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Kaifi Azmi Jayanti 2021: वालिद चाहते थे कैफी आजमी को मौलवी बनाना, वह स्कूल पर फातिहा पढ़कर निकल आए; पढ़ें रोचक किस्‍से

Kaifi Azmi Jayanti 2021 लखनऊ के सुलतानुल मदारिस स्कूल में कराया गया था कैफी साबह दाखिला स्कूल प्रबंधन के भ्रष्टाचार का विरोध करने पर निकाला गया। लखनऊ विश्वविद्यालय के छात्र नेता सरदार जाफरी के जरिए किसान मजदूर सभा ट्रेड यूनियन लीडरों से हुई थी मुलाकात।

By Divyansh RastogiEdited By: Published: Thu, 14 Jan 2021 06:30 AM (IST)Updated: Thu, 14 Jan 2021 05:50 PM (IST)
Kaifi Azmi Jayanti 2021: वालिद चाहते थे कैफी आजमी को मौलवी बनाना, वह स्कूल पर फातिहा पढ़कर निकल आए; पढ़ें रोचक किस्‍से
कैफी आजमी की पैदाइश यूपी के आजमगढ़ जिले के छोटे से गांव मिजवां में 14 जनवरी 1919 को हुई।

लखनऊ [दुर्गा शर्मा]। Kaifi Azmi Jayanti 2021:प्रसिद्ध गीतकार व कवि सैय्यद अतहर हुसैन रिजवी उर्फ कैफी आजमी की शख्सियत से हर कोई वाकिफ है। पर क्या आप ये जानते हैं कि हर हिंदुस्तानी की रगों में अपनी रचनाओं से जोश भरने वाले कैफी साहब को उनके वालिद मौलवी बनाना चाहते थे। कैफी आजमी जमीदारों और जागीरदारों के दौर में पैदा हुए थे। वालिद फारसी में अशआर कहते थे। घर में मीर अनीस के मर्सिये मोहर्रम में पढ़े जाते। कैफी साहब खुद कहा करते थे, मैं बचपन में जब सोता था, मेरी बड़ी बहन मीर अनीस के मर्सिये के कुछ बंद सुना देती थीं। मुझे मीर अनीस के मर्सियों की समझ तो नहीं थी, लेकिन शेरोशायरी से दिलचस्पी उसी वक्त से हुई। कैफी आजमी साहब की जयंती पर दैनिक जागरण उनके जीवन से जुड़े ऐसे ही रोचक किस्‍सों से आपको रूबरू करा रहा...  

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भाई कहते- कैफी जाओ पान लेकर आओ: कैफी आजमी की पैदाइश उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले के छोटे से गांव मिजवां में 14 जनवरी 1919 को हुई। इनके पिता का नाम सैय्यद फतेह हुसैन रिजवी और मां का नाम हफीजुन्निसा था। कैफी ने आठ वर्ष की उम्र में ही लिखना शुरू कर दिया। कैफी साहब के तीन बड़े भाई लखनऊ और अलीगढ़ में पढ़ रहे थे, जब वो छुट्टियों में घर आते तो शेरोशायरी की महफिल सजती। कैफी साहब जाकर खड़े हो जाते तो उनके भाई उनसे कहते, तुम्हें क्या समझ आएगा। तुम जाकर पान वगैरह लेकर आओ। वह नाराज होकर बाहर आ जाते और बड़ी बहन से कहते कि बाजी देखिएगा, मैं भी बड़ा शायर बनकर दिखाऊंगा और उन्होंने ऐसा करके भी दिखा दिया। कैफी साहब ने 12 साल की उम्र में अपनी पहली गजल लिखी, वह बहुत मशहूर हुई। गजल को बेगम अख्तर ने गाया...

