दामन पर गहरा हुआ गंदगी का दाग, स्वच्छता सर्वेक्षण में छह पायदान गिरा लखनऊ
स्वच्छता सर्वेक्षण-2019 में लखनऊ पिछले साल के मुकाबले रैकिंग छह पायदान फिसलकर 121वें स्थान पर पहुंच गया है।
लखनऊ, [ अजय श्रीवास्तव]। स्वच्छता सर्वेक्षण-2019 में लखनऊ पिछले साल के मुकाबले रैकिंग छह पायदान फिसलकर 121वें स्थान पर पहुंच गया है। सफाई कराने में कदम-कदम पर भ्रष्टाचार ने लखनऊ की तस्वीर को देशभर में बदरंग कर दिया। जोनल अधिकारियों के पास सफाई का भी प्रभार है लेकिन उनके स्तर पर ही सफाई की अनदेखी की जाती है। हालत ये है कि हर साल सफाई पर भारी-भरकम खर्च होने के बावजूद शहरवासी गंदगी को लेकर परेशान रहते हैं। शहर में गंदगी पर मुख्यमंत्री सीएम योगी आदित्यनाथ को भी कई बार नाराजगी जतानी पड़ी थी।
शहर में करीब 62 सौ सफाई कर्मचारी ठेकेदारी प्रथा पर काम कर रहे हैं। नगर निगम प्रतिदिन मानदेय के तौर पर 250 रुपये प्रति कर्मचारी कर भुगतान कर रहा है, लेकिन हकीकत में आधे कर्मचारियों से ही काम चलाया जा रहा है और शहरवासियों को खुद के खर्च पर ही सफाई करानी पड़ती है। कई इलाकों में तो महीनों सफाई नहीं हो पाती है। नगर निगम के अधिकारियों ने ठेकेदारों पर सख्ती दिखाई तो ठेकेदारों के राजनीतिक प्रभाव का असर दिखा और अधिकारियों को बैकफुट पर आना पड़ा था। शहर में गंदगी का यह हाल है, जबकि हर माह के पहले शनिवार को नगर विकास मंत्री सुरेश खन्ना शहर के चार से पांच इलाकों का स्वयं दौरा कर वहां की सफाई व्यवस्था का निरीक्षण करते हैं। सफाई से जुड़े अधिकारियों पर मंत्री ने कार्रवाई भी की लेकिन कोई असर नहीं दिखा।
कूड़ा उठान में भी खेल : दैनिक जागरण ने पिछले दिनों ही कूड़ा उठान में बड़े खेल को उजागर किया था। नगर निगम का दावा है कि हर दिन वह अपने वाहनों से 1300 मीटिक टन कूड़ा उठा रहा है, जबकि घर-घर से कूड़ा कर रही कंपनी मेसर्स इको ग्रीन एक हजार मीटिक टन कूड़ा उठाने का दावा कर रही है और हर दिन 1604 रुपये मीटिक टन के हिसाब से नगर निगम से भुगतान ले रही है, जबकि शहर में हर दिन 1500 मीटिक टन ही कूड़ा निकलता है। ऐसे में आठ सौ मीटिक टन कूड़ा उठान के भुगतान में खेल चल रहा है। लेकिन कोई ध्यान नहीं दे रहा है।
टॉप टेन में भी सबसे निचले पायदान पर : बुधवार दोपहर जारी रिपोर्ट में इंदौर ने नंबर वन की जगह को बरकरार रखा है। यूपी में तो लखनऊ टॉप टेन में शामिल हो गया, लेकिन उसमें भी दसवें नंबर पर रहा है।
हर स्तर पर उदासीनता : स्वच्छ सर्वेक्षण 2019 को लेकर केंद्रीय टीम ने अलग-अलग समय में नगर निगम सीमा में सफाई को लेकर कराए गए कार्यो को देखा था। गोपनीय ढंग से किए गए सर्वे की जानकारी भी नगर निगम को तब हो पाती थी, जब टीम सर्वे करने पहुंचती थी। टीम केंद्रीय स्तर से मिले निर्देशों के आधार पर यह तय करती थी कि उसे कहां जाना है और मौके से ही रिपोर्ट भेजती थी।
कदम-कदम पर भ्रष्टाचार से बेपटरी हुई सफाई
नगर निगम को सबसे कम नंबर सेवा स्तर में सुधार न करने पर मिला है। इसमें नगर निगम को कूड़ा प्रबंधन में सुधार करना था। यानी घर-घर से कूड़ा एकत्र हो और कूड़े की छंटाई घर पर ही हो जाए, लेकिन शहर के 5.59 लाख भवनों और मकानों में से 1.40 लाख से ही कूड़ा एकत्र हो पा रहा है और वह भी बिना छंटाई के।
