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मेट्रो के बगीचे की हरियाली बढ़ा रहा है गुटका, जानिए कैसे हुआ ये चमत्कार

दस हजार किलो गुटके से बनाई एक हजार किलो खाद, वेस्ट डीकम्पोज मशीन मेट्रो डिपो में फैला रही है हरियाली। गुटके से खाद बनाने के लिए मेट्रो के ट्रांसपोर्ट नगर डिपो में लगाई गई वेस्ट डीकम्पोज मशीन।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Sat, 16 Feb 2019 10:20 AM (IST)Updated: Sat, 16 Feb 2019 09:56 PM (IST)
मेट्रो के बगीचे की हरियाली बढ़ा रहा है गुटका, जानिए कैसे हुआ ये चमत्कार
मेट्रो के बगीचे की हरियाली बढ़ा रहा है गुटका, जानिए कैसे हुआ ये चमत्कार

लखनऊ, (अंशू दीक्षित)। मेट्रो स्टेशन पर सफर करने से पहले होने वाली चेकिंग में अक्सर कई यात्रियों की जेब से गुटका निकलता है। मेट्रोकर्मी उसे जमा कर लेते हैं और यात्री को आगे भेज देते हैं। गुटके से हाथ धो चुके यात्री के जेहन में शायद ही कभी ख्याल आया हो कि उस गुटके का मेट्रो वाले क्या करेंगे जो उन्होंने जमा करा लिया है। ये गुटका इस्तेमाल हो रहा है ट्रांसपोर्ट नगर के 43 एकड़ में फैले लखनऊ मेट्रो के बगीचे में। डीकम्पोज किया हुआ गुटका खाद की शक्ल लेकर यहां हरियाली बढ़ा रहा है। पिछले सवा साल में दस हजार किलो गुटके से एक हजार किलो खाद बनाई जा चुकी है।

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लखनऊ मेट्रो रेल कॉरपोरेशन (एलएमआरसी) स्टेशनों पर तलाशी के दौरान बरामद गुटके व मेस में बचने वाली खाद्य सामग्री से खाद बनाने का काम कर रहा है। एलएमआरसी ने खाद बनाने के लिए डिपो में वेस्ट डीकम्पोज मशीन लगा रखी है। मेट्रो अधिकारी कहते हैं कि जैविक खाद का प्रयोग ही डिपो में किया जाता है।

रैली, परीक्षा में ज्यादा बरामद होता है गुटका

मेट्रो अधिकारी बताते हैं कि रोज सफर करने वाले यात्रियों से गुटका कम बरामद होता है। रैली, परीक्षा व शहर में किसी प्रकार के आयोजन के कारण जब भीड़ होती है, उस दौरान मेट्रो स्टेशनों पर गुटका ज्यादा मिलता है। ऐसे में 23 किमी. रूट पर जब मेट्रो चलेगी, तो शुरुआती माह में गुटका ज्यादा मिलेंगे।

सात दिन लगते हैं खाद बनने में

वेस्ट डीकंपोज मशीन की मदद से सात दिन में खाद बनाई जा रही है। पार्क में बनाई गई पिट में यही खाद तीस दिन में बनती है, लेकिन मशीन के जरिए यह काम सात दिन में हो रहा है। वहीं गुटके से निकलने वाले रैपर को नगर निगम को दे दिया जाता है।

सराहनीय है पहल

केजीएमयू के पल्मोनरी मेडिसिन विभाग के एसो. प्रोफेसर डॉ. वेद प्रकाश कहते हैं, मुंह, फेफड़े और पेट का कैंसर फैलाने वाले गुटके से खाद बनाना एक सराहनीय पहल है। इससे पर्यावरण संरक्षण में मदद मिलेगी, साथ ही जितना गुटका खाद बनाने में इस्तेमाल हो गया, कम से कम उतना गुटका तो लोग खाने से बच गए।


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