Lakhimpur Dudhwa Tiger Reserve Update : अब ग्रासलैंड मैनेजमेंट से जंगल में लौटेंगे खेतों के बाघ
Lakhimpur Dudhwa Tiger Reserve Update अच्छी घास की उपलब्धता से तृणभोजी जानवरों का बाहर जाना होगा कम। माना जा रहा है कि अगर ग्रासलैंड का मैनेजमेंट बेहतर हो और पार्क में अच्छी घास का उत्पादन हो तो खेतों में जाने वाले बाघ सहित अन्य वन्यजीव जंगल लौट सकते हैं।
लखीमपुर [हरीश श्रीवास्तव]। Lakhimpur Dudhwa Tiger Reserve Update : दुधवा टाइगर रिजर्व में तृणभोजी जानवरों के लिए पर्याप्त मात्रा में खाने के लिए अच्छी घास नहीं है। इस वजह से घास खाने वाले वन्यजीव जंगल से बाहर पलायन करते हैं और उनके पीछे उनका शिकार करने वाले बाघ व तेंदुए भी खेतों तक पहुंच जाते हैं। माना जा रहा है कि अगर ग्रासलैंड का मैनेजमेंट बेहतर हो और पार्क में अच्छी घास का उत्पादन हो तो खेतों में जाने वाले बाघ सहित अन्य वन्यजीव जंगल लौट सकते हैं। इससे मानव-वन्यजीव संघर्ष भी कम हो सकता है।
दुधवा में करीब 10 हजार हेक्टेयर ग्रासलैंड है, लेकिन ग्रासलैंड का काफी बड़ा हिस्सा ऐसा है, जिसमें उगने वाली घास को जानवर खाना पसंद नहीं करते हैं। इसमें सठियाना का ग्रासलैंड शामिल है, जो पार्क का सबसे बड़ा ग्रासलैंड माना जाता है। यहां पर काफी बड़ी-बड़ी घास है, लेकिन वह शाकाहारी वन्यजीवों के खाने के लायक नहीं है।
दुधवा में 50 हजार तृणभोजी वन्यजीव
घास खाने वाले वन्यजीवों की गणना के बाद 2019 में जो आंकड़े मिले थे, उसके मुताबिक पार्क में करीब 50 हजार से अधिक तृणभोजी वन्यजीव हैं। एक जानवर प्रतिदिन लगभग पांच किलो घास खाता है। इस लिहाज से एक दिन में इन वन्यजीवों को 250 टन घास चाहिए। माह में 7500 टन और साल में करीब 90 हजार टन घास खाने के लिए उपलब्ध होना जरूरी है। इतनी मात्रा में घास का उत्पादन बढिय़ा क्वालिटी की हो तो पार्क के वन्यजीव बाहर नहीं जाएंगे। पर्याप्त मात्रा में भोजन उपलब्ध होने पर इनकी जनसंख्या में भी वृद्धि होगी, जो बाघ व तेंदुओं के अनुकूल होगा। विशेषज्ञों की ङ्क्षचता का सबसे बड़ा कारण पार्क के ग्रासलैंड है। वर्ष 2019 में हुई ग्रासलैंड मैनेजमेंट की कार्यशाला में यह मुद्दा उठ भी चुका है।
कहते हैं जिम्मेदार
दुधवा के फील्ड डायरेक्टर संजय पाठक का कहना है कि यहां ग्रासलैंड तो जरूरत से अधिक है, पर उसमें उगने वाली घास की क्वालिटी उतनी अच्छी नहीं है जितनी होनी चाहिए। इसके लिए ग्रासलैंड मैनेजमेंट को बेहतर करने का प्रयास किया जा रहा है। इसके लिए घास की नर्सरी बनाई गई है और उसमें जो घास उगाई जा रही है। उसे पार्क के ग्रासलैंड में लगाया जाएगा। इस तरह से धीरे-धीरे खराब घास को दूर कर नई व कोमल घास उगाई जाएगी। ग्रासलैंड बेहतर होने से तृणभोजी जानवरों का जंगल से बाहर जाना कम होगा।