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यह है यूपी का हालः नेताजी ट्रस्ट बनाओ! सरकारी भवन एलॉट कराओ

ट्रस्ट के नाम पर चार हजार से अधिक वर्गमीटर जमीन है और मायावती के घोषित आवास में इसकी लगभग आधी। लेकिन, दोनों की सज्जा पर कितना खर्च किया गया, इसका कोई आंकड़ा नहीं है।

By Ashish MishraEdited By: Published: Wed, 09 May 2018 09:56 AM (IST)Updated: Wed, 09 May 2018 02:59 PM (IST)
यह है यूपी का हालः नेताजी ट्रस्ट बनाओ! सरकारी भवन एलॉट कराओ
यह है यूपी का हालः नेताजी ट्रस्ट बनाओ! सरकारी भवन एलॉट कराओ

लखनऊ (जेएनएन)। यह तो महज एक बानगी है। पूर्व मुख्यमंत्री मायावती सिर्फ 13 माल एवेन्यू आवास में ही नहीं रहतीं, उनकी रिहाइश मान्यवर कांशीराम स्मारक विश्राम स्थल ट्रस्ट में भी है जिसका गठन 2007 में उन्होंने सत्ता में आने के बाद किया था। इस ट्रस्ट के भवन के लिए गन्ना आयुक्त का दफ्तर तोड़कर उसे अपने घर में मिला लिया गया। ट्रस्ट के नाम पर चार हजार से अधिक वर्गमीटर जमीन है और मायावती के घोषित आवास में इसकी लगभग आधी। लेकिन, दोनों की सज्जा पर कितना खर्च किया गया, इसका कोई आंकड़ा नहीं है।

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पूर्व मंत्री शिवपाल यादव ओर से दाखिल एक आरटीआइ में यह तथ्य जरूर सामने आया था कि सज्जा पर 86 करोड़ खर्च हुए। हालांकि कितना आवास में और कितना ट्रस्ट में लगा, इसका विवरण राज्य संपत्ति विभाग के अधिकारी न दे सके। जाहिर है, सरकारी धन की लूट में ट्रस्ट भी एक जरिया बने। सुप्रीम कोर्ट के ताजा फैसले में भले ही सिर्फ पूर्व मुख्यमंत्रियों से सरकारी भवन खाली कराने के आदेश दिए गए हैं लेकिन इस निर्णय के दूरगामी परिणाम होंगे। चूंकि एक अगस्त, 2016 को सुप्रीम कोर्ट ऐसे ट्रस्टों से भी भवन खाली कराने का आदेश दे चुका है इसलिए आगे चलकर इन पर भी गाज गिर सकती है।

 

पूर्व मुख्यमंत्रियों में अखिलेश और मायावती ही नहीं, दूसरे दलों के नेताओं ने भी ट्रस्ट बना रखे हैैं और उन्हें माल एवेन्यू या विक्रमादित्य मार्ग जैसे पॉश इलाकों में भवन दिया गया है। उदाहरण के लिए सात बंदरिया बाग में जनेश्वर मिश्र ट्रस्ट का भवन है। यह भवन पहले अखिलेश यादव को आवास के लिए दिया जाना था लेकिन उन्होंने अपने लिए चार विक्रमादित्य मार्ग चुना। सपा में कुनबे का विवाद जब गंभीर रूप में चल रहा था तो अखिलेश ने वहीं से पार्टी की गतिविधियां संचालित की थीं।

संपत्ति विभाग ने सूची बनानी शुरू की

सूत्रों के अनुसार लगभग 300 ट्रस्ट और संस्थाओं के नाम मकान आवंटित हैं। इनमें एक बड़ी संख्या बकायेदारों की है। सरकार उन्हें नोटिस देने की तैयारी कर रही है। विभाग कोर्ट के फैसले पर विधि विशेषज्ञों की राय लेने में भी जुटा हुआ है और न्याय विभाग को इसके परीक्षण के लिए कहा गया है।

