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रमजान विशेष: दूर दूर से आते हैं अवधी लज्जत के शौकिन, यहां उठाएं शाही टुकड़े का लुत्फ

दैनिक जागरण आपको रमजान के मौके पर अवधी लज्जतों के बारे में बजा रहा है। यहां नहारी-कुल्चा हो या शीरमाल व गलावटी कबाब हो या बिरयानी इनका लुत्फ उठाने पुराने शहर की गलियों में पहुंचते

By Divyansh RastogiEdited By: Published: Fri, 10 May 2019 04:46 PM (IST)Updated: Mon, 13 May 2019 08:44 AM (IST)
रमजान विशेष: दूर दूर से आते हैं अवधी लज्जत के शौकिन, यहां उठाएं शाही टुकड़े का लुत्फ
रमजान विशेष: दूर दूर से आते हैं अवधी लज्जत के शौकिन, यहां उठाएं शाही टुकड़े का लुत्फ

लखनऊ, जेएनएन। गलावटी कबाब हो या बिरयानी। नहारी-कुल्चा हो या शीरमाल। पूरी दुनिया नवाबों के शहर के जायके की दीवानी है। यहां की लज्जत किसी और शहर में नहीं मिलती। अवधी व्यंजनों का लुत्फ उठाने के लिए वैसे तो सालभर शहर के होटलों में खाने के शौकीनों की भीड़ जुटती है, लेकिन रमजान के दिनों की बात ही कुछ अलग है। माह-ए-मुबारक में खाने के शौकीनों की संख्या कई गुना बढ़ जाती है, जो रात ढलने के साथ लगातार बढ़ती जाती है। हो भी क्यों न। खाने के शौकीन साल भर जिन व्यंजनों से दूर रहते हैं उन लज्जतों का लुत्फ उठाने के लिए इन दिनों अकबरी गेट, नक्खास, मौलवीगंज, पाटानाला, अमीनाबाद व नजीराबाद की ओर चले आते हैं। यही वजह है कि न केवल शहर, बल्कि कानुपर, सीतापुर, हरदोई व रायबरेली सहित अन्य शहरों से भी स्वाद के शौकीन उन लज्जतों का लुत्फ उठाने पुराने शहर की गलियों में पहुंचते हैं।

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नहारी-कुल्चा

वैसे तो आम दिनों में भी कुछ एक जगह नहारी-कुल्चा मिलता है, लेकिन रमजान के दिनों में नहारी-कुल्चे की मांग सबसे ज्यादा रहती है। यही वजह है कि आम दिनों में जिन होटलों पर नहारी-कुल्चा नहीं मिलता वह भी बाहर से बावर्ची बुलाकर नहारी-कुल्चा बनवाते हैं। पूरी रात शौकीन नहारी-कुल्चे का लुत्फ उठाते हैं, लेकिन सुबह सहरी में नहारी-कुल्चे का आनंद ही कुछ और होता है।

लच्छा

ईद में जितनी मांग सिवईं की होती है, रमजान में उतनी ही मांग लच्छे की रहती है। रोजेदार रमजान में दूध के साथ लच्छे खाना बहुत पसंद करते हैं। खासकर सहरी के समय। इन दिनों पुराने शहर में जगह-जगह लच्छे बिक रहे हैं, जबकि आम दिनों में नहीं मिलते, इसलिए रोजेदार सहरी के लिए लच्छे जरूर खरीदते हैं।

नहारी संग गिरदे

रमजान के दिनों में ही केवल गिरदे मिलते हैं, जो देखने में कुल्चे की तरह होते हैं। लेकिन कुल्चे से पतले होते हैं। राजाबाजार के एक होटल में गिरदे मिलते हैं। वह भी केवल रमजान के एक महीने। इसलिए नहारी के साथ गिरदे खाने के लिए दूर-दूर से शौकीन होटल में जमा होते हैं। इफ्तार के बाद से सुबह सहरी तक रोजेदारों की भीड़ जुटती है।

पसिंदे

जिस तरह सीक कबाब, चिकन टिक्का और रोस्टेट चिकन को लोहे की सींक में फंसाकर कोयले की आंच पर पकाते हैं उसी तरह पसिंदे को भी तैयार किया जाता है। अकबरी गेट, मौलवीगंज व अमीनाबाद के होटलों में पसिंदे का लुत्फ उठाया जा सकता है। यह भी एक तरह का बोटी कबाब होता है।

सुहाल व शाखें

इफ्तार में सुहाल और शाखें बहुत पसंद की जाती हैं। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि रमजान में सबसे ज्यादा मांग सुहाल व शाखों की होती है। इतना बड़ा सुहाल आम दिनों में नहीं मिलता, न ही मीठी-नमकीन शाखें। मस्जिदों में होने वाली इफ्तारी की प्लेटों में सुहाल व शाखें जरूर होती हैं।

माह-ए-मुबारक में कई गुना बढ़ जाती है खाने के शौकीनों की संख्या

 

शाही टुकड़ा व खीर

मीठे में सबसे ज्यादा डिमांड रमजान में शाही टुकड़े व जाफरानी खीर की होती है। तरावीह की नमाज के बाद रोजेदार शाही टुकड़ा व जाफरानी खीर का जायका लेने निकलते हैं। वहीं, रात को खाने के बाद भी लोगों की भीड़ जुटती है। इसी तरह जाफरानी खीर भी केवल रमजान के दिनों में ही मिलती है। नजीराबाद और नक्खास सहित कई इलाकों में शाही टुकड़े व खीर की दुकानें लगती हैं।

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