शहर में कई जगह निजी, सामुदायिक और सार्वजनिक शौचालयों में मानकों की कुछ अनदेखी का ही परिणाम रहा कि नगर निगम को 600 नंबर मिले। हालांकि, नगर निगम का दावा है कि 14 हजार घरों में शौचालय बनाए गए तो सामुदायिक व सार्वजनिक शौचालय भी करीब साढ़े तीन सौ बनाए गए थे।
इस नंबर में अभिलेख तैयार करने और शहरवासियों को स्वच्छता के प्रति जागरूक में भी नगर निगम 600 नंबर ही पा सका, फीड बैक में लखनऊ देशभर में नंबर वन रहा था। जिस तरह से शहरवासियों ने सफाई को लेकर अपना फीड बैक दिया था, उस कारण नगर निगम को 988.97 नंबर मिले।
केंद्रीय टीम ने मौके पर जाकर स्वच्छता के क्षेत्र में कराए गए कार्यों का सत्यापन किया था। इसमें भी नगर निगम को 899 नंबर मिले हैं।
नगर निगम की पूरी टीम ने स्वच्छता सर्वेक्षण में बहुत मेहनत की थी। खुले में शौच करने वालों को घर में शौचालय में जाने को प्रेरित किया था। लोगों को जागरूक करने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी गई थी। पहली बार लखनऊ में एक साथ चौदह हजार घरों में शौचालय बनाए गए तो करीब साढ़े तीन सार्वजनिक व सामुदायिक शौचालय भी शहर में शामिल हो गए। हालांकि, नगर निगम क्षेत्र में स्वच्छता को लेकर कराए गए कार्यों के अनुकूल नहीं है। हम पुणो से लौटने के बाद खामियों की समीक्षा करेंगे।
डॉ. इंद्रमणि त्रिपाठी, नगर आयुक्त
इनके जिम्मे सफाई
सफाई कर्मियों की संख्या
नियमित : 2100
संविदा (विभागीय) : 919
कार्यदायी संस्था से : 6200
अन्य
एक अपर नगर आयुक्त
आठ जोनल अधिकारी
तीन जोनल सफाई निरीक्षक
28 सफाई निरीक्षक
एक पर्यावरण अभियंता
हार नहीं मानेंगे, कमियों को दूर करेंगे: मेयर
स्वच्छता सर्वेक्षण के परिणामों पर दुख जताते हुए मेयर संयुक्ता भाटिया ने कहा कि वे परिणाम से खुश नहीं हैं। इस बार प्रतिस्पर्धा बड़ी थी। नगर निगम ने बहुत तैयारी भी की थी, लेकिन कहीं न कहीं कमी रह गई, जिसकी हम समीक्षा करेंगे। पूरे साल कार्य करने के बाद कुछ चीजें जो ध्यान में आई थीं उनके लिए इस वर्ष बजट में अलग से व्यवस्था की गई है। इस बार हम और भी मेहनत करेंगे।
रैंक मिली थी लखनऊ को स्वच्छ सर्वेक्षण 2018 में, और बदतर हुए हालात
121 वें स्थान पर लुडका लखनऊ
नवाबों के शहर लखनऊ पर लगा गंदगी का दाग और गहरा हो गया है। नगर निगम के तमाम दावों के बावजूद शहर स्वच्छता सर्वेक्षण-2019 में नीचे खिसक गया है। स्थिति यह रही कि पिछले साल के मुकाबले रैकिंग छह पायदान फिसलकर 121वें स्थान पर पहुंच गई है। वहीं नगर निगम के स्वच्छता के दावे हवा साबित हुए। वर्ष 2018 में राजधानी ने स्वच्छता में 115वीं रैंक हासिल की थी।
वहीं स्वच्छता के क्षेत्र में इंदौर लगातार तीसरे साल भी राष्ट्रीय स्तर पर पहले पायदान पर है। जबकि अंबिकापुर दूसरे और मैसूर तीसरे स्थान पर रहा। उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे बड़े राज्यों की शहरी तस्वीर में संतोषजनक सुधार नहीं हुआ है। टॉप-20 की सूची में उत्तर प्रदेश का एक मात्र शहर गाजियाबाद रहे, जो 13वां स्थान प्राप्त किया है। स्वच्छता सर्वेक्षण-2019 की बुधवार को घोषित रिपोर्ट में मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, झारखंड और दक्षिणी राज्यों के शहरों में स्वच्छता का प्रदर्शन शानदार रहा है।
शहर के दामन पर गंदगी का दाग हुआ और गहरा
इसलिए कम हो गए नंबर (हर श्रेणी 1250 नंबर की)