यहां तो नमो से ज्यादा है मलिहाबादी अखिलेश की उम्र
मलिहाबादी आम के बाग और बागबां के लिए किए जाएं खास प्रयास। इस बार मलिहाबाद क्षेत्र में आम का हाल कुछ खास नहीं।
लखनऊ, (आशुतोष मिश्र)। मलिहाबादी... मलिहाबादी...। किसी चौक-चौराहे पर गूंजते ये शब्द सुनकर एक खास स्वाद आपको जरूर याद आया होगा। वह स्वाद, जिसके लिए गर्मियों का गर्मजोशी से इंतजार होता है। इस बार यह स्वाद कम चखा जा सकेगा। मलिहाबाद में आम की पैदावार 15 से 20 फीसद ही हुई है। हालात बता रहे हैं कि आम का यह अनोखा स्वाद कायम रखने के लिए यहां के बाग और बागबां को अब खास ख्याल की दरकार है।
एक जून से 25 से 30 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से मलिहाबाद मेें आम की मंडी शुरू होगी। यहां से आम लदी 200 गाडिय़ां हर रोज बाहरी बाजारों के लिए जाएंगी। इसके लिए आढ़ते तैयार हो रही हैं। मलिहाबाद आम विक्रेता समिति के उपाध्यक्ष सालिक राम यादव के मुताबिक पैदावार देखते हुए इस बार मंडी 45 दिन ही चल सकेगी। बागबां के पास आढ़ती रकम एडवांस जमा रखते हैं, लेकिन इस बार की पैदावार से पूंजी निकलनी मुश्किल है। अभी से बागबां अगले सीजन में बकाया चुकाने के लिए कहने लगे हैं। इसके साथ ही सालिक राम यादव आसपास के बागों की ओर इशारा करते हैं। कहते हैं, यहां तो चौपट है। माल ब्लॉक में आम थोड़ा ठीक हुए हैं।
माल में 'नबी का पाना फार्म' में आम टूट रहे हैं। इसके बगल में आम की रखवाली कर रहे बाबा रामप्रसाद ने पैदावार 40 फीसद बताई। आम तोडऩे में व्यस्त प्रभुदयाल भी मानते हैं कि तीन में एक हिस्सा ही पैदावार है। मलिहाबाद लौटने पर आम के बागबां पद्मश्री हाजी कलीम उल्ला के पुत्र नजीम उल्ला खां से मुलाकात होती है। अपना बाग घुमाते हुए वह इस बार 15 से 20 फीसद पैदावार की बात कहते हैं। बोलने लगते हैं कि इस बार पता ही नहीं चलेगा कि मंडी में कब आम आया और कब खत्म हो गया। अभी रुज्जी और कटर कीट आम की फसल के लिए परेशानी का सबब बने हैं।
नमो से बड़े हैं अखिलेश
मलिहाबादी आम का स्वाद ही नहीं यहां के बाग भी खास हैं और हाजी कलीम उल्ला का बाग तो खासमखास है। ऐश्वर्या से सचिन तक इस बाग की कीर्ति बढ़ाते हैं। यहां अखिलेश की उम्र नमो से ज्यादा है। ये सब हाजी कलीम उल्ला की बनाई आम की खास प्रजातियां हैं। यह बाग पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो को काफी प्रिय रहे गुलाब फास आम की खुशबू से भी गमकता है। अटल खूब फल देते हैं तो वहीं अंबिका और मल्लिका सबको आकर्षित करते हैं। लीची छोटा तो राजावाला ढाई किलोग्राम तक बढऩे वाला आम भी यहां है।
इन दिक्कतों से चाहिए निजात
आम पैकेजिंग एक बड़ी समस्या है। इसके चलते किसान सीधे अपना आम दूर प्रदेशों तक नहीं भेज पाते। इससे उन्हें अपने मशहूर आम का अच्छा दाम नहीं मिल पाता। अच्छी दवाएं, बड़ा मुद्दा है। किसानों को जरूरी दवाएं सही गुणवत्ता और उचित परामर्श के साथ नहीं मिल पा रही हैं। भूगर्भ जल में गिरावट भी दिनोदिन आम का काम खराब कर रही है। नजीम उल्ला सरकार से इलाके से गायब तालाब को वजूद में लाने की अपील करते हैं। वह जोर देते हैं कि सरकार प्रयास करे की किसानों को आम की अच्छी कीमत मिल सके।
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