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सांस्कृतिक विरासत का केंद्र बना लखनऊ, दूर-दराज से यहां आ रहे कला प्रेमी

नृत्य, गायन और अभिनय में भविष्य के लिए लखनऊ का सफर। सांस्कृतिक विरासत के केंद्र में आकर शौक को मिला मंच।

By JagranEdited By: Published: Tue, 03 Jul 2018 12:35 PM (IST)Updated: Tue, 03 Jul 2018 01:52 PM (IST)
सांस्कृतिक विरासत का केंद्र बना लखनऊ, दूर-दराज से यहां आ रहे कला प्रेमी
सांस्कृतिक विरासत का केंद्र बना लखनऊ, दूर-दराज से यहां आ रहे कला प्रेमी

लखनऊ[दुर्गा शर्मा]। शहर की फिजा में कला घुली है। घुंघरुओं की झंकार में कथक गुरुओं का आशीर्वाद बरसता है। बिगड़े सुर भी यहां आकर सध जाते हैं। सीखने और सिखाने की गुरु-शिष्य परंपरा जमाने से चली आ रही है। नृत्य, गायिकी और अभिनय में अपार संभावनाएं प्रशिक्षुओं को दूर-दराज से यहां खींच लाती हैं। यह शहर का सांस्कृतिक कला जादू ही है जो समर्पण को मुकाम तक पहुंचाता है। कला प्रेमी युवा और वरिष्ठ सभी का दिल खोल कर स्वागत करता है।

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55 वर्ष की उम्र में दी पहली प्रस्तुति :

भारती श्रीवास्तव, गायन (लोक गीत)

गोखले मार्ग निवासी भारती श्रीवास्तव के पास गायिकी का कुदरती हुनर है। संगीत विषय के साथ इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बीए किया। उसके बाद विवाह हुआ। 2011 में पति का ट्रांसफर लखनऊ हुआ। शहर आकर कला प्रेम फिर जीवंत हो उठा। घर पर ही रियाज के साथ दिसंबर 2017 में गायिकी की पहली कार्यशाला की। 55 वर्ष की उम्र में मई 2018 में पहली मंच प्रस्तुति भी दी। हालांकि वह समूह प्रस्तुति थी। अब सोलो की तैयारी है। गायिकी का बेहतर माहौल :

कमला श्रीवास्तव, लोक गायिका

जिसमें थोड़ी भी रुचि और ललक है, उसके लिए शहर में बहुत कुछ है। गायिकी के लिए बड़े संस्थानों के साथ-साथ अनुभवी गुरुओं की अच्छी तादाद है। समय-समय पर तमाम कार्यशालाएं होती रहती हैं। शास्त्रीय के साथ-साथ लोग गीत और संगीत का बेहतर माहौल है।

अंबेडकरनगर से बनारस वाया लखनऊ :

अलका धूरिया, गायन (लोक गीत)

पिता रेलवे से सेवानिवृत्त और मां शिक्षिका रही हैं। नानाजी को संगीत का शौक था। उनका शौक मेरी भी रुचि बन गई। संगीत विषय के साथ पढ़ाई शुरू की। जिले में एक संगीत महाविद्यालय से विशारद किया। अवधी और भोजपुरी गायिकी में विशेष रुचि है। जिले में संगीत में भविष्य के लिए ज्यादा विकल्प नहीं थे। लिहाजा बाहर निकलना पड़ा। हाल ही में लखनऊ आकर गायन पर केंद्रित कार्यशाला की। निपुण में प्रवेश की तैयारी कर रहे हैं। अभी बनारस आए हैं। जुलाई में एक और कार्यशाला होगी, उसमें भी हिस्सा लेने फिर लखनऊ आएंगे।

शौक को मिला विस्तार :

सुमन पांडा, गायन (लोक गीत)

जौनपुर में जन्म हुआ। पिता रामायण पढ़ते थे। उनके साथ मैं भी चौपाइयां गाती थी। कभी कोई विशेष प्रशिक्षण नहीं लिया था। शहर में संगीतमय माहौल ने शौक को विस्तार देने में मदद की। अप्रैल, 2018 में पहली गायिकी की पहली कार्यशाला की। वर्तमान में गुरु आरती पांडेय से गायिकी के गुर सीख रही हूं। पति आइपीएस अधिकारी हैं। पुलिस वीक के आयोजन के दौरान लोक गीतों की प्रस्तुति दी थी। प्रतापगढ़ से लखनऊ ले आया संगीत प्रेम :

हर्ष शुक्ला, गायन (शास्त्रीय)

