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अयोध्या में राम मंदिर फैसले की नींव बनी थी उत्खनन रिपोर्ट, कोर्ट के फैसले से अब ज्ञानवापी के सच को भी मिल सकेगा आधार

Kashi Vishwanath Gyanvapi Case काशी विश्वनाथ ज्ञानवापी केस में वाराणसी कोर्ट ने Kashi Vishwanath Gyanvapi Case विवादित ज्ञानवापी परिसर के पुरातात्विक सर्वेक्षण कराने के आदेश जारी किए हैं। कोर्ट के इस फैसले के बाद अयोध्या की तरह अब ज्ञानवापी मस्जिद पुरातात्विक सर्वेक्षण मंदिर पक्ष के दावे की प्रमाणिकता को परखेगा।

By Umesh TiwariEdited By: Published: Fri, 09 Apr 2021 06:00 AM (IST)Updated: Sat, 10 Apr 2021 10:25 AM (IST)
अयोध्या में राम मंदिर फैसले की नींव बनी थी उत्खनन रिपोर्ट, कोर्ट के फैसले से अब ज्ञानवापी के सच को भी मिल सकेगा आधार
सर्वे को मंजूरी मिलने से अयोध्या के राम मंदिर की भांति ज्ञानवापी के सच को भी आधार मिल सकेगा।

लखनऊ, जेएनएन। काशी विश्वनाथ ज्ञानवापी केस में गुरुवार को वाराणसी के सिविल जज सीनियर डिवीजन फास्ट ट्रैक की कोर्ट ने विवादित ज्ञानवापी परिसर के पुरातात्विक सर्वेक्षण कराने के आदेश जारी किए हैं। कोर्ट के इस फैसले के बाद अयोध्या की तरह अब ज्ञानवापी मस्जिद की भी खोदाई कर मंदिर पक्ष के दावे की प्रमाणिकता को परखा जाएगा। जरूरत पड़ने पर आर्कियोलॉजिकल सर्वे आफ इंडिया (एएसआइ) की भी मदद ली जा सकेगी। सर्वे को कोर्ट की मंजूरी मिलने से अयोध्या के राम मंदिर की भांति ज्ञानवापी के सच को भी आधार मिल सकेगा। पुरातात्विक सर्वेक्षण की रिपोर्ट ही राम मंदिर मामले में निर्णायक साबित हुई थी और सुप्रीम कोर्ट तक ने भी इस पर मुहर लगाई थी।

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कोर्ट के आदेश पर वर्ष 2003 से लेकर वर्ष 2005 तक राम जन्मभूमि के इर्द-गिर्द व्यापक स्तर पर पुरातात्विक उत्खनन कराया गया था। इसकी रिपोर्ट ने ही राम मंदिर फैसले की नींव तैयार की थी। उत्खनन में ही यह साक्ष्य सामने आया था कि जिस स्थान पर 1528 में बाबर के आदेश पर उसके सेनापति मीर बाकी ने मंदिर तोड़कर मस्जिद का निर्माण कराया था, उस स्थान पर चिरकाल से मंदिर और हिंदू देवी-देवताओं से संबंधित भवन थे।

चाहे वह 30 सितंबर, 2010 को उच्च न्यायालय का फैसला रहा हो या फिर नौ नवंबर 2019 को आया सर्वोच्च न्यायालय का फैसला रहा हो, दोनों निर्णय में पुरातात्विक उत्खनन में प्राप्त सामग्री और इस सामग्री के आधार पर आर्कियोलॉजिकल सर्वे आफ इंडिया की रिपोर्ट कोर्ट में साक्ष्य के तौर पर प्रमुखता से प्रस्तुत की गई। उत्खनन में हजारों वस्तुएं मिलीं और वे सूचीबद्ध किए जाने के साथ अभी भी संरक्षित है। साकेत महाविद्यालय में प्राचीन इतिहास की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. कविता सिंह पुरातात्विक उत्खनन को वैज्ञानिक विधा करार देती हैं। उनके अनुसार इस माध्यम से नीर क्षीर के विवेचन में अधिक स्पष्टता होगी।

