गर्भावस्था का तनाव शिशु का घोट रहा दम, केजीएमयू के एनआइसीयू में साल भर में भर्ती 22 सौ के करीब बच्चे
केजीएमयू के एनआइसीयू में वर्ष भर में भर्ती हुए 22 सौ के करीब ब'चे, इंफेक्शन, बर्थ एस्फेक्सिया बन रहा मौत का कारण।
लखनऊ(जागरण संवाददाता)। गर्भावस्था के दौरान तनाव लेना घातक है। कारण, ऐसी स्थिति में मा से गर्भ में पल रहे शिशु को पर्याप्त रक्त की आपूर्ति नहीं हो पाती है। लिहाजा उसके शरीर में ऑक्सीजन की मात्रा भी घट जाती है, जो शिशु के मौत का कारण बन जाता है।
ये बातें केजीएमयू की बाल रोग चिकित्सक डॉ. शालिनी त्रिपाठी ने कहीं। उन्होंने एनआइसीयू में भर्ती होने वाले गंभीर बच्चों की बीमारी के बारे में भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि गर्भावस्था, प्रसव व उसके बाद शिशुओं की मौत के कुछ प्रमुख कारण हैं। इसमें गर्भावस्था के दौरान महिला के तनाव में रहने पर प्री-एक्लेम्सिया हो जाता है। इसमें शिशु को ब्लड की आपूर्ति न मिलने से उसके शरीर में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है। इससे बच्चे की गर्भ में ही मौत हो जाती है।
डॉ. शालिनी ने कहा कि एनआइसीयू में वर्ष 2017 में कुल 2279 बच्चे भर्ती हुए। ये बच्चे प्री-मेच्योर बर्थ, इंफेक्शन, बर्थ एस्फेक्सिया व बर्थ डिफेक्ट की समस्या से घिरे थे। उन्होंने बताया कि यह सभी बच्चे 28 दिन के अंदर के थे। उसमें 405 बर्थ एस्फेक्सिया से पीड़ित थे। इनमें से काफी प्रयास के बावजूद 125 शिशुओं की जिंदगी बचाई नहीं जा सकी।
ब्रेन, हार्ट, किडनी पर इफेक्ट:
डॉ. शालिनी के मुताबिक, बर्थ एस्फेक्सिया में शिशु के शरीर में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है। इससे सबसे पहले ब्रेन, हार्ट व किडनी पर प्रभाव पड़ता है, जोकि उसकी मौत का कारण बनते हैं। यह समस्या शिशु के गले में चारों ओर नाल फंसने से, मा का बीपी बढ़ा होने पर, शिशु का आकार बढ़ा होना और मा का पैल्विस कम होने से सामान्य प्रसव में दिक्कत होने पर, जन्म के समय बच्चे के न रोने पर होती है।
यह भी जानें:
- जापान में नवजात शिशु मृत्युदर सबसे कम, यहा प्रति हजार पर 0.9 की मौत
- पाकिस्तान में नवजात शिशु मृत्युदर सबसे अधिक, यहा प्रति हजार 45.6 की मौत होती है
- भारत में शिशु मृत्युदर 25.4 प्रति हजार, 2030 तक 12 प्रति हजार लाने का लक्ष्य
- यूपी, मध्य प्रदेश, राजस्थान व बिहार में सबसे अधिक मौतें
- जन्म के पहले 28 दिन शिशु के नियोनेटल पीरियड कहलाते हैं। शिशु मृत्यु :
- प्रसव पूर्व :35 फीसद
- संक्रमण : 33 फीसद
- बर्थ एस्फेक्सिया : 20 फीसद
- बर्थ डिफेक्ट : 09 फीसद।