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Ken-Betwa Link Project: इस एक कदम से बुझेगी लोगों की प्यास, आएगा विकास

Ken-Betwa Link Project के पूरा हो जाने के बाद उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में 12 लाख हेक्टेयर भूमि में दो-तीन बार फसल ली जा सकेगी। इससे कई गुना आमदनी बढ़ेगी। प्रदेश के बांदा चित्रकूट हमीरपुर महोबा झांसी और ललितपुर जैसे जिलों को लाभ मिलेगा।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Tue, 30 Mar 2021 09:34 AM (IST)Updated: Tue, 30 Mar 2021 10:22 AM (IST)
Ken-Betwa Link Project: इस एक कदम से बुझेगी लोगों की प्यास, आएगा विकास
अवैध खनन के कारण हमीरपुर में सूखने के कगार पर बेतवा नदी। अनुराग मिश्र

लखनऊ, राजू मिश्र। Ken-Betwa Link Project प्रतीक्षा तो तब से हो रही थी, जब अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे। इसके बाद लंबा समय व्यतीत हो गया। लेकिन पिछले सप्ताह आखिर वह दिन आ गया जब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने एक समझौता पत्र पर हस्ताक्षर किए। यह हस्ताक्षर हुए देश की पहली नदी जोड़ो परियोजना (केन-बेतवा लिंक) के लिए। इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी वीडियो माध्यम से मौजूद थे। इस अवसर पर उन्होंने जो टिप्पणी की, वह महत्वपूर्ण है। उनका कहना था कि मुख्यमंत्रियों ने सिर्फ कागज पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं, बल्कि बुंदेलखंड की भाग्यरेखा को नया रंग-रूप दिया है। इससे प्यास बुझेगी और विकास होगा।

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दरअसल, नदियों को जोड़ने की प्रेरणा और प्रयास पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के समय शुरू किए गए थे। लेकिन बाद की सरकारें इस पर आगे नहीं बढ़ीं। न तो केंद्र और न ही राज्य सरकारों ने इस परियोजना के महत्व को समझा। नदियों को जोड़ने की योजना के पीछे एक स्थापित विचार था। दो उद्देश्य थे। पहला, आम तौर पर भारत में मानसून के दौरान बादल खूब बरसते हैं। सागर से पानी लेकर आते हैं और धरती की कोख हरी करते हैं। जब तक पर्यावरण संतुलित रहा, यह क्रम चलता रहा। अब बादल बरसते हैं और पानी ढलान पर दौड़ता हुआ नदियों और नदियों से पुन: सागर में समा जाता है। इस प्रकार से धरती प्यासी ही रह जाती है। पानी कहीं ठहराव नहीं पाता। इसके गहरे साइड इफेक्ट देखने को मिले हैं। बुंदेलखंड की तो विडंबना ही यही रही है कि पानी के अभाव में वर्षो से सूखती धरती अब बंजर हो गई है।

केन-बेतवा लिंक उसी नदी जोड़ो परियोजना की दिशा में बढ़ा पहला कदम है जिससे पहला लक्ष्य तो हासिल ही होगा, साथ ही इस पानी का संग्रहण व वितरण कर बुंदेलखंड की धरती और पुत्रों की प्यास भी बुझाई जा सकेगी। बुंदेलखंड क्षेत्र दशकों से उपेक्षित रहा है। इसका एक कारण पानी भी रहा, जिसकी वजह से पलायन भी हद दर्जे तक हुआ। अब यह परियोजना शुरू हो रही है तो बुंदेलखंड के विकास की दिशा में किए जा रहे अन्य उपायों के साथ केन-बेतवा का पानी अमृत का काम करेगा। इस परियोजना के पूरा हो जाने के बाद उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में 12 लाख हेक्टेयर भूमि में दो-तीन बार फसल ली जा सकेगी। इससे कई गुना आमदनी बढ़ेगी। प्रदेश के बांदा, चित्रकूट, हमीरपुर, महोबा, झांसी और ललितपुर जैसे जिलों को लाभ मिलेगा। परोक्ष रूप से भी कई जिले लाभान्वित होंगे।

केन नदी मध्य प्रदेश के जबलपुर के पास कैमूर की पहाड़ियों से निकलकर करीब 427 किमी उत्तर की ओर बहते हुए बांदा जिले के चिल्ला गांव में यमुना नदी से मिलती है। इसी तरह बेतवा मध्य प्रदेश के रायसेन जिले से निकलकर करीब 576 किमी बहकर उत्तर प्रदेश के हमीरपुर जिले में यमुना से मिलती है। अब मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में दौधन गांव के पास केन और बेतवा नदी को जोड़ा जाएगा। यहां बिजली का भी उत्पादन होगा और भूमि की सिंचाई भी संभव होगी। पेयजल परियोजनाओं को भी पानी मिलेगा। पानी की समस्या के समाधान के बाद जब डिफेंस कॉरिडोर और एक्सप्रेस-वे की परियोजना भी पूरी हो जाएगी तो दशकों से दंश ङोल रहे बुंदेलखंड के लिए यह शाप से मुक्ति की ओर प्रगति की दिशा में प्रस्थान बिंदु बन जाएगा।

सुशिक्षित प्रदेश की ओर : कुछ समय पहले तक प्रदेश में डिग्रियां बांटने का जिम्मा केवल राज्य विश्वविद्यालयों के पास था। कुछ केंद्रीय विश्वविद्यालय भी इस दिशा में काम करते रहे। यहां तक कि रेजिडेंशियल यूनिवर्सिटी के दर्जे की लखनऊ यूनिवर्सिटी भी डिग्रियां बांटने वाली संस्था बनकर रह गई। डिग्रियां बांटने की बात इसलिए कही जा रही है, क्योंकि यूनिवर्सिटी का वास्तविक काम होता है शिक्षण और शोध, लेकिन ज्यादातर राज्य विश्वविद्यालयों के साथ कई-कई जिले जोड़कर इन्हें परीक्षा आयोजक संस्था मात्र बना दिया गया। नतीजन, शिक्षक प्रशासकीय कार्यो में व्यस्त हो गए और शोध व शिक्षण का कार्य भूलने लगे। किसी भी विश्वविद्यालय की प्रतिष्ठा केवल परीक्षा कराने मात्र से नहीं बनती, बल्कि इस बात पर निर्भर करती है कि वहां विश्वस्तरीय शोध कितने हुए।

अब तस्वीर बदल रही है। निजी विश्वविद्यालयों के आने से परिदृश्य बदला है। आज कई प्राइवेट यूनिवर्सिटी बेहतर काम कर रही हैं। सरकार की भी योजना है कि मानक पूरा करने वाले ज्यादा से ज्यादा निजी विश्वविद्यालय खोले जाएं, ताकि गुणवत्तापरक शिक्षा मिले। इस दिशा में प्रदेश की मंत्रिपरिषद ने एक बड़ा कदम उठाया है। इससे गोरखपुर, प्रयागराज और फिरोजाबाद में छह नई प्राइवेट यूनिवर्सिटी खुलने का रास्ता साफ हुआ है।

[वरिष्ठ समाचार संपादक, उत्तर प्रदेश]


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