निर्दोषों को फंसाने में माहिर ‘लखनऊ पुलिस', ये चार मामले तो महज बानगी भर
कई अधिकारी भी शामिल इसीलिए बढ़ा है हौसला कार्रवाई न होने से नहीं लग पा रही पाबंदी।
लखनऊ, [शोभित मिश्र]। ओमेक्स रेजीडेंसी में छापेमारी करके गुडवर्क के बहाने डाका डालकर करोड़ों रुपये लूटने वाले पुलिसकर्मियों को तो सलाखों के पीछे पहुंचा दिया गया, लेकिन पूर्व के कई फर्जी गुडवर्क में कार्रवाई न होने से ही ऐसे में लुटेरे पुलिसकर्मियों के हौसले बढ़े हैं।
राजधानी पुलिस को जब भी मौका मिला, फर्जी गुडवर्क करके बेकसूर लोगों को जेल भिजवाने से पीछे नहीं हटी। बेकसूर लोगों को जेल भेजने के बाद उनके परिवार वालों को समाज में किन-किन दुश्वारियों का सामना करना पड़ता है, ये चार मामले उसको बताने के लिए पर्याप्त हैं। हालांकि राजधानी पुलिस को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। कई वरिष्ठ अधिकारियों का मानना है कि ऐसी घटनाओं पर तभी रोक लगेगी जब दोषी पुलिस अधिकारियों को सख्त सजा मिलेगी।
ये चार मामले तो महज बानगी भर
केस-1
फरवरी 2015 में चर्चित गौरी हत्याकांड में पुलिस ने हिमांशु के साथ साक्ष्य छिपाने के आरोप में भीम टोला तेलीबाग निवासी अनुज गौतम को गिरफ्तार किया था। 66 दिन के बाद विवेचना अधिकारी अनुज के खिलाफ कोई साक्ष्य ही नहीं जुटा सके। इसके चलते 15 अप्रैल को न्यायालय ने अनुज को बेगुनाह साबित करते हुए उसे बरी कर दिया। अनुज की बेगुनाह साबित होने के बावजूद उसे जेल भिजवाने वाले अधिकारियों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई।
केस-2
10 जनवरी 2017 को अकील के इशारे पर पारा थाने की पुलिस और क्राइम ब्रांच के पुलिसकर्मियों ने श्रवण साहू को फंसाने के लिए चार निदरेष युवकों कामरान, अफजल, तमीम और अनवर को गिरफ्तार कर जेल भेजा था। बेकसूर लोगों को जेल से तो रिहा कर दिया गया था, लेकिन अकील ने शूटरों से श्रवण साहू की हत्या करा दी थी। बेकसूर लोगों को फंसाने में 14 पुलिसकर्मियों पर मुकदमा हुआ था। सवा दो साल के बाद अभी तक सिर्फ एक दारोगा की गिरफ्तारी हो सकी है।
केस-3
वर्ष 2014 में गुडंबा स्थित एक गुटखा फैक्ट्री में क्राइम ब्रांच के पुलिसकर्मियों ने लाखों रुपये की लूटपाट की थी। इस मामले में सिर्फ एक पुलिसकर्मी को लाइन हाजिर किया गया था। पीड़ित के तहरीर देने के बावजूद न तो मुकदमा हुआ और न कोई कार्रवाई।
केस-4
एसओजी व चिनहट पुलिस की संयुक्त टीम ने 20 फरवरी 2013 को तीन लोगों को गिरफ्तार करके उनके कब्जे से पांच बाघ की खालें बरामद करने का दावा किया था। इस आरोप में पुलिस तीनों निदरेषों को जेल भेज दिया था। बाद में फोरेंसिक साइंस लैब की जांच में सभी खालें कुत्ते की निकलीं, तब जाकर पुलिस और एसओजी टीम का झूठ बेनकाब हो सका था।
क्या कहते हैं पूर्व डीजीपी ?
पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह का कहना है कि किसी निर्दोष को फर्जी गिरफ्तार करना आइपीसी की धारा 194, 195, 195 ए, 196 और 342 में संज्ञेय अपराध की श्रेणी में आता है। इसके अतिरिक्त मानवाधिकार का उल्लंघन है। ऐसे मामलों में समुचित मुआवजा देने का भी प्राविधान है। ऐसे मामलों में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने दस-दस लाख तक मुआवजा दिया है।