विरासत दिवस: हुसैनाबाद हैरिजटेज जोन, लाल रंग के पीछे की ‘काली’ हकीकत
विश्व विरासत दिवस हुसैनाबाद हैरिटेज जोन से लेकर कई एतिहासिक इमारतें अफसरों की लापरवाही का हुई शिकार।
लखनऊ [मुहम्मद हैदर]। आपसी तालमेल की कमी कहें या अधिकारियों की लापरवाही। एक ओर जहां दो वर्ष से अधिक समय होने के बाद भी हुसैनाबाद हैरिटेज जोन की कई योजनाएं अधूरी पड़ी हैं तो वहीं सतखंडा, बड़ा तालाब व ऐतिहासिक घंटाघर पार्क सहित जो हिस्सा करोड़ों रुपये खर्च कर संवारा गया था, वह भी अब रखरखाव की कमी की वजह से फिर से पहले की तरह बदरंग होने लगा है। जिम्मेदारों की यह लापरवाही कहीं इतिहास पर भारी न पड़ जाए।
नवाबी आनबान सहित अवध के इतिहास को अपने आंचल में समेटने वाली ऐतिहासिक पिक्चर गैलरी भी कई वर्षों से लाल इमारत की काली हकीकत बयां कर रही है। अवध के नवाब मुहम्मद अली शाह ने 1838 से 1842 के मध्य यह 12 दर वाली बारादरी का निर्माण कराया था। अंग्रेजी साम्राज्य कायम होने के बाद अंग्रेजों ने इस इमारत की दूसरी मंजिल बनवाई। इसलिए इस इमारत में अवध के साथ वेस्टर्न डिजाइन की झलक मिलती है। मुल्क की आजादी के बाद हुसैनाबाद ट्रस्ट ने इस इमारत को पिक्चर गैलरी के रूप में विकसित किया। जहां अवध के नवाबों की बेशकीमती पेंटिंग, झाड़-फानूस व अहम दस्तावेज मौजूद हैं। पिक्चर गैलरी के दीदार के लिए ट्रस्ट प्रति व्यक्ति 20 रुपये वसूलता है।
एक महीने में लाखों रुपये हुसैनाबाद ट्रस्ट को कमा कर देने वाली पिक्चर गैलरी भी समय के साथ जर्जर होती जा रही है। रखरखाव की कमी की वजह से इमारत की छत दरक चुकी है, जहां से पानी रिसता है। दीवार का प्लास्टर उखड़ चुका है। ऊपर की मंजिल की हालत और भी ज्यादा दयनीय है। कई कंगूरे टूट चुके हैं, बुर्जियां भी गिर चुकी हैं। ऐसे में हुसैनाबाद ट्रस्ट व पुरातत्व विभाग एक दूसरे को जिम्मेदार ठहरा कर अपना दामन बचा रहे हैं।
नहीं शुरू हुआ वॉटर फाउंटेन
हुसैनाबाद इलाके में पिक्चर गैलरी के पास एक और तालाब है, जिसे बड़ा तालाब कहा जाता है। पहले यहां पैराई (तैराकी) होती थी। खास तारीखों में तालाब को सजाया जाता था। तालाब में कई कुएं ओर स्रोत हैं, जो सीधे गोमती नदी से जुड़े थे। करीब दो वर्ष पहले इस तालाब में अक्षरधाम मंदिर की तरह यहां वॉटर फाउंटेन लगना था। लाखों रुपये लगाकर तालाब की मरम्मत करने के बाद फाउंटेन लगाया गया, लेकिन वह अभी तक शुरू नहीं हो सका। सफाई न होने की वजह से फिर तालाब में गंदगी भर चुकी है। तालाब की चारों ओर बनी सीढ़ियां भी अब दरकने लगी हैं, कई जगह के पत्थर भी टूट चुके हैं।
सबसे ऊंचा घंटाघर
हुसैनाबाद का यह ऐतिहासिक घंटाघर देश का सबसे ऊंचा क्लॉक टॉवर है। जिसकी लंबाई करीब 221 फीट है, जो 19वीं सदी (1882-1887) में ब्रिटिश आर्किटेक्ट ने बनाया था। इसमें करीब 1.75 लाख रुपए लगे थे। घंटाघर में चारों दिशाओं में एक-एक घड़ी है। जानकारों के मुताबिक ऐसी घड़ी विश्व में दो जगह है एक लंदन दूसरी लखनऊ में। घड़ी को इंग्लैंड के घड़ी डिजाइनर जैम्स विलियम बेसन ने बनाया था।
बदरंग होने लगा सतखंडा
सतखंडा जिसे शहर का पीसा टॉवर भी कहते हैं। क्योंकि यह इटली में बने पीसा टॉवर की तरह दिखता है। बादशाह चाहते थे इस ऊंची इमारत से शहर में फैली शाही इमारतों के झुंड को देखा जा सके, जो उस जमाने में बेबीलोन को मात करते थे। पर बादशाह के गुजर जाने के बाद सतखंडा चार खंडों का रह गया। बादशाह की तमन्ना पूरी करने के लिए कुछ महीने पहले चार खंड के सतखंडा में एंगल से दो खंड और जोड़े गए थे, जबकि सातवां खंड लेजर लाइट से बनाने की योजना था। पर वह भी रुक गई। इस समय सतखंडा की मुख्य इमारत फिर से बदरंग होने लगी हैं, प्लास्टर उखड़ने लगे हैं। गार्डन एरिया में लगे खूबसूरती लैंप चोरी हो चुके हैं, फाउंटेन बंद पड़ा है। जो कूड़ाघर में बदलता जा रहा है।