वाराणसी कोर्ट ने सरकार को सर्वेक्षण कराने का दिया निर्देश : ज्ञानवापी परिसर मामले में वादमित्र विजय शंकर रस्तोगी की परिसर का पुरातात्विक सर्वेक्षण कराने की अपील अदालत ने मंजूर कर ली है। वादमित्र के इस प्रार्थना पत्र पर पक्षकारों की बहस सुनने के बाद सिविल जज (सीनियर डिवीजन फास्ट ट्रैक कोर्ट) आशुतोष तिवारी ने केंद्र और राज्य सरकार को यहां का सर्वेक्षण कराने का आदेश दिया है। सर्वे में पुरातात्विक सर्वेक्षण के पांच विख्यात पुराविदों को शामिल करने को कहा है। इन पांच सदस्यों में दो अल्पसंख्यक समुदाय के होंगे। अदालत ने कहा है कि पुरातत्व विज्ञान के एक विशेषज्ञ एवं अत्यंत अनुभवी व्यक्ति को इस कमेटी के पर्यवेक्षक की जिम्मेदारी दी जाए। कमेटी सर्वे स्थल की विस्तृत रिपोर्ट तैयार करेगी। कोर्ट ने यह भी तय किया है कि सर्वे कार्य का संपूर्ण खर्च राज्य सरकार वहन करेगी।

कोर्ट ने सर्वे कराने का बताया उद्देश्य : अदालत ने कहा है कि पुरातात्विक सर्वे का मुख्य उद्देश्य यह है कि उक्त स्थल पर धार्मिक ढांचा किसी अन्य धार्मिक निर्माण पर अविलंबित तो नहीं है और पुरावशेष में क्या परिवर्तन या संवर्धन किया गया है? यदि ऐसा है तो उसकी निश्चित अवधि, आकार, वास्तुशिल्पीय डिजाइन और बनावट विवादित स्थल पर वर्तमान में किस रूप में है? कमेटी इसकी भी खोज करेगी कि विवादित स्थल पर क्या कभी हिंदू समुदाय का कोई मंदिर कभी रहा जिस पर आलोच्य मस्जिद बनाई गई या अध्यारोपित की गई। यदि हां, तो उसकी निश्चित अवधि, आकार, वास्तुशिल्पीय डिजाइन और बनावट के विवरण के साथ किस हिंदू देवता अथवा देवतागण को समर्पित था, इसके भी साक्ष्य जुटाए जाएं।

यह है पूरा मामला : प्राचीन मूर्ति स्वयंभू ज्योतिर्लिंग भगवान विश्वेश्वरनाथ की ओर से पैरवी कर रहे वादमित्र विजय शंकर रस्तोगी ने ज्ञानवापी परिसर का पुरातात्विक सर्वेक्षण कराने के लिए 10 दिसंबर, 2019 को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग से रडार तकनीक से सर्वेक्षण कराने से संबंधित प्रार्थना पत्र कोर्ट में दिया था। प्रार्थना पत्र पर सुनवाई के दौरान वादमित्र विजय शंकर रस्तोगी ने दलील दी थी कि वर्तमान वाद में विवादित स्थल की धार्मिक स्थिति 15 अगस्त, 1947 को मंदिर की थी अथवा मस्जिद की, इसके निर्धारण के लिए मौके के साक्ष्य की आवश्यकता है। चूंकि कथित विवादित स्थल श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर का एक अंश है, इसलिए एक अंश की धार्मिक स्थिति का निर्धारण नहीं किया जा सकता है, बल्कि ज्ञानवापी के पूरे परिसर का भौतिक साक्ष्य लिया जाना जरूरी है। ऐसा इसलिए ताकि 15 अगस्त, 1947 को विवादित स्थल की धार्मिक स्थिति क्या थी इसका निर्धारण किया जा सके।

बता दें कि ज्ञानवापी में नए मंदिर के निर्माण तथा हिंदुओं को पूजा-पाठ करने का अधिकार आदि को लेकर वर्ष 1991 में प्राचीन मूर्ति स्वयंभू ज्योतिर्लिंग भगवान विश्वेश्वरनाथ की ओर से पक्षकार पंडित सोमनाथ व्यास, हरिहर पांडेय आदि ने मुकदमा दायर किया था। इस मुकदमे की सुनवाई सिविल जज सीनियर डिवीजन फास्ट ट्रैक में चल रही है। इसी मुकदमे की पोषणीयता को लेकर हाई कोर्ट में भी सुनवाई लंबित है। दोनों पक्षकारों की गत 15 मार्च को बहस पूरी हो चुकी है और हाई कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा है।


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