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आमाशय कैंसर की अब लेप्रोस्कोपिक सर्जरी भी संभव, लखनऊ पीजीआइ में कम खर्च में इलाज शुरू

प्रो. अशोक के मुताबिक ओपन विधि से 20-25 सेंटीमीटर के चीरे की जरूरत होती है लेकिन लेप्रोस्कोपिक विधि से सर्जरी बिना बड़ा चीरा लगाए की जाती है साथ ही अंदर के अंगों में भी कम खींचतान कम जख्म तथा कम रक्तस्राव होता है।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Tue, 23 Mar 2021 10:53 AM (IST)Updated: Tue, 23 Mar 2021 03:29 PM (IST)
आमाशय कैंसर की अब लेप्रोस्कोपिक सर्जरी भी संभव, लखनऊ पीजीआइ में कम खर्च में इलाज शुरू
गैस्ट्रो सर्जरी विभाग के प्रो. अशोक कुमार (सेकेंड) ने टीम के साथ किया सफल आपरेशन।

लखनऊ, जेएनएन। संजय गांधी पीजीआइ के गैस्ट्रो सर्जरी विभाग ने आमाशय में कैंसर के इलाज के लिए लेप्रोस्कोपिक सर्जरी तकनीक स्थापित की है। आमाशय में कैंसर होने पर अभी तक ओपन सर्जरी की जाती रही है, लेकिन अब यह सर्जरी लेप्रोस्कोप से भी संभव हो गई है। इस तकनीक से सर्जरी करने में मरीज के स्वास्थ्य में जल्दी सुधार होता है। साथ ही संक्रमण की आशंका कम होती है और इलाज का खर्च भी कम होता है।सं

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स्थान के गैस्ट्रो सर्जरी विभाग के प्रो. अशोक कुमार (सेकेंड) ने एनेस्थीसिया विभाग के प्रो. सुजीत गौतम, डा. सुरुचि के साथ लेप्रोस्कोपिक तकनीक स्थापित किया। गैस्ट्रो सर्जरी के सीनियर रेजिडेंट डा. सोमनाथ, डा. किरन, डा. चंदन के साथ एनेस्थीसिया रेजिडेंट डॉक्टर ने इसमें सहयोग किया। प्रो. अशोक के मुताबिक ओपन विधि से 20-25 सेंटीमीटर के चीरे की जरूरत होती है, लेकिन लेप्रोस्कोपिक विधि से सर्जरी बिना बड़ा चीरा लगाए की जाती है, साथ ही अंदर के अंगों में भी कम खींचतान, कम जख्म तथा कम रक्तस्राव होता है। इसी कारणवश आपरेशन के बाद दर्द भी कम होता है और घाव से संबंधित दिक्कतें भी कम होती हैं। मरीज को अस्पताल से जल्द छुट्टी मिल जाती है।

ऐसे की सर्जरी :

प्रो. अशोक के मुताबिक प्रतापगढ़ निवासी प्रदीप सिंह आमाशय कैंसर से ग्रस्त थे, जिसके कारण उन्हें कई तरह की परेशानी हो रही थी। कैंसर के कारण वह खाना नहीं खा पा रहे थे, जिसके कारण वह कुपोषण के शिकार हो गए। पहले उनमें पोषक तत्वों की कमी पूरी की गई। फिर लेप्रोस्कोपिक विधि से सर्जरी की गई। कैंसर आमाशय के मुंह पर था, जिसके लिए बहुत छोटा होल बना कर खाने की नली और अमाशय को अलग करने के साथ इस अंग के 75 फीसद हिस्से को निकाला। इसके साथ ही आमाशय के आसपास की नसों की ग्रंथियों और चर्बी को भी निकालना पड़ता है, जो कि बड़ी जटिल और अति सतर्क होकर करने वाली प्रक्रिया है, जिससे दोबारा कैंसर की आशंका न रहे। फिर बचे हुए 25 फीसदी आमाशय को छोटी आंत से जोड़ दिया, जिससे अमाशय की कमी भी पूरी हो गयी। शनिवार को हुई यह सर्जरी पूरी तरह सफल रही। 


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