इतना तो जिंदगी में किसी के खलल पड़े

हंसने से हो सकून न रोने से कल पड़े

जिस तरह जी रहा हूं मैं पी पी के गर्म अश्क

यूं दूसरा जिये तो कलेजा निकल पड़े

मुद्ददत के बाद उसने जो की लुत्फ की निगाह

दिल खुश तो हो गया मगर आंसू निकल पड़े। 

वालिद चाहते थे मौलवी बने बेटा, वो भ्रष्टाचार से करने लगे जंग: शेरोशायरी से कैफी साहब की मुहब्बत बढ़ती जा रही थी, पर उनके वालिद चाहते थे वह मौलवी बनें। कैफी साहब का दाखिला लखनऊ के सुलतानुल मदारिस स्कूल में इस गरज से कराया गया कि वह मौलवी बनकर अपने बुजुर्गों का फातिहा पढ़ेंगे। कैफी साहब मौलवी तो नहीं बन सके, लेकिन स्कूल पर फातिहा पढ़कर निकल आए। उन्होंने स्कूल प्रबंधन के भ्रष्टाचार का विरोध किया और स्कूल से निकाल दिए गए। इसके बाद वह अपने पड़ोस के गांव माहुल (आजमगढ़) के रहने वाले प्रो. सै. एहतिशाम हुसैन से मिले, जिन्होंने उनको लखनऊ विश्वविद्यालय के छात्र नेता सरदार जाफरी से मिलवाया और उनके जरिए उनकी मुलाकात किसान मजदूर सभा ट्रेड यूनियन लीडरों से हुई और वह लखनऊ छोड़कर कानपुर की मिल मजदूर यूनियन में शामिल हो गए। वहां मिल मजदूरों के साथ गेट मीटिंग में शामिल होकर अपनी नज्मों और गजलों के जरिए मिल मजदूरों की मांगों को आवाम के सामने रखते।

 

..तो इसलिए मुंबई छोड़कर मिजवां आए कैफी: ऑल इंडिया कैफी आजमी अकादमी लखनऊ के महासचिव सैय्यद सईद मेहदी बताते हैं, मेरे वालिद की कैफी साहब से नजदीकी थी। मैं अपने वालिद के हुक्म पर लखनऊ से मिजवां कैफी साहब से मिलने गया था। मैंने जाकर जब अपना परिचय कराया कि मैं ताज माहुली का बेटा हूं तो उन्होंने चारपाई पर लेटे-लेटे हाथ बढ़ाकर मुझे गले से लगाया। बेहद खुश हुए और मुझसे कहने लगे कि तुम लखनऊ से आ रहे हो। मेरे पास यहां तुम्हारी खातिर के लिए कुछ भी नहीं। शौकत कैफी फौरन उठीं और दो ईंट खड़े कर के उस पर एल्यूमिनियम की पतीली रखकर अमरूद और बांस के सूखे पत्तों को जलाकर उन्होंने चाय बनाई। उम्र के उस पड़ाव में जब आदमी सहूलियत पसंद हो जाता है, तब कैफी साहब मुंबई छोड़कर अपने गांव मिजवां चले आए थे। वो अक्‍सर कहते, मैं इस जमीन का कर्ज उतारने आया हूं। गांव की औरतों ने उनके स्वागत में गीत गाया था..

रामचंद्र जी घरे आइले चौदह बरस बाद

मोरे कैफी भैया आइले चालिस बरस बाद...।

निजाम के खिलाफ गजल पर शौकत कैफी ने किया पसंद : कैफी साहब हैदराबाद के निजाम के दरबार में एक मुशायरे में शिरकत के लिए गए। वहां नवाब निजाम हैदराबाद के खिलाफ गजल पढ़ी, जिसके बाद शौकत कैफी ने इनको पसंद किया और इनकी उनसे शादी हो गई। इनकी तीन औलादें हुईं। पहली औलाद का इलाज के अभाव में इंतकाल हो गया। शबाना आजमी और बाबा आजमी अपने-अपने क्षेत्रों में उल्लेखनीय काम कर रहे। कैफी साहब ने फिल्मी दुनिया में गाने और बिलिट्ज अखबार में नई गुलिस्तां कॉलम में लिखकर बच्चों की परवरिश की।

