोरखपुर जैसी घटनाएं हो जाती हैं। इनका समय रहते उपचार जरूरी है। 


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