हर्ष ने सात साल की उम्र से शास्त्रीय गायन सीखना शुरू कर दिया था। मां सुषमा शुक्ला गाती हैं और चाचा तबला वादक हैं। संगीत जगत का बड़ा नाम बनने का सपना दो साल पहले प्रतापगढ़ से लखनऊ ले आया। आलमबाग में रहकर गायिकी के हुनर को तराश रहे हैं। वर्तमान में गुरु दिव्यांशु सक्सेना से शास्त्रीय और उप शास्त्रीय गायन सीख रहे हैं।

मामा के घर रहकर नृत्य साधना :

अनुष्का त्रिपाठी, कथक

कथक प्रेम अनुष्का को गोरखपुर से लखनऊ ले आया। यहां मामा के घर में रहकर नृत्य साधना में रत हैं। कहती हैं, मां का संगीत सीखने का मन था। वह तो नहीं सीख सकीं पर मेरे जरिए वह अपनी इच्छा पूरी कर रही हैं। चार साल प्रयाग संगीत समिति, गोरखपुर से प्रशिक्षण लिया है। उसके बाद आगे की नृत्य शिक्षा के लिए लखनऊ आना हुआ। यहां आकर कथक सीखना शुरू किया। आगे कथक में मास्टर्स और फिर पीएचडी करनी है। सिद्धार्थनगर से आई कथक सीखने :

दिव्या सिंह, कथक

दो वर्ष पहले सिद्धार्थनगर से लखनऊ आकर दिव्या ने कथक सीखना शुरू किया। संगीत में रुचि बचपन से ही रही। माता-पिता ने हौसलाअफजाई की और लखनऊ में हॉस्टल में रहकर कथक शिक्षा को आगे ग्रहण करना शुरू किया। दिव्या कहती हैं, आगे कथक में ही पीएचडी करना है। खुद की कथक एकेडमी खोलने का सपना है।

किराए के मकान में रहकर रंगकर्म :

हर्षित सिंह, अभिनय

अभिनय की बारीकियां सीखने 14 अगस्त 2017 को अंबेडकरनगर से लखनऊ आए। कपूरथला में किराए के कमरे में रह रहे हैं। हर्षित बताते हैं, स्कूल में स्टेज शो करता था। धीरे-धीरे अभिनय में रुचि बढ़ती गई। जिले में ज्यादा विकल्प नहीं थे, इसलिए लखनऊ आना हुआ। शुभम सोमू श्रीवास्तव पहले गुरु रहे। फिर मुकेश वर्मा जी के सानिध्य में रहा। अभी गुरु ललित पोखरिया से रंगकर्म के गुर सीख रहा हूं। तीन साल पहले आजमगढ़ से आए :

मनीष सिंह, अभिनय

तीन साल पहले आजमगढ़ से लखनऊ आना हुआ। घर पर पहले एक्टिंग को गंभीरता से नहीं लिया जाता था। लिहाजा मेडिकल की तैयारी का बहाना करने पर लखनऊ आने की अनुमति मिली। मेडिकल कोचिंग में दो साल की फीस जमा की। छह महीने पढ़ा फिर छोड़कर अभिनय सीखना शुरू कर दिया। अब तक चार प्ले कर चुके हैं। अब परिवारीजन ने गंभीरता से लेना शुरू कर दिया है। रोजाना 10-12 घंटे अभिनय का अभ्यास करते हैं।

कथक में तमाम संभावनाएं :

- मनीषा मिश्रा, कथक नृत्यांगना

कथक को सीखने के लिए शहर में पर्याप्त संभावनाएं हैं। विश्वविद्यालय से लेकर संस्थान, केंद्र, अकादमी तक कथक शिक्षा के लिए बने हैं। अनुभवी वरिष्ठ गुरुजन हैं, जो गुरु-शिष्य परंपरा और विश्वविद्यालयीय शिक्षा सैद्धान्तिक एवं प्रायोगिक दोनों दिशा में प्रदान कर रहें हैं। रिसर्च, मास्टर्स से लेकर डिप्लोमा तक का कोर्स एवं विभिन्न प्रादेशिक सागीतिक प्रतियोगिताओं, कार्यशालाओं, सेमिनार का आयोजन होता है।

समर्पण हो तो निखरता रंगकर्म :

ललित सिंह पोखरिया, वरिष्ठ रंगकर्मी

अभिनय की तमाम कार्यशालाएं हो रही हैं। बीएनए की अपनी महती भूमिका है। वरिष्ठ रंगकर्मी रंगमंच की भावी पीढ़ी तैयार करने में लगे हैं। अभिनय प्रशिक्षु बड़ी संख्या में आ रहे हैं। समर्पण की बजाए कॅरियर चुनने की दृष्टि से ज्यादा आ रहे हैं। रंगकर्म के मर्म को समझ पाने के लिए लगन जरूरी है। कल्पनाशीलता की गहरी बातों पर काम करने में वक्त लगता है। जो शहर के रंगमंच को वक्त देता है, शहर भी उसे बहुत कुछ सीखा देता है।


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