 

कई और ट्रस्ट सरकारी भवनों में

ट्रस्ट के नाम से सरकारी भवनों के नाम आवंटन राज्य सरकार ने नीतियों के तहत ही किए लेकिन उन पर सरकार का पैसा पानी की तरह बहा। लोहिया ट्रस्ट का गठन वैसे तो समाजवादी पार्टी के गठन से भी पहले हो गया था लेकिन मुलायम ने सत्ता में आने के बाद इसे विक्रमादित्य मार्ग पर ठिकाना दिया। इसी कड़ी में माल एवेन्यू पर लोकबंधु राजनारायण ट्रस्ट को भी शामिल किया जा सकता है। माल एवेन्यू में ही शिक्षक नेता महातम राय के आवास को उनके नाम के ट्रस्ट में तब्दील कर दिया और उनकी पुत्री कुसुम राय उसका उपयोग करती रहीं। पूर्व मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह के नाम भी ट्रस्ट का गठन है और सरकारी भवन मिला हुआ है। कांगे्रस नेता अम्मार रिजवी की अवध ग्रामीण कृषक सेवा उत्थान समिति को गौतमपल्ली में कार्यालय मिला हुआ है। समितियों की जांच में भाजपा के कई नेता भी इसी दायरे में आएंगे।

 

बाजार रेट से किराया अदा करते हैं ट्रस्ट

ट्रस्ट अपने बचाव में यह तर्क दे सकते हैं कि वह बाजार रेट से किराया दे रहे हैं। लेकिन अधिकतम किराया 72 हजार ही है जबकि उनके कब्जे में बड़ी-बड़ी जमीनें हैं। इसीलिए लोक प्रहरी की याचिका पर गत एक अगस्त 2016 को सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी संपत्तियों को इस तरह बांटने पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की थी। आदेश दिया था कि निजी ट्रस्टों और संस्थाओं को दिए गए सरकारी भवनों को सरकार जल्द से जल्द अपने कब्जे में ले।

खत्म होगी सरकारी अराजकता : एसएन शुक्ल

इस पूरे प्रकरण को अंजाम तक ले जाने वाली संस्था 'लोक प्रहरी के सचिव डॉ. एसएन शुक्ला कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले राज्य सरकारों की अराजकता पर लगाम लगेगा। कोर्ट की मंशा सरकारी धन के अपव्यय को रोकने की है। आखिर जनता के पैसे को कैसे किसी निजी या संस्था के हितों के लिए खर्च किया जा सकता है। पूर्व प्रमुख सचिव एसएन शुक्ल बताते हैं कि उत्तर प्रदेश की तर्ज पर राजस्थान सरकार ने भी नियम बनाकर पूर्व मुख्यमंत्रियों को आवास आवंटित किए थे। उनके लिए स्टाफ का प्रावधान भी किया गया। लेकिन हर प्रदेश को अब सीधा संदेश मिल गया है कि इस तरह की कोई सुविधा अनुमन्य नहीं की जा सकती।

सेवानिवृत्त आइएएस ने बताया कि राष्ट्र के लिए यह फैसला अहम है। संतोष की बात यह है कि 1996 में शुरू की गई यह मुहिम अब अंजाम तक पहुंची। उन्होंने बताया कि इस समय विधानसभा के पूर्व सचिव डीएन मित्तल ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल पूर्व मुख्यमंत्रियों को आवास देने के फैसले को चुनौती दी थी। बाद में सरकार ने नियमावली बना दी। इसके बाद मैैंने 2004 में जनहित याचिका दाखिल की। उन्होंने कहा कि चूंकि इस याचिका में ट्रस्टों के मामले को शामिल नहीं किया गया था इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व मुख्यमंत्रियों को केंद्र में रखकर ही निर्देश दिए। अब पूरे देश मेें कोई भी राज्य सरकार इस तरह के निर्णय नहीं ले सकेगी।


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