लखनऊ विश्वविद्यालय के शोधार्थी अंकित का सर्वे, यूपी व एमपी के आठ जिलों में मिले दुर्लभ प्रजाति के 174 राज गिद्ध
लखनऊ विश्वविद्यालय के जंतु विज्ञान विभाग के शोध छात्र अंकित सिन्हा की ओर से उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के आठ जिलों में तीन साल तक किए गए सर्वे में सिर्फ 174 लाल गिद्धों का बसेरा देखने को मिला है।
लखनऊ, अखिल सक्सेना। आपने लाल सिर वाले या राज गिद्ध के बारे में तो सुना ही होगा। अपनी भारी कद, काठी व लाल रंग वाले दुर्लभ प्रजाति के इन गिद्धों की संख्या भारत में बेहद कम है। लखनऊ विश्वविद्यालय के जंतु विज्ञान विभाग के शोध छात्र अंकित सिन्हा की ओर से उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के आठ जिलों में तीन साल तक किए गए सर्वे में सिर्फ 174 लाल गिद्धों का बसेरा देखने को मिला है। इनमें पांच साल के ऊपर उम्र के 132 और एक से सवा साल की उम्र के 42 लाल गिद्ध के बच्चे शामिल हैं।
विभिन्न प्रजाति के ये गिद्ध किसी समूह में न होकर अकेले या मादा के साथ ही देखे गए हैं। इंटरनेशनल जर्नल आफ जूलाजिकल इन्वेस्टिगेशन में इसका शोध पत्र प्रकाशित होने के साथ-साथ हाल ही में थीसिस भी जमा हो चुकी है। भारत में करीब नौ प्रकार के गिद्ध पाए जाते हैं। इनमें राज गिद्ध के साथ देसी गिद्ध, सफेद गिद्ध, काला गिद्ध, हिमालयी गिद्ध, यूरेशियाई गिद्ध, पतल चोंच गिद्ध सहित एक अन्य नाम शामिल है।
जंतु विज्ञान विभाग की प्रो. अमिता कनौजिया के निर्देशन में शोध कर रहे छात्र अंकित सिन्हा ने बताया कि गिद्धों पर सर्वे के लिए 2018 से डेटा इकट्ठा करना शुरू किया था। कुल 13 जिलों का चयन किया गया था। इनमें से सिर्फ आठ जिलों में ही राज गिद्ध देखने को मिले हैं।
300 मीटर से ऊंचाई पर मिले गिद्ध : मध्य प्रदेश के छतरपुर में 17, दमोह में 48, पन्ना में 45, सागर में 48, टीकमगढ़ में सात, उत्तर प्रदेश के चित्रकूट में पांच, झांसी में एक व ललितपुर में तीन राज गिद्ध पाए गए। 300 मीटर या उससे भी ऊंची जगहों पर लगे पेड़ों पर इनका घोंसला मिला। यह अन्य गिद्धों से अलग अकेले या मादा के साथ रहते हैं। खास बात यह है कि जहां भी राज गिद्ध घोंसला बनाता है, वहां से एक किलोमीटर के दायरे में दूसरा राज गिद्ध घोसला नहीं बना सकता। लाल सिर और काले पंख वाले नर राज गिद्ध की आंखें सफेद या हल्के पीले रंग में तथा मादा गिद्ध की आंखें भूरे रंग की होती हैं।
खाने के लिए राज गिद्ध का रहता है इंतजार : शोधार्थी अंकित के मुताबिक राज गिद्ध की अनुपस्थिति में कोई भी गिद्ध जानवर के शव को खोल नहीं सकता, क्योंकि इनके पंजे और चोंच बहुत मजबूत नहीं होते। यदि जानवर का शव किसी वजह से खुला नहीं है तो राज गिद्ध ही इसको अपनी चोंच से फाड़ता है। सबसे पहले खुद ही खाता है। उसके बाद बाकी गिद्ध खाना आरंभ करते हैं। सर्वेक्षण के पूर्व शोधपत्रों में भी इसका जिक्र है।