अजब प्रेम की गजब कहानियां
वेलेंटाइन डे शहर की जोड़ियों ने साझा की अपने प्यार की कहानी
लखनऊ (जागरण टीम)। प्यार अपनेपन का अहसास है, सादगी भरे जज्बात हैं। बेहिसाब समर्पण के बाद भी ये सभी के लिए बेहद खास है। खुद में मैं को खो देने और बेजुबां धड़कनों को अरमान देने का यह रवैया जीवन को खूबसूरत लम्हों से सींच देता है। शहर में भी ऐसे कई रिश्ते हैं जिनके अजब प्रेम को हासिल करने के गजब किस्से हैं। जागरण टीम की रिपोर्ट..
पहली ही नजर में दे दिया दिल
बात साल 1990 की है। पोस्ट ग्रेजुएशन कर रहा था। साथ ही केजीएमयू में बतौर रेजीडेंट कार्य भी कर रहा था। इस दरम्यान एमबीबीएस की क्लास लेने गया और जूनियर चिकित्सक डॉ. तूलिका चंद्रा को पहली ही नजर में दिल दे बैठा। यह कहना है पीजीआइ के प्लास्टिक सर्जरी विभाग के अध्यक्ष डॉ. राजीव अग्रवाल का। उनकी और केजीएमयू की ब्लड ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग की अध्यक्ष डॉ. तूलिका चंद्रा की शादी को 24 साल हो गए। वेलेंटाइन डे पर जब प्यार की बात छिड़ी तो पुराने दिनों में खो गए। डॉ. राजीव ने बताया कि एक मुलाकात के बाद पूरे समय क्लास का इंतजार करता था। क्लास लेने की हरसंभव कोशिश करता था। फिर एक दिन मौका पाकर प्यार का इजहार कर किया। डॉ. तूलिका चंद्रा कहती हैं कि उनके भाई भी हमारे बैच में ही थे। धीरे-धीरे हम दोनों की कैंपस में मुलाकातें बढ़ गई। बहुत कम समय में एक-दूसरे को समझा और जीवन भर साथ देने का फैसला किया। 1993 में पास आउट होते ही ¨रग सेरेमनी का फैसला किया और 1994 में विवाह के बंधन में बंध गए।
एक ने नानवेज छोड़ा तो एक ने अपना काडर
देहरादून की लाल बहादुर शास्त्री अकादमी में साल 1990 के दौरान आइएएस की ट्रेनिंग में संदीप कौर को देखकर पहली ही नजर में दिल दे बैठे थे आइएएस योगेश कुमार। कहते हैं कि मेल-मुलाकात हुई तो धीरे-धीरे करीब आ गए। बात शादी तक पहुंची पर सामने तमाम विसंगतियां थीें। संदीप जहां पंजाब से ताल्लुक रखती थी वहीं मैं यूपी काडर से था। वो सिक्ख थीं तो मैं ¨हदू। वहां पंजाबी होने के बावजूद कोई नानवेज नहीं खाता था और मैं नानवेज के बिना रह नहीं सकता था। किस्से और भी हैं लेकिन इसके बावजूद हम डटे रहे। ठान रखी थी कि शादी तो संदीप से करनी है। खैर मैंने तय किया कि नानवेज खाना छोड़ दूंगा। आगे सबसे बड़ा सवाल आया कि आखिर शादी के बाद काडर कौन बदलेगा। दरअसल होम काडर बहुत मुश्किल से मिलता है इसलिए मैं इसे बदलना नहीं चाहता था। आखिरकार संदीप ने अपना काडर बदलने का फैसला किया। 15 जून 2011 को हमने बहुत ही साधारण ढंग से कोर्ट मैरिज की। अब मेरा चार साल का एक प्यारा बेटा भी है। मौजूद समय मैं मनरेगा में एडीशनल सेक्रेटी हूं और संदीप विशेष सचिव लघु सिंचाई हैं।
सात समंदर पार कर लिए सात फेरे
प्रेम किसी परिचय का मोहताज नहीं। यह कब किस वेश में आकर पल में अजनबियों को अपना बना ले, कोई नहीं जानता। कुछ ऐसा ही उदाहरण पेश किया आइपीएस डॉ. सतीश कुमार और उनकी पत्नी डॉ. कृति ने। सात सालों तक आस्ट्रेलिया में रहकर पढ़ाई और आइबीएम में जॉब करने वाली कृति व डॉ. सतीश की मुलाकात जीवन साथी डॉट कॉम के जरिए हुई थी। दोनों ने एक-दूसरे से बात की तो बेहद अपने लगे। डॉ. सतीश मूलरूप से बिहार के रहने वाले हैं जबकि कृति लखनऊ की हैं। डॉ सतीश कहते हैं कि कल्चर, लाइफस्टाइल और परिवार से जुड़ी कई समस्याएं आईं। कुछ मुझसे जुड़ीं और कुछ उनसे। बस हमारे वायदे ने हमें जोड़े रखा और आगे बढ़ते गए। एएसपी ग्रामीण के रूप में तैनात डॉ. सतीश कहते हैं और कृति का मानना है कि अभिभावक बच्चों पर भरोसा कर उनके साथ खड़े हों क्योंकि प्रेम पवित्रता को बयां करने के साथ ही कभी निराश नहीं करता।
मेहनत करके पूरा किया ख्वाब
अपने प्यार को पाने के लिए दिन रात मेहनत करके सरकारी नौकरी हासिल की और छह महीने के अंदर सरकारी चिकित्सक बन गए। चाहत थी अपने हमसफर के साथ ज्यादा से ज्यादा वक्त बिताने का। कहानी है राजधानी के डफरिन अस्पताल के बाल रोग विशेषज्ञ डॉ.सलमान खान और उनकी पत्नी सुमैरा मिर्जा की। एक पार्टी में मुलाकात के बाद डॉ.सलमान सुमैरा मिर्जा को दिल दे बैठे। मम्मी-पापा के रिश्ता भेजने के बाद भी सुमैरा ने शर्त रखी कि मैं चाहती हूं कि आप प्राइवेट प्रैक्टिस न करें और पैसों के पीछे न भागकर मेरे साथ ज्यादा से ज्यादा वक्त गुजारे। एमडी पूरा होने के बाद डॉ.सलमान ने दिन रात मेहनत की और सरकारी अस्पताल में नौकरी हासिल की। जिसके बाद जाकर सुमैरा शादी के लिए तैयार हुई। वर्ष 2000 में शादी भी हो गई। शादी के बाद पत्नी की अधूरी पढ़ाई पूरी करवाई। आज भी एक दूसरे के प्रति समर्पण और विश्वास की भावना में किसी तरह की कमी नहीं है।