krishna janmashtami 2022: 19 अगस्त को 5249 वर्ष पूरे हो जाएंगे योगिरज श्री कृष्ण, गाए जाएंगे सोहर; ऐसे करें पूजन
krishna janmashtami 2022 श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद कृष्ण अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में अर्द्धरात्रि में हुआ था। श्रीकृष्ण को भगवान विष्णु के दशावतारों में पूर्णावतार व सोलह कलाओं से परिपूर्ण माना जाता है। उनका जन्म द्वापर के अंत में हुआ था।
krishna janmashtami 2022: लखनऊ, जेएनएन। भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के रूप में मनाई जाती है। इस वर्ष श्री कृष्ण जन्माष्टमी 19 अगस्त शुक्रवार की अर्द्ध रात्रि को मनायी जाएगी। मथुरा-वृंदावन में मनाई जाने वाली गोकुलाष्टमी (उदयकाल में अष्टमी) भी इसी दिन मनाई जाएगी।
लखनऊ शक्ति ज्योतिष केन्द्र के ज्योतिषाचार्य पण्डित शक्ति धर त्रिपाठी के अनुसार 19 अगस्त दिन शुक्रवार को अष्टमी तिथि सूर्योदय के पहले ही आरम्भ हो रही है और रात्रि के 01:06 बजे तक रहेगी। इस वर्ष रोहिणी नक्षत्र एवम् अष्टमी तिथि का योग नहीं हो पा रहा है। अतः शास्त्रीय मान्यता के अनुसार चंद्रोदय व्यापिनी अष्टमी को ही जन्मोत्सव मनाया जाएगा।
'रात्रौ नास्ति चंद्रोहिणी कला।
रात्रि युक्तां प्रकुर्वित विशेषेणु संयुताम्।।'
इसी दिन योगिरज श्री कृष्ण के जन्म के 5249 वर्ष पूरे हो जाएंगे। मर्त्य लोक पर उनका जीवन काल कुल 126 वर्षों का था। जिसमें 10 वर्ष 8 महीने के लगभग गोकुल में रहे। उसके बाद का जीवन संघर्षों से ओत प्रोत रहा। आयु के 86वें वर्ष में श्री कृष्ण ने गीता का उपदेश दिया जो आज भी समीचीन है। इसीलिए वे पूज्य और अनुकरणीय हैं।
भाद्रपद कृष्ण अष्टमी तिथि 18 अगस्त की रात 12:14 बजे लग रही है जो 19 अगस्त की रात 1:06 बजे तक रहेगी। उदय व्यापिनी रोहिणी मतावलंबी वैष्णवजन 20 अगस्त को व्रत रखेंगे और श्रीकृष्ण जन्मोत्सव मनाएंगे। रोहिणी नक्षत्र 20 की भोर 4:58 बजे लग रहा है जो 21 अगस्त को प्रातः सात बजे तक रहेगा।
श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद कृष्ण अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में अर्द्धरात्रि में हुआ था। श्रीकृष्ण को भगवान विष्णु के दशावतारों में पूर्णावतार व सोलह कलाओं से परिपूर्ण माना जाता है। उनका जन्म द्वापर के अंत में हुआ था।
यह सर्वमान्य पापों से मुक्ति दिलाने वाला व्रत बच्चों, कुमार, युवा, वृद्ध सभी को करना चाहिए। इससे पापों से मुक्ति व सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। जन्माष्टमी महोत्सव के दौरान घरों से लेकर मठ-मंदिरों तक बधाई गूंजेगी और सोहर-गीत गाए जाएंगे।
व्रतियों को चाहिए कि उपवास से पहले दिन में अल्पाहार कर रात में जितेंद्रिय रहें। व्रत के दिन प्रातः स्नानादि कर सूर्य, सोम, पवन, दिग्पति, भूमि, आकाश, यम और ब्रह्मा आदि को नमस्कार कर उत्तराभिमुख बैठें। हाथ में जल-अक्षत, कुश-फूल लेकर मास, तिथि, पक्ष का उच्चारण कर जन्माष्टमी व्रत का संकल्प लें।
दोपहर में काले तिल युक्त जल से स्नान कर माता देवकी के लिए सूतिका गृह नियत करें। उसे स्वच्छ व सुशोभित कर सूतिका उपयोगी समस्त सामग्री यथा क्रम रखें। सुंदर बिछौने पर अक्षतादि का मंडल बनाकर कलश स्थापन करें। उस पर बाल श्रीकृष्ण की मूर्ति स्थापित करें।
रात में भगवान के जन्म के बाद जागरण व भजन आदि करना चाहिए। इस व्रत को करने से संतति, धन समेत कुछ भी पाना असंभव नहीं रहता। अंत में बैकुंठ में स्थान प्राप्त होता है।