सेमिनार और नाट्य मंचन आज : कैफी आजमी अकादमी में गुरुवार को कैफी आजमी का नस्री इम्तियाज विषय पर सेमिनार और मुंशी प्रेमचंद के नाटकों का मंचन होगा। दोपहर 12 बजे से शुरू साहित्यिक चर्चा में अली अहमद फात्मी, डॉ. नलिन रंजन सिंह, डॉ. खान अहमद फारूक, डॉ. अकबर अली, डॉ. रेशमा परवीन, प्रो. अब्बास रजा नैय्यर और प्रो. शारिब रुदौलवी हिस्सा लेंगे। दोपहर तीन बजे से मुक्ताकाश नाट्य संस्थान, मेरठ की ओर से मुंशी प्रेमचंद के नाटक पंच परमेश्वर पर आधारित नाटक मियां जुम्मन और अलगू चौधरी का मंचन होगा। 

कैफी आजमी के जीवन पर आधारित जावेद अख्तर की एक नज्म..

अजीब आदमी था वो

मोहब्बतों का गीत था

बगावतों का राग था

कभी वो सिर्फ फूल था

कभी वो सिर्फ आग था

अजीब आदमी था वो

वो मुफलिसों से कहता था

कि दिन बदल भी सकते हैं

वो जाबिरों से कहता था

तुम्हारे सिर पे सोने के जो ताज हैं

कभी पिघल भी सकते हैं

वो बंदिशों से कहता था

मैं तुमको तोड़ सकता हूं

सहूलतों से कहता था

मैं तुमको छोड़ सकता हूं

हवाओं से कहता था

मैं तुमको मोड़ सकता हूं

वो ख्वाब से ये कहता था

कि तुमको सच करूंगा मैं

वो गरीबों से कहता था

मैं तेरा हमसफर हूं

मेरे साथ ही चलूंगा मैं

तू चाहे जितनी दूर भी बना ले अपनी मंजिलें

कभी नहीं थकूंगा मैं

वो जिंदगी से कहता था

कि तुझको मैं सजाऊंगा

तूं मुझसे चांद मांग ले

मैं चांद लेके आऊंगा

वो आदमी से कहता था

कि आदमी से प्यार कर

उजड़ रही है ये जमीन

कुछ इसका अब सिंगार कर

अजीब आदमी था वो

वो जिंदगी के सारे गम

तमाम दु:ख हरके सितम से कहता था

मैं तुमसे जीत जाऊंगा

कि तुमको तो मिटा ही दूंगा

एक रोज आदमी

भुला ही देगा ये जहां

मेरी अलग है दास्तां

वो आंखें जिनमें ख्वाब हैं

वो दिल है जिनमें आरजू

वो बाजू जिनमें हैं सकत

वो होंठ जिनमें लफ्ज हैं

रहूंगा उनके दर्मियां

कि जब मैं गीत गाऊंगा

अजीब आदमी था वो।

    • नाम: सैय्यद अतहर हुसैन रिजवी 
    • उपनाम: कैफी आजमी
    • पिता: सैय्यद फतेह हुसैन रिजवी
    • जन्म: 14 जनवरी 1919, जिला आजमगढ़ तहसील फूलपुर ग्राम मिजवां
    • मृत्यु: 10 मई 2002, मुंबई
    • शिक्षा: सुलतानुल मदारिस, लखनऊ विश्वविद्यालय, इलाहाबाद विश्वविद्यालय से उर्दू, अरबी, फारसी की आला तालीम हासिल की।
    • संग्रह: झंकार, आवारा सजदे, आखिरी शब, इबलीस की मजलिसे शूरा, हीर रांझा, फिल्मी नगमों का संकलन, सरमाया, नई गुलिस्तां, कैफियात उनके प्रमुख संकलन हैं।
    • अवार्ड: पद्मश्री, उप्र उर्दू एकेडमी अवार्ड, महाराष्ट्र उर्दू एकेडमी अवार्ड, लोटस अवार्ड-सोवियत रूस, नगमा निगार अवार्ड आदि।

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