World Asthma Day : एक धूप बत्ती दे रही 50 सिगरेट का धुआं, घरों में एेसे बढ़ रहा खतरा
दैनिक जागरण के ‘हेलो डॉक्टर’ कार्यक्रम में एसजीपीजीआइ के पल्मोनरी विभाग के डॉ. आलोक ने पाठकों को अस्थमा के नियंत्रण के उपाय बताए।
लखनऊ, जेएनएन। आउटडोर ही नहीं इंडोर पॉल्यूशन (प्रदूषण) सेहत के लिए चुनौती बढ़ा रहा है। घर में धूल, धुआं, परागकण अस्थमा का रोगी बना रहे हैं। आलम यह है कि एक धूपबत्ती से जहां 50 सिगरेट का धुआं निकल रहा है। वहीं घर में एक क्वॉयल जलाने से सौ सिगरेट के बराबर धुआं शरीर में जा रहा है। वातावरण में दूषित हवा व घरेलू प्रदूषण व्यक्ति के लिए मुसीबत बन गया है। ऐसे में इन कारकों से बचाव करें। घर में साफ-सफाई रखें। एसजीपीजीआइ के पल्मोनरी विभाग के डॉ. आलोक नाथ ने पाठकों को अस्थमा के नियंत्रण के उपाय बताए।
सवाल : फेफड़े में गांठ थी। अब आइएलडी बीमारी बताई गई है। क्या लगातार दवा खानी पड़ेगी। (प्रकाश सक्सेना, जानकीपुरम)
जवाब : आइएलडी दौ सौ प्रकार की होती है। आपको सारकॉइडोसिस होने की संभावना है। इसमें धीरे-धीरे दवा बंद की जा सकती है। यह जांच के बाद ही कंफर्म होगा।
सवाल : 73 वर्ष का हूं। अस्थमा का रोगी हूं। बातें करने पर ही सांस फूलने लगती हैं। (कृष्ण कुमार, बहराइच)
जवाब : अस्थमा का यदि शुरुआत में सही इलाज नहीं होगा, तो यह बीमारी सीओपीडी में तब्दील जाती है। इसका इलाज ठीक तरीके से कराएं, तभी राहत मिलेगी।
सवाल : पति को अस्थमा हो गया है। इनहेलर शुरू किया गया। कोई दुष्प्रभाव तो नहीं पड़ेगा।(सुनीता, इंदिरानगर)
जवाब : इनहेलर सुरक्षित है। इसमें दुष्प्रभाव नगण्य है। इसे ताउम्र लिया जा सकता है।
सवाल : चार वर्ष का पुत्र है। इनहेलर अब बंद कर दिया गया। क्या दोबारा बीमारी तो नहीं होगी।(अशोक सिंह, जानकीपुरम)
जवाब : जरूरी नहीं है कि बच्चे को अस्थमा हो। यह वायरल इंफेक्शन भी हो सकता है। इसमें दमा जैसे लक्षण होते हैं। 50 फीसद बच्चों में 14 वर्ष की आयु तक दोबारा बीमारी नहीं पनपती, जिनमें रहती है उनकी जांच कर फिर अस्थमा का इलाज शुरू किया जाता है।
सवाल : अस्थमा की दवा चल रही थी। आठ-दस दिन से सांस की परेशानी अधिक बढ़ गई।(प्रेम कुमार, अयोध्या)
जवाब : मौसम में बदलाव हुआ है। ऐसे में अस्थमा रोगी में समस्या बढ़ जाती है। इनहेलर की डोज सुबह-शाम के साथ दोपहर भी लें। राहत न मिलने पर साथ में एंटीएलर्जिक टेबलेट ले लें।
सवाल : 60 वर्ष की उम्र है। चलने-फिरने में सांस फूलती है। ब्लड शुगर व ब्लड प्रेशर की समस्या भी है। (अतीक, खैराबाद )
जवाब : एक बार हार्ट का चेकअप कराएं। हो सकता है हृदय रोग के चलते सांस फूल रही हो। यदि हार्ट ठीक है तो फिजीशियन या चेस्ट फिजीशयन से परामर्श लें।
सवाल : 80 वर्ष का हूं। अस्थमा रोगी हूं। बीच-बीच में अटैक पड़ जाता है।(सुजात अली, लखनऊ )
जवाब : एक बार एलजेर्ंस का चेकअप करना होगा। इनहेलर में भी बदलाव करना होगा। चेस्ट फिजीशियन को दोबारा दिखाकर दवा की डोज तय कराएं।
सवाल : सात वर्ष का बेटा है। अक्सर जुकाम रहता है। छींक बहुत आती है।(आरके द्विवेदी, बाराबंकी )
