बच्चों ने शिद्दत से की खुदा की इबादत, न भूख लगी न प्यास
दैनिक जागरण से बच्चों ने शेयर किए अपने पहने रोजा के अनुभव, जो आपको बता रहा है।
लखनऊ[जुनैद अहमद]। मुकद्दस महीने रमजान में एक नेकी के बदले 70 नेकियों का सवाब मिलता है। रहमतों और बरकतों के इन दिनों में रोजेदार न सिर्फ खुदा के लिए अपनी शिद्दत बल्कि इंसानियत के लिए अपनी चाहत भी परखते हैं। इबादत की इस कतार में बुधवार (23 मई)को कई नन्हे रोजेदार भी शामिल हुए। इस रमजान कई बच्चों की रोजा कुशाई की रस्म अदा कराई गई। इस गर्मी के मौसम में रोजा 15 घटे से अधिक का है। इस मौसम में छोटे तो दूर बड़े लोग भी रोजा मुश्किल से रख पाते हैं। ऐसे में इन नन्हें बच्चों का हौसला काबिल-ए-तारीफ है। बच्चों ने बताया रमजान के पाक महीने का रोजा रखकर काफी अच्छा लग रहा है। हम भी पूरी शिद्दत से खुदा की इबादत कर रहे हैं.। अम्मी ने बताई रोजे की फजीलत
अमीनाबाद की दस वर्षीय अमल आयाज ने बताया कि अम्मी फिजा अयाज ने उन्हें रोजे की फजीलत के बारे में बताया। हर साल रमजान में घर में सभी बड़े रोजा रखते हैं, इस बार मैंने भी रोजा रखा, बहुत अच्छा लगा। गर्मी बहुत थी इसलिए घर में रही। अम्मी के साथ ही पाचों वक्त की नमाज अदा की। शाम को मगरिब में पूरे परिवार के साथ इफ्तार किया। इफ्तार में नीबू का शरबत व खजूर समेत मनपसंद चीजें खाईं।
आठ साल की उम्र में रखा पहला रोजा
बालागंज के अनीस गाजी की आठ साल की बेटी सायबा अनीस ने इस रमजान में पहला रोजा रखा। इतनी छोटी उम्र में भी रोजा रखा और रमजान में सवाब कमाया। सायबा ने बताया कि अम्मी यासमीन रोजा रखती हैं तो उनसे रोजा रखने की इच्छा जाहिर की। फिर इस रमजान में पहला रोजा रखा। परिवार के साथ सहरी की नमाज पढ़ी। इफ्तार में अम्मी ने मेरी मनपसंद चीजें बनाई। दिन में तस्बीह पढ़ी और नमाज पढ़ी और दिन गुजर गया। रोजा रखना बहुत अफजल
अमीनाबाद गोइन रोड के रहने वाले अयाज अहमद के 13 साल के बेटे फजर आयाज ने भी इस रमजान अपना पहला रोजा रखा। फजर ने बताया कि मस्जिद में रोज रोजे की फजीलत के बारे में बताई जाती है। मौलाना बताते हैं कि रमजान में रोजा रखना बहुत अफजल है। इस महीने में एक नेकी के बदले 70 नेकी मिलती है। इतनी गर्मी के बावजूद रोजा पता ही नहीं चला। सुबह सहरी के बाद नमाज पढ़ी फिर कुरआन की तिलावत की। दिन कैसे गुजर गया पता ही नहीं चला। कुरआन की तिलावत में बीतता है दिन
इस तप्ती गर्मी के मौसम में रमजानुल मुबारक में अपना पहला रोजा रखने वाले 13 साल के मिन्हाल बताते हैं कि उनका दिन कुरआन शरीफ की तिलावत में बीतता है। हुसैनाबाद निवासी मिन्हाल बताया कि सहरी में दूध के खजूर और सूतफेनी खाई थी। उसके बाद शाम को इफ्तार में अम्मी ने मेरी पसंद की चीजें बनाई। उन्होंने बताया कि गर्मी तो बहुत थी लेकिन रोजा पता ही नहीं चला। न तो भूख लगी और न ही प्यास, पूरा दिन कट गया। अल्लाह हमारे रोजे को कबूल फरमाए। सिर्फ भूखे-प्यासे रहना ही रोजा नहीं
रमजान के महीने को नेकियों का महीना भी कहा जाता है। इस पाक महीने में कुरआन शरीफ नाजिल हुआ था, इस भीषण गर्मी में रोजा किसी इम्तेहान से कम नहीं होता है। कुरआन शरीफ में रोजे का मतलब होता है तकवा यानि बुराइयों से बचना और भलाई को अपनाना। सिर्फ भूखे-प्यासे रहने का नाम रोजा नहीं होता है।1फजरमिन्हालअमल