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बच्चों को समझें, मोबाइल एडिक्शन से दूर रखने के ल‍िए दें कार्टून वाली किताबें Lucknow News

अभिभावकों ने प्रश्न पहर में क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ. शाजिया से पूछे बच्चों से जुड़े सवाल।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Wed, 23 Oct 2019 07:54 PM (IST)Updated: Wed, 23 Oct 2019 07:54 PM (IST)
बच्चों को समझें, मोबाइल एडिक्शन से दूर रखने के ल‍िए दें कार्टून वाली किताबें Lucknow News
बच्चों को समझें, मोबाइल एडिक्शन से दूर रखने के ल‍िए दें कार्टून वाली किताबें Lucknow News

लखनऊ, जेएनएन। बच्चों का पढ़ाई से मन भटकना। सामान्य जीवन में उनकी रुचि का बदलना। व्यवहार में चिड़चिड़ापन होना। ऐसे कई लक्षण हैं, जो अभिभावकों के लिए चिंता बढ़ा देते हैं। हालांकि इनके पीछे के कारणों की जांच किए बिना ही कई बार अभिभावक अपने बच्चों को डांट देते हैं। ऐसा करने से बच्चों और अभिभावकों के बीच दूरी बढऩे लगती है। बेहतर होगा कि हम बच्चों को समझें।

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यह भी देखें कि इन दिनों मोबाइल एडिक्शन बच्चों में तेजी से हो रहा है। यदि बच्चा एक घंटे से ज्यादा मोबाइल फोन पर लगा हुआ है। मना करने पर नाराज होता है, तो यह एडिक्शन ही है। बेहतर है कि कम उम्र से ही हम बच्चों को स्मार्ट फोन की जगह खिलौने, कार्टून वाली किताबें और खेलकूद की आदत डालें। अभिभावकों और बच्चों के बीच बढ़ रही संवादहीनता बड़ी चिंता का विषय है। बुधवार को दैनिक जागरण के प्रश्न पहर कार्यक्रम में क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ. शाजिया अभिभावकों के सवालों के जवाब दिए।

सवाल : बच्चा दसवीं में है। अपने मन से पढ़ता है। सुनता नहीं है। 

[ विभा शुक्ला, बछरावां]

जवाब : इस अवस्था में बच्चों को फटकारने या तेज आवाज में बात करने से काम नहीं बनेगा। कुछ बच्चे देर रात तक पढ़ सकते हैं, लेकिन सुबह नहीं। ऐसे में उनपर अपनी मर्जी का दबाव न डालें। एक दोस्त की तरह उनकी दिनचर्या को बदलें। 

सवाल : मेरी उम्र 66 साल है। दो बेटे हैं, लेकिन वह ख्याल नहीं रखते। मानसिक तनाव में हूं। 

[प्रेम प्रताप सिंह, रायबरेली] 

जवाब : अपनी विचारधारा बदलें। ऐसी स्थिति में आप उनसे कम उम्मीदें रखें तो बेहतर है। अभी आपको पत्नी के साथ खुशहाल जीवन बिताना चाहिए। 

सवाल : मोबाइल फोन की आदत बच्चे को पड़ गई है। वह सम्मान नहीं देता। 

[ रमाशंकर वाजपेयी, रायबरेली] 

जवाब : कम उम्र से ही स्मार्ट फोन पर रोकथाम लगाएं। मोबाइल फोन के बदले बच्चों को गेम्स, पुस्तक व कलर स्टोरी वाली पुस्तकें दें। आज लाइब्रेरी तो है, लेकिन बच्चों को वहां भेजने वाले अभिभावक नहीं मिलते हैं। 

सवाल : बिजनेसमैन हूं इसलिए बच्चे को समय कम दे पाता हूं। बच्चे ठीक से बात नहीं करते हैं। वह डरते हैं। 

[शिव प्रसाद, रायबरेली] 

जवाब : बच्चों को केवल एक घंटा प्रतिदिन समय दें, लेकिन मोबाइल फोन को दूर रखकर। बच्चों से स्कूल की दिनभर की गतिविधियां पूछें। सप्ताह में एक दिन बच्चों को पार्क व अन्य जगह घुमाने ले जाएं। पत्नी से बोलें कि घर आने पर बच्चों की शिकायतों का अंबार न लगाएं। 

सवाल : दिसंबर में बच्चा 13 साल का होगा। चिड़चिड़ा हो रहा है। उसमें एकाग्रता भी नहीं है। 

[ममता, लखनऊ] 

जवाब : पहले तो यह जरूर देखें कि यह कोई असामान्य प्रवृत्ति तो नहीं है। किशोरावस्था में मूड बदलना स्वाभाविक है। उसकी दूसरों से तुलना न करें। यह प्रेरणा का स्रोत नहीं है। 

सवाल : मेरी 12 साल की बेटी है। पहले पढऩे में अच्छी थी। अब भूलने लगी है।

[राजेश, रायबरेली] 

जवाब : पढ़ाई का अधिक दबाव और इस उम्र में शारीरिक संरचना में बदलाव इसका मुख्य कारण है। उसके व्यवहार को जानने के लिए बच्ची को अधिक समय दें। 

सवाल : मेरा बच्चा मेरी इच्छानुसार नहीं पढ़ता है। वह अलग पढ़ाई करना चाहता है। 

[अनुपम मिश्र, गोंडा] 

जवाब : बच्चा यदि अपने मन के हिसाब से पढ़ाई करना चाहता है, कॅरियर बनाना चाहता है तो उसे कुछ समय देना जरूरी है। 

सवाल : मेरा बच्चा 10 साल का है। घर में भाई-बहन से झगड़ता है स्कूल में डरता है। 

[नेहा, लखनऊ] 

जवाब : बच्चे में विश्वास की कमी इसका मुख्य कारण है। उसे बार-बार टोकें नहीं। बेहतर है कि उसे खेलकूद की किसी गतिविधि में शामिल करें।

सवाल : बच्चा चार घंटे तक मोबाइल फोन पर लगा रहता है। हर काम को कहना पढ़ता है। 

[उपेंद्र पांडेय, गोंडा] 

जवाब : यह एक बीमारी है। मोबाइल फोन का चार घंटे तक इस्तेमाल ही इसका मुख्य कारण है।


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