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अब जवानी टेक रही घुटने, कहीं आप भी तो इसके शिकार नहीं Lucknow News

अब वर्ष से कम उम्र में ही होने लगी घुटनों में दिक्कत। साइंटिफिक कन्वेंशन सेंटर में शुरू हुई दो दिवसीय आथरेस्कोपी कॉनक्लेव में विशेषज्ञों ने यह जानकारी दी।

By Divyansh RastogiEdited By: Published: Sun, 11 Aug 2019 09:37 AM (IST)Updated: Mon, 12 Aug 2019 08:23 AM (IST)
अब जवानी टेक रही घुटने, कहीं आप भी तो इसके शिकार नहीं Lucknow News
अब जवानी टेक रही घुटने, कहीं आप भी तो इसके शिकार नहीं Lucknow News

लखनऊ, जेएनएन। घुटनों की दिक्कत अब बुजुर्गो तक ही सीमित नहीं रही। युवा भी इसकी जद में आ रहे हैं। सड़क दुर्घटनाओं के बढऩे से घुटना चोटिल के केसों में काफी बढ़ोतरी हो रही है। इसके लिए पारंपरिक ओपन सर्जरी की जगह आथरेस्कोपिक सर्जरी काफी बेहतर होती है। इसमें मरीज को दर्द भी कम होता है और इलाज का खर्च भी अपेक्षाकृत कम आता है। साइंटिफिक कन्वेंशन सेंटर में शुरू हुई दो दिवसीय आथरेस्कोपी कॉनक्लेव में विशेषज्ञों ने यह जानकारी दी। कॉनक्लेव में देश भर के कई आथरे सर्जनों ने हिस्सा लिया। यहां सात मरीजों की लाइव सर्जरी भी की गई।

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केजीएमयू के स्पोर्ट्स इंजरी विभाग के सर्जन डॉ. आशीष ने बताया कि आथरेस्कोपी सर्जरी में अब नए एडवांसमेंट हुए हैं, जिससे मरीजों को काफी सहूलियत हो रही है। रोटेटर कफ रिपेयर, पोस्टीरियर क्रूशिएट लिगामेंट रिपेयर जैसी तकनीकों से सर्जन को भी काफी सुविधा होती है। उन्होंने बताया कि सर्जरी में इस्तेमाल होने वाली दूरबीन और लेंस भी काफी उन्नत हो चुके हैं। आथरेस्कोप वायरलेस हो गए हैं।

लिगामेंट बनाना भी हो गया है आसान

दिल्ली के डॉ. दीपक जोशी ने बताया कि लिगामेंट खराब होने से अब दूसरा लिगामेंट बनाना आसान हो गया है। हम जांघ की टेंडन को लिगामेंट की जगह पर लगा देते हैं। छह से सात महीने में यह लिगामेंट में तब्दील हो जाता है। घुटनों में यह सर्जरी आसान होती है जबकि कंधे में लिगामेंट रिपेयर किए जाते हैं। पहले इस तरह की सर्जरी यहां मुमकिन नहीं थी।

इंजरी के प्रति खिलाड़ी रहें सजग

डॉ. आशीष ने बताया कि लोग विभिन्न खेलों में हिस्सा ले रहे हैं, लिहाजा इंजरी भी ज्यादा हो रही है। सबसे ज्यादा दिक्कत लॉन्ग जंप के खिलाडिय़ों को होती है। गलत लैंडिंग से उनके लिगामेंट डैमेज हो जाते हैं। इसके अलावा हॉकी व फुटबॉल में भी काफी इंजरी होती है।

पूरी सर्जरी में सिर्फ चार एमएम के दो छेद करने पड़ते हैं

कोलकाता से आए इंडियन आथरेस्कोपिक सोसायटी के सेक्रेटरी डॉ. स्वर्णेदु सामंता ने बताया कि ओपन सर्जरी में लंबा चीरा लगाकर जख्म को खोलना पड़ता था। इसमें मरीज को काफी दर्द होता है। वहीं आथरेस्कोपिक सर्जरी में चार एमएम के सिर्फ दो छेद करने पड़ते हैं। इसमें दवाएं भी कम देनी पड़ती हैं। मरीज की रिकवरी जल्दी होती है तो उसे अस्पताल से जल्दी छुट्टी मिल जाती है। इस लिहाज से यह ओपन सर्जरी से किफायती पड़ता है। इन्फेक्शन का खतरा भी काफी कम होता है। हर लिहाज से यह बेहतर है।

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