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मौज-मस्ती नहीं, मर्दानी की कहानी बता रहा लखनऊ का ये जनाना पार्क Lucknow News

1934 में बनकर तैयार हुए इस पार्क का बेहद गौरवशाली इतिहास है। शहर के सबसे बड़े और व्यस्ततम मार्केट के बीच में यह पार्क बना है। पार्क की चौहद्दी पर अवैध कब्जे हैैं।

By Divyansh RastogiEdited By: Published: Fri, 25 Oct 2019 03:06 PM (IST)Updated: Sun, 27 Oct 2019 09:34 AM (IST)
मौज-मस्ती नहीं, मर्दानी की कहानी बता रहा लखनऊ का ये जनाना पार्क Lucknow News
मौज-मस्ती नहीं, मर्दानी की कहानी बता रहा लखनऊ का ये जनाना पार्क Lucknow News

लखनऊ [पवन तिवारी]। पार्क...नाम सुनते ही जेहन में सबसे पहला जो चित्र उभरता है, वह है मौज-मस्ती की जगह का। जनाना पार्क की बात मौज-मस्ती या मनोरंजन से जरा हटकर है। वह सैर-सपाटे से जुड़ी न होकर आजादी की लड़ाई से वाबस्ता है। आज हम आपको उस पार्क की सैर कराने ले चल रहे हैैं, जो जंग-ए-आजादी के दौरान लखनऊ की बेटियों, बहुओं के जज्बे की कहानी कहता है।

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जाम से ठसाठस अमीनाबाद की गलियों से गुजरते हम जनाना पार्क पहुंचे। इसकी हालत देखी नहीं गई। दो दिन पहले पार्क के सिलसिले में फोन पर बात करते वक्त बज्म-ए-खवातीन की अध्यक्ष बेगम शहनाज सिदरत ने मुझसे गलत नहीं कहा था-आप खुद ही जाकर देख लें पार्क की हालत। वे कहती हैैं देखरेख नगर निगम की है। मौजूदा मेयर खुद महिला हैैं, उनसे बड़ी उम्मीद है कि कम से कम वे हमारे लिए कुछ करेंगी।

शहर के सबसे बड़े और व्यस्ततम मार्केट के बीचोबीच यह पार्क पहली नजर में डंपिंग ग्राउंड सा नजर आता है। आसपास के दुकानदार इसमें कचरा फेंकते हैैं। पार्क की चौहद्दी पर अवैध कब्जे हैैं। मेनगेट से प्रवेश करते ही रैैंप बना है, जिसके ऊपर फाइबर शीट का शेड बनाया गया था। शेड जगह-जगह से उजड़ चुका है। पार्क में बैठकी लगाए कुछ लोगों ने बताया-कल नगर निगम के कोई बड़े अफसर आए थे, जिसके बाद आज इसकी झाड़-झंखाड़ हटाई जा रही।

कब और कैसे बना?

1934 में बनकर तैयार हुआ। इस पार्क का बेहद गौरवशाली इतिहास है। कहा जाता है कि अपने जमाने में दुनिया का यह ऐसा इकलौता पार्क था, जो सिर्फ महिलाओं के लिए बनाया गया था। बेगम शहनाज बताती हैैं कि स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान 1920 में महात्मा गांधी लखनऊ आए थे। उनकी ख्वाहिश थी कि यहां की महिलाएं भी घरों से बाहर निकलें और आजादी के आंदोलन में योगदान दें। उनकी यह मंशा पूरी हुई और उस समय के कुलीन समाजसेवी और नेता बाबू गंगा प्रसाद वर्मा ने अपने पैसे से पार्क के लिए जमीन खरीदी। उनकी दरियादिली थी कि यह जमीन उन्होंने बज्म-ए-खवातीन को दान कर दी। इसके बाद पार्क बनकर तैयार हुआ और लखनऊ की हर खास-ओ-आम घरों की महिलाएं यहां जुटने लगीं। बकौल बेगम शहनाज, आजादी के आंदोलन ही नहीं भारत-चीन युद्ध में भी इस पार्क से देश के सैनिकों का मनोबल बढ़ाया गया। साल 1962 में महिलाओं ने इस पार्क से लेकर मोतीमहल लॉन तक मार्च किया। ऐसा पहली बार हुआ कि महिलाएं सड़क पर उतरीं। वे हजारों की तादाद में थीं और नारे लगा रही थीं-हमें भी लडऩे दो। उस वक्त पं. जवाहर लाल नेहरू संयोग से लखनऊ में ही थे। महिलाओं ने उनको ज्ञापन सौंपकर युद्ध में जाने की इजाजत भी मांगी।

हर महीने की 15 तारीख को जुटती हैैं महिलाएं

जनाना पार्क में हर महीने की 15 तारीख को दिन में दो बजे से शाम पांच बजे तक महिलाओं की महफिल जमती है। इस महफिल में योगा कैंप के अलावा महिलाओं की काउंसलिंग होती है और शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वच्छता, कानूनी अधिकार जैसा विषयों पर उनको जागरूक किया जाता है।

जल्द ही पुराने स्वरूप में लाएंगे

  • नगर आयुक्त डॉ. इंद्रमणि त्रिपाठी के मुताबिक, जनाना पार्क वाकई अभिशप्त है। इसे जल्द ही पुराने गौरवशाली स्वरूप में वापस लाएंगे। इसे महिलाओं की थीम पर विकसित किया जाएगा। मीना मंच स्थापित होगा। पार्क में पिंक टॉयलेट बनाया जाएगा। सुरक्षा गार्ड भी तैनात किए जाएंगे। 
  • बज्म-ए-खवातीन की अध्यक्ष बेगम शहनाज सिदरत का कहना है कि पार्क की हालत के बारे में क्या कहूं? हर महीने होने वाली मीटिंग में हम लोग कैसे वहां बैठते है, यह हम ही जानते हैैं। किसी जमाने में दुनिया का इकलौता जनाना पार्क था। पार्क की हालत सुधरे तो महिलाएं यहां आएंगी, जिससे उनका सामाजिक दायरा बढ़ेगा। एक-दूसरे से वे नई चीजें सीखेंगी-सिखाएंगी। 

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