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लखनऊ में ट्रांसपोर्ट नगर योजना के भूखंड घोटाले की जांच दफन, दर्जनों प्लाट की फाइलें अभी भी गायब

ट्रांसपोर्ट नगर भूखंड घोटाले में महीनों जांच चली फाइलें खूब पलटी गई लेकिन आज तक जांच अधूरी है। कहने को सिर्फ तीन भूखंड पर लखनऊ विकास प्राधिकरण (लविप्रा) बोर्ड लगवा सका इनकी भी रजिस्ट्री नियमानुसार लखनऊ विकास प्राधिकरण निरस्त नहीं करवा सका।

By Vikas MishraEdited By: Published: Mon, 06 Dec 2021 04:53 PM (IST)Updated: Tue, 07 Dec 2021 08:28 AM (IST)
लखनऊ में ट्रांसपोर्ट नगर योजना के भूखंड घोटाले की जांच दफन, दर्जनों प्लाट की फाइलें अभी भी गायब
ट्रांसपोर्ट नगर भूखंड घोटाले में महीनों जांच चली, फाइलें खूब पलटी गई, लेकिन आज तक जांच अधूरी है।

लखनऊ, जागरण संवाददाता। ट्रांसपोर्ट नगर भूखंड घोटाले में महीनों जांच चली, फाइलें खूब पलटी गई, लेकिन आज तक जांच अधूरी है। कहने को सिर्फ तीन भूखंड पर लखनऊ विकास प्राधिकरण (लविप्रा) बोर्ड लगवा सका, इनकी भी रजिस्ट्री नियमानुसार लखनऊ विकास प्राधिकरण निरस्त नहीं करवा सका। यही नहीं इसके कारण इन्हें वाणिज्यिक संपत्तियों की नीलामी में महीनों बाद भी नहीं लगाया जा सका। इसके अलावा छह भूखंडों की रजिस्ट्री जो फर्जी मिली थी, उन पर जांच अधूरी है। तीन भूखंडों पर बाेर्ड लगाने के बाद आरोपियों की न आज तक गिरफ्तारी हुई और न आरोपियों पर कार्रवाई को लेकर लविप्रा की ओर कोई पैरवी की गई। इसके अलावा भूखंड संख्या सी 63, ई 301, ई 418 ए, एफ 249, एस 10/105 और एस 10/106 की फाइलें संबंधित बाबू एक साल भी बाद नहीं खोज पाए।

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लविप्रा में ट्रांसपोर्ट नगर भूखंड घोटाला एक बड़ा घोटाला था, सिर्फ लविप्रा जांच अधिकारी बदलता रहा, एक साल में आधा दर्जन जांच अधिकारी बद दिए, लेकिन छह भूखंड की जांच सही से नहीं हो सकी। आज भी भूखंड संख्या ई 73 फेस टू, जी 18/308, जी 34/308 फेस टू, एम जी वन और एमजी टू जैसे भूखंड की जांच तक शुरू नहीं हुई। इन भूखंडों पर लविप्रा के जांच कर रहे अफसरों को संदेह था, इनकी फाइलें जांच में आंशिक गड़बड़ी कभी बताया गया तो ,कभी पैसा जमा होने और रजिस्ट्री के कागजात में हस्ताक्षरों को लेकर सवाल खड़े हुए।

बता दें कि ट्रांसपोर्ट नगर योजना 1981 की है, इस योजना में वाणिज्यिक भूखंड है। यहां बाबुओं, पूर्व के अफसरों व दलालों ने मिलकर भूखंड चिन्हित किए और निरस्त हुए भूखंडों का पैसा जमा कराया। इसके बाद गलत तरीके से बाहर ही बाहर रजिस्ट्री करवाई। यही नहीं एक प्रति रजिस्ट्रार आफिस में भी रखवाई। उद्देश्य था कि सत्यापित प्रति मांगने पर रजिस्ट्री आफिस से मिल सके। ऐसा हुआ भी, जांच में लविप्रा को सत्यापित प्रति मिली, जिनके गलत रजिस्ट्री में हस्ताक्षर हैं, उनकी मृत्यु हो चुकी है। ऐसे में लविप्रा के करोड़ों रुपये के भूखंड दलालों के कब्जे में जा चुके हैं।


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