जवाब : बच्चे में एलर्जिक राइनाइटिस के लक्षण हैं। ईएनटी के डॉक्टर को दिखाएं। घर में साफ-सफाई का ध्यान रखें।
सवाल : 58 वर्ष की पत्नी हैं। खांसी आ रही है। डॉक्टर ने अस्थमा बताया है।(रमेश अरोड़ा, लखनऊ)
जवाब : अस्थमा को दवा के जरिये नियंत्रित किया जा सकता है। इनहेलर थेरेपी लें। इसका दुष्प्रभाव नहीं होता है।
सवाल : पापा को अस्थमा है। गुर्दे की पथरी का ऑपरेशन होना है। संभव नहीं हो पा रहा है, क्या करें। (रामजी, हरदोई)
जवाब : पहले अस्थमा को ठीक तरीके से कंट्रोल किया जाए। दवाओं के जरिये फेफड़ों की क्षमता मेनटेन की जाए। इसके बाद ऑपरेशन किया जाए।
सवाल : 73 वर्ष का हूं। अस्थमा का रोगी हूं। दवा बंद कर देते ही दिक्कत बढ़ जाती है।(पीपी मिश्र, प्रतापगढ़ )
जवाब : इलाज बंद करना ठीक नहीं है, बल्कि 50 वर्ष के ऊपर के मरीजों में दवा बदलनी पड़ती है। चेस्ट फिजीशियन को दिखाकर नियमित इलाज कराएं।
सवाल : डॉक्टर को कई बार दिखाया। अस्थमा बताया। धूल-धुआं से दिक्कत नहीं जा रही है।(अनिल, लखनऊ)
जवाब : धूल-धुआं से बचाव करें। बाहर निकलने पर मॉस्क लगाएं। यदि उम्र 50 के पार हो गई है तो दवा में बदलाव करना होगा।
सवाल : 68 वर्ष का हूं। योग-प्राणायाम करता हूं। इससे क्या सांस की बीमारी नहीं होगी।(आनंद अवस्थी, लखनऊ)
जवाब : योगा करने से इम्यून व फिजिकल पावर बढ़ती है। स्वस्थ्य जीवनशैली अपनाने पर जीवन लंबा होगा। मगर, बीमारी न होने की यह कोई गारंटी नहीं दी जा सकती।
सवाल : 19 वर्ष का हूं। अक्सर जुकाम हो जाता है और छींक बहुत आती है।(प्रियांशु, लखीमपुर )
जवाब : यदि चलने-फिरने में सांस नहीं फूलती है। ऐसे में ईएनटी के डॉक्टर को दिखाएं।
सीटी बजे तो हो जाएं सतर्क
स्थमा सांस की बीमारी है। इसमें श्वसन नलिकाओं में सूजन आ जाती है। जिन व्यक्तियों में आनुवांशिक प्रवृत्ति होती है। उन्हें प्रदूषण की चपेट में आने पर खतरा बढ़ जाता है। ऐसे लोगों को एर्जेस व प्रदूषित कणों से बचाव करना होगा। कफ, खांसी, सांस फूलना व श्वसन प्रक्रिया के वक्त सीटी जैसी आवाज निकले तो सतर्क हो जाएं। डॉक्टर से जांच कराकर इलाज कराएं। बुखार, वजन कम होना, भूख न लगने जैसी दिक्कत टीबी या लंग कैंसर का खतरा हो सकता है।
घर के प्रदूषण पर अंकुश लगाएं
घर में धूप बत्ती, अगर बत्ती के बजाय घी का छोटा दीपक जलाएं। इस दरम्यान खिड़की खोल दें। वहीं क्वॉयल का इस्तेमान न करें। पर्दे, दरी, सोफा पर धूल न जमने दें। डस्टबिन में अधिक दिन कूड़ा रखने से रेडॉन गैस निकलती है। ऐसे में कूड़े का रोजना निस्तारण करें।
30 फीसद बढ़ी सांस की बीमारी
डॉ. आलोक नाथ के मुताबिक, सांस की बीमारी देश में बढ़ रही है। इसका प्रमुख कारण प्रदूषण है। इंडिया चेस्ट रिसर्च फाउंडेशन का गत वर्ष शोध प्रकाशित हुआ। इसमें देश में 30 फीसद सांस संबंधी बीमारी व उससे मृत्यु दर में इजाफा बताया गया।
दूर करें भ्रम
- इनहेलर लेने में संकोच न करें, यह फस्र्ट लाइन थेरेपी है
- मम्मी-पापा को अस्थमा है तो जरूरी नहीं कि उनके सभी बच्चों को हो जाए
- अस्थमा में उसी चीज का परहेज करें, जिससे एलर्जी हो। खानपान को लेकर अधिक घबराए नहीं
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