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गुर्दा प्रत्यारोपण का नया हब बना लखनऊ का लोहिया संस्थान, कोविड काल में हुए 20 प्रत्यारोपण

प्रत्यारोपण कराने वाले सभी मरीज 20 से 60 साल की उम्र के बीच। लोहिया संस्थान में यूरोलॉजी के एसोशिएट प्रो डॉ संजीत कुमार ने बताया कि यहां मरीज को करीब दो हफ्ते तक भर्ती रहना होता है। कुछ दवाएं ट्रान्सप्लांट से करीब दो महीने पहले शुरू कर दी जाती हैं।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Mon, 18 Jan 2021 06:10 AM (IST)Updated: Mon, 18 Jan 2021 07:36 AM (IST)
गुर्दा प्रत्यारोपण का नया हब बना लखनऊ का लोहिया संस्थान, कोविड काल में हुए 20 प्रत्यारोपण
शुगर, बीपी, मोटापा के साथ पेन किलर व हार्ट की दवाएं भी खराब कर रही किडनी।

लखनऊ, [धर्मेंद्र मिश्रा]। डॉ राममनोहर लोहिया संस्थान गुर्दा प्रत्यारोपण का नया हब बनता जा रहा है। कोविडकाल के दौरान संस्थान ने 20 मरीजों के गुर्दे को सफलतापूर्वक प्रत्यारोपित किया है। इन मरीजों की उम्र 20 से 60 वर्ष के बीच रही है। खास बात यह है कि यहां ट्रांसप्लांट कराने वाले मरीजों का खर्चा निजी अस्पतालों के मुकाबले आधे से भी कम है। पिछले छह महीने में 5000 से अधिक डायलिसिस की जा चुकी है। वहीं यूरोलॉजी विभाग ने एक हजार सर्जरी कर मरीजों को नई ज‍िंंदगी दी है। इससे किडनी रोगियों की मुश्किलें आसान हो रही हैं।

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इन्हें मिली नई जि‍ंंदगी 

यूरोलॉजी के प्रो डॉ आलोक श्रीवास्तव ने बताया कि हमारे पास बस्ती से 23 वर्षीय एक ऐसा मरीज आया, जिसमें इतनी अधिक शारीरिक जटिलताएं थीं कि उसकी नसें खराब होने से डायलिसिस कर पाना भी संभव नहीं हो पा रहा था। गुर्दे खराब हो चुके थे। कोविड काल में प्रत्यारोपण किया गया। उसकी मां डोनर थी। अब वह स्वस्थ महसूस कर रहा है। वहीं नेफ्रोलॉजी की एसोशिएट प्रो डॉ नम्रता राव ने बताया कि लखनऊ की 60 वर्षीय महिला किडनी फेल्योर की स्थिति में जा चुकी थी। उनके पति ने अपनी किडनी दान की। जुलाई में ट्रांसप्लांटेशन हुआ। किडनी ट्रांसप्लांट कराने के बाद मरीज की लाइफ 15 से 25 साल तक बढ़ जाती है।

दूरबीन विधि से होता है प्रत्यारोपण

लोहिया संस्थान में यूरोलॉजी के एसोशिएट प्रो डॉ संजीत कुमार ने बताया कि यहां मरीज को करीब दो हफ्ते तक भर्ती रहना होता है। कुछ दवाएं ट्रान्सप्लांट से करीब दो महीने पहले ही शुरू कर दी जाती हैं। इस दौरान उन्हें बाहर निकलने से लेकर खान-पान में विशेष परहेज रखना होता है। प्रत्यारोपण अत्याधुनिक दूरबीन विधि से किया जाता है। ऐसे में जल्दी रिकवरी होती है। संक्रमण की गुंजाइश भी नगण्य होती है।

कब और क्यों पड़ती है गुर्दा प्रत्यारोपण की जरूरत 

नेफ्रोलॉजी के विभागाध्यक्ष प्रो डॉ अभिलाष चंद्रा व यूरोलॉजी के विभागाध्यक्ष प्रो डॉ ईश्वर कहते हैं कि जब मरीजों के गुर्दे शुगर, बीपी, मोटापा इत्यादि वजह से खराब हो जाते हैं या लंबे समय तक मरीज हार्ट की दवाएं या पेन किलर खाता रहता है। इसके अतिरिक्त किडनी में पथरी फंसने से या कई बार जन्म से ही उसके अल्पविकसित होने से भी गुर्दे की कार्यक्षमता पांच फीसद से कम हो सकती है। डायलिसिस से भी फायदा नहीं होता। तब ऐसे मरीजों में गुर्दा प्रत्यारोपण की जरूरत पड़ती है। इसलिए 40 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों को साल में दो बार अपना किडनी फंक्शन टेस्ट व यूरिन जांच कराते रहने की सलाह दी जाती है। 


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