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लखनऊ ने लिखी अभाव से प्रभाव तक की कहानी

कला और कलम : अयोध्या से आईं डॉ. मानसी द्विवेदी को शहर ने दी नई पहचान, कवयित्री कुसुम मानसी द्विवेदी के रूप में किया स्थापित।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Sat, 12 Jan 2019 11:54 AM (IST)Updated: Sat, 12 Jan 2019 09:29 PM (IST)
लखनऊ ने लिखी अभाव से प्रभाव तक की कहानी
लखनऊ ने लिखी अभाव से प्रभाव तक की कहानी

लखनऊ [दुर्गा शर्मा] । तरक्की के विविध आयाम संग गमों को भूलने का साजो-सामान लखनऊ में है। मन कैसा भी हो आप किसी न किसी बहाने मुस्करा ही देंगे, ये है शहर-ए-अदब का जादू। ऐसे ही अयोध्या से आईं डॉ. मानसी द्विवेदी को भी लखनऊ ने मुस्कराने की वजह दी। शहर ने कवयित्री कुसुम मानसी द्विवेदी के रूप में पहचान ही नहीं दी, स्थापित भी किया। जल्द ही इनकी किताब ‘अप्रत्याशित’ पाठकों के बीच होगी।

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अयोध्या निवासी मानसी 2009 में रहने के लिए लखनऊ आईं थीं। थोड़े ही समय बाद जीवन में कुछ ऐसा घटा कि लखनऊ छूट गया। कहती हैं, नवाबों की नगरी का जादू ही ऐसा है कि जो एक बार यहां आता है, यहीं का हो जाता है। 2013 में दोबारा लखनऊ आना हुआ। चिनहट, कानपुर रोड और आशियाना आदि जगहों पर रहते-रहते यहां आत्मा बसने लगी। कहती हैं, अगर मेरे संघर्षो का गवाह लखनऊ है तो अभाव से प्रभाव तक का सफर भी लखनऊ ने लिखा। एक कवयित्री के रूप में मेरे मान-सम्मान में श्री वृद्धि की। बहुत सारे अच्छे लोग मिले, जिनकी हौसलाअफजाई ने आगे बढ़ने की हिम्मत दी। 

शहर और शहरवासियों ने कितना दिया, मैं कैसे कहूं। बस यही कहूंगी..

जाने कितने अभिशापों को ङोला- ङोला फिर ङोला,

पर तुमको पाया तो पाया खुशियों का स्थिर मेला,

तुम मुझको जो चाहे लिखना

मैं नदिया की नाव लिखूंगी,

जब-जब धूप पड़ेगी सिर पर तुमको शीतल छांव लिखूंगी।।

कविता संग अंकगणित का साहित्यिक शिक्षण

नारी विमर्श और लीक से हटकर गीतों को लिखने वालीं डॉ. मानसी द्विवेदी की काव्य धारा का हर रंग खास है। भावनाओं का सागर होने के साथ ही इनकी कविताएं गणित की बातें भी करती हैं..

आकर्षण बस मास दिवस के वो ठहरे जो नेक रहे,

मन की सांकल खुली तुम्हीं से रिश्ते भले अनेक रहे।

गुणा-भाग वाले जीवन में सब संबंध दशमलव पर,

मन के अंकगणित में हम तुम दो होकर भी एक रहे।।

बचपन से ही काव्य प्रेम

डॉ. मानसी जब कक्षा नौ में थीं, उन्होंने पहली कविता लिखी। स्नातक की पढ़ाई कर रहीं थीं, तब पहला कविता संग्रह ‘एक अंजुरी धूप’ आया। आज मानसी उन तमाम लड़कियों और महिलाओं के लिए प्रेरक हैं, जो साहित्य और कविता की दुनिया में अपना भविष्य तलाश रही हैं। वह कहती हैं,

मेरे मिजाज में मालिक ने चपलता दे दी

यूं तो सबकुछ दिया

कुछ एक विफलता दे दी

मैंने देखा ही नहीं

पांव के छालों की तरफ

और संघर्ष ने सौ बार सफलता दे दी।।

प्रकाशित पुस्तकें

  • साहित्यिक : एक अंजुरी धूप (2004), दरकती दीवार(2016)
  • शैक्षणिक : परास्नातक के लिए- शिक्षा में नवीन प्रवृत्तियां (2017), मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन एवं सांख्यिकी (2017)
  • इनके जीवन संघर्ष पर मृगेंद्र पांडेय ने ‘एक और सीता’ शीर्षक से किताब लिखी है।

देश-विदेश मेंसम्मान

डॉ. मानसी को उप्र हिंदी संस्थान द्वारा डॉ. रांगेय राघव पुरस्कार (2016) मिला है। साथ ही हिंदी अकादमी, दिल्ली से लेकर दुबई तक की दर्जन भर साहित्यिक संस्था द्वारा सम्मानित किया जा चुका है।


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