स्वर्ण छत्र वाला पहला गुरुद्वारा बना लखनऊ का मानसरोवर, जानें-क्या है इसका इतिहास
विकास के इस डिजिटल दौर में हम भले ही कितने स्मार्ट हो जाएं लेकिन धर्म प्रति हमारी आस्था और विश्वास कभी कम नहीं होता। इसी आस्था और विश्वास का सशक्त उदाहरण शनिवार को लखनऊ के मानसरोवर गुरुद्वारे नजर आएगा।
लखनऊ, [जितेंद्र उपाध्याय]। विकास के इस डिजिटल दौर में हम भले ही कितने स्मार्ट हो जाएं, लेकिन धर्म प्रति हमारी आस्था और विश्वास कभी कम नहीं होता। इसी आस्था और विश्वास का सशक्त उदाहरण शनिवार को मानसरोवर गुरुद्वारे नजर आएगा। अमृतसर स्वर्ण मंदिर में मत्था टेकने के बाद गुरुद्वारे के अध्यक्ष संपूर्ण सिंह बग्गा की ओर से 30 अक्टूबर को गुरुद्वारे में सोने का छत्र चढ़ाया जाएगा। गुरु तेग बहादुर के 400 वें प्रकाशोत्सव को समर्पित आयोजन के डा. गुरमीत सिंह की मौजूद में 30 को यह छत्र गुरु ग्रंथ साहिब को चढ़ाया जाएगा। लखनऊ में स्थापित 42 गुरुद्वारों में यह पहला गुरुद्वारा होगा, जहां स्वर्ण छत्र में गुरु ग्रंथ साहिब विराजमान होंगे।
1708 में गुरु ग्रंथ साहिब को माना गया गुरुः सिखों के अंतिम गुरु गोविंद सिंह महाराज के शहीदी दिवस के साथ ही सात अक्टूबर 1708 से सिख समाज की ओर से गुरु ग्रंथ साहिब को गुरु माना गया। गुरुद्वारों में गुरुग्रंथ साहिब के प्रकाश के साथ ही धार्मिक आयोजन शुरू होते हैं। सिख समाज के जानकार डा. सत्येंद्र पाल सिंह ने बताया कि सिख समाज की ओर से सभी गुरुओं का प्रकाश पर्व और शहीदी दिवस मनाया जाता है। नानक शाही कैलेंडर के अनुसार तिथियों में बदलाव होता रहता है।
संग्रहालय की धार्मिक मान्यता भी हैः गुरुद्वारे की भांति संग्रहालय में भी प्रवेश की धार्मिक मान्यताओं का ख्याल रखा जाता है। शिरोपा के साथ ही जूता-चप्पनल निकालकर ही प्रवेश होता है। गुरुद्वारा मानसरोवर के अध्यक्ष संपूर्ण सिंह बग्गा ने बताया कि युवाओं को गुरुओं की जानकारी देने के लिए इसकी स्थापना की गई है। लखनऊ गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के अध्यक्ष राजेंद्र सिंह बग्गा ने बताया कि गुरुद्वारा नाका हिंडोला में स्थापित संग्रहालय गुरुओं के साथ ही सिख योद्धाओं की कार्यशैली और बहादुरी को भी को चित्रों के माध्यम से दिखाया गया है।
गुरुओं का प्रकाश और शहीदी दिवस
- गुरु नानक देव जी महाराज (15 अप्रैल 1469 से 22 सितंबर 1539)
- गुरु अंगद देव जी महाराज (31 मार्च 1504 से 29 मार्च 1552)
- गुरु अमरदास जी महाराज (5 मई 1479 से एक सितंबर 1574)
- गुरु रामदास जी महाराज (24 सितंबर 1534 से एक सितंबर 1581)
- गुरु अरजन देव जी महाराज (15 अप्रैल 1563 से 30 मई 1606)
- गुर हर गोविंद जी महाराज (19 जून 1595 से 28 फरवरी 1644)
- गुरु हरि राय जी महाराज (16 जनवरी 1630 से 6 अक्टूबर 1661)
- गुरु हरि किशन जी महाराज(7 जुलाई 1656 से 30 मार्च 1664)
- गुरु तेग बहादुर जी महाराज (एक अप्रैल 1621 से 11 नवंबर 1675)
- गुरु गोविंद सिंह जी महाराज(22 दिसंबर 1666 से 7 अक्टूबर 1708)
गुरुद्वारा यहियागंज में हस्तलिखित गुरु ग्रंथ साहिबः गुरुद्वारा यहियागंज के सचिव मनमोहन सिंह हैप्पी ने बताया कि बिहार के पटना साहिब में जन्मे गुरु गोविंद सिंह साहिब 1672 में छह वर्ष की आयु में अपनी माता माता गुजरी और माता कृपाल जी महाराज के साथ आनंदपुर साहिब से पटना साहिब जाते समय दो महीने 13 दिन गुरुद्वारा यहियागंज में ठहरे थे। यहीं नहीं इसी स्थान पर गुरु तेग बहादुर जी महाराज 1670 यहां आए थे और तीन दिन तक रुके थे। गुरु गोविंद सिंह द्वारा हस्त लिखित गुरु ग्रंथ साहिब भी गुरुद्वारे में मौजूद है। हुक्म नामे भी गुरुद्वारे की शोभा बढ़ा रहे हैं।