ऑर्गन फेल्योर युवक को डॉक्टरों ने बचाया, वेंटिलेटर सपोर्ट न करने इस तकनीक का किया इस्तेमाल Lucknow News
लोहिया संस्थान में भर्ती था आर्गन फेल्योर का मरीज वेंटिलेटर सपोर्ट भी नहीं कर रहा था काम 25 दिन तक चला इलाज। अब खतरे से बाहर आया मरीज।
लखनऊ, जेएनएन। लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान में इकमो इंटरनेशनल कांफ्रेंस में कई देशों से एक्सपर्ट जुटे। इसमें संस्थान में ऑर्गन फेल्योर युवक की इकमो सपोर्ट से जिदंगी बचाने का केस प्रजेंटेशन दिया गया। यह राज्य का पहला इकमो सपोर्ट मरीज होने का दावा किया गया।
संस्थान के एनेस्थीसिया एंड क्रिटिकल केयर मेडिसिन के हेड डॉ. दीपक मालवीय ने कहा कि एक्स्ट्रा कॉरपोरियल में ब्रेन ऑक्सीजनेशन (इकमो) की सुविधा सरकारी आइसीयू में देश के एम्स दिल्ली व लोहिया संस्थान में है। यहां के आइसीयू में 24 वर्षीय ऑर्गन फ्लोर युवक का इलाज कर जान बचाई गई। इस युवक की कुछ दिनों में शादी है। युवक में वेंटिलेटर काम नहीं कर रहा था, ऐसे में इकमो पर शिफ्ट कर सफलतापूर्वक इलाज किया गया। उन्होंने बताया के आइसीयू के 10 फीसद मरीजों में वेंटिलेटर फेल हो जाता है, ऐसे में इकमो एक बेहतर विकल्प है। कार्यशाला का उद्घाटन देर शाम चिकित्सा शिक्षा मंत्री सुरेश खन्ना ने किया।
200 डॉक्टरों को मिला प्रशिक्षण
डॉ. पीके दास ने कहा कि दिल व फेफड़े काम न करने पर इकमो पर मरीज शिफ्ट किया जा सकता है। आइसीयू में यह सुविधा बढ़ाई जाने की आवश्यकता है। इसके लिए राजधानी के सौ व अन्य स्थानों के सौ डॉक्टरों का इकमो मशीन के संचालन का प्रशिक्षण दिया गया।
सिर्फ बेहोशी देने तक सीमित न रहें एनेस्थेटिस्ट
सर गंगाराम अस्पताल के डॉ. प्रणय ओझा ने कहा कि एनस्थेटिस्ट सिर्फ मरीज को बेहोशी देने तक कार्य को सीमित न करें। अपना दायरा बढ़ाएं। आइसीयू, क्रिटिकल केयर मेडिसिन, पेन मैनेजमेंट आदि में विशेषज्ञता हासिल करें। इस दौरान डॉ. लक्ष्मीनारायण, लंदन के डॉ. सचिन शाह, मुंबई के डॉ. प्रणय, डॉ. वेंकट समेत करीब 200 एक्सपर्ट शामिल होंगे।
कैसे काम करती इकमो
वेंटिलेटर काम न करने पर मरीज को इकमो पर शिफ्ट करना होता है। उसका फेफड़ा काम न करने पर वेन से रक्त मशीन में जाता है, वहां से ऑक्सीजिनेट होकर दोबारा वेन से शरीर में पहुंचा दिया जाता है। ऐसे ही हार्ट काम न करने पर वेन से ब्लड मशीन में जाता है और आर्टरी के जरिए शरीर में जाता है। मशीन के जरिए ब्लड ऑक्सीजिनेट-डीऑक्सीजिनेट किया जाता है। मरीज में सुधार होने पर मशीन आउट कर ली जाती है।