उद्योगों से होने वाले वायु प्रदूषण को नियंत्रित करेंगे 'झटपट-वन', जानें- क्या है यूपी सरकार की योजना
उद्योगों से होने वाले वायु प्रदूषण को अब उनके परिसर में तैयार किए गए झटपट-वन ही नियंत्रित करेंगे। उत्तर प्रदेश सरकार ने औद्योगिक इकाइयों में ग्रीन बेल्ट विकसित करने के लिए जापानी तकनीक मियावाकी पद्धति का इस्तेमाल करने के निर्देश दिए हैं।
लखनऊ [राज्य ब्यूरो]। उद्योगों से होने वाले वायु प्रदूषण को अब उनके परिसर में तैयार किए गए 'झटपट-वन' ही नियंत्रित करेंगे। उत्तर प्रदेश सरकार ने औद्योगिक इकाइयों में ग्रीन बेल्ट विकसित करने के लिए जापानी तकनीक मियावाकी पद्धति का इस्तेमाल करने के निर्देश दिए हैं। 'झटपट-वन' न सिर्फ पारंपरिक जंगलों के मुकाबले 10 गुना तेजी से बढ़ते हैं बल्कि वायु प्रदूषण भी 30 गुना अधिक अवशोषित करते हैं।
दरअसल, औद्योगिक इकाइयों में जल एवं वायु प्रदूषण नियंत्रण के लिए अपने परिसरों में ग्रीन बेल्ट विकसित करने की शर्त पर ही उन्हें उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से सहमति पत्र मिलता है। कई औद्योगिक इकाइयों में ग्रीन बेल्ट विकसित करने के लिए पर्याप्त जगह नहीं होती है। इससे उद्योगों को बड़ी परेशानी हो रही थी। अब सरकार ने औद्योगिक इकाइयों की कम जगह में अधिक हरियाली के लिए मियावाकी पद्धति से ग्रीन बेल्ट विकसित करने का निर्णय लिया है।
पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग के अपर मुख्य सचिव मनोज सिंह की ओर से जारी आदेश में कहा गया है कि औद्योगिक इकाइयों को अब मियावाकी पद्धति से 'झटपट-वन' तैयार करना अनिवार्य होगा। उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने मियावाकी वन के लिए स्टैंडर्ड आपरेटिंग प्रोसिजर (एसओपी) तैयार कर दिया है। सचिव, वन आशीष तिवारी ने बताया कि नए आदेश के तहत अब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड उद्योगों की सूची, स्थल विवरण एवं कार्ययोजना संबंधित प्रभागीय वनाधिकारी (डीएफओ) को उपलब्ध कराएंगे। डीएफओ मियावाकी पद्धति से वन विकसित किए जाने की निगरानी करेंगे। जरूरत पडऩे पर तकनीकी मार्गदर्शन भी उद्योगों को देंगे। जो औद्योगिक इकाइयां ग्रीन बेल्ट विकसित नहीं करेंगी उनका सहमति पत्र सरकार वापस ले लेगी।
क्या है मियावाकी वन : इस वन का अविष्कार जापान के वनस्पति शास्त्री अकीरा मियावाकी ने किया था। इसमें छोटे-छोटे स्थानों पर ऐसे पौधे रोपे जाते हैं जो साधारण पौधों की तुलना में 10 गुना तेजी से बढ़ते हैं। इस पद्धति ने शहरों में जंगलों की परिकल्पना को साकार किया। इसके जरिये बहुत कम जगह व बंजर जमीन पर भी जंगल उगा सकते हैं। यह वन 160 वर्ग मीटर या इससे भी छोटे प्लाट में उगाए जा सकते हैं। यह पारंपरिक वन क्षेत्रों के मुकाबले अधिक घने व 30 फीसद अधिक कार्बन डाइआक्साइड अवशोषित करने की क्षमता रखते हैं।
अब तक यहां विकसित हो चुके हैं मियावाकी वन
- कानपुर : शनैश्वर मंदिर, ट्रैफिक चिल्ड्रेन पार्क, अंबेडकर पार्क पनकी, जागेश्वर अस्पताल
- प्रयागराज : बीपीसीएल परिसर नैनी, अरैल बांध रोड जहांगीराबाद, सीडीए पेंशन, परेड रोड
- वाराणसी : डोमरी रेल भूमि, जय नारायण इंटर कालेज, राजकीय बालिका इंटर कालेज
- लखनऊ : कुकरैल
- गाजियाबाद : साईं उपवन व प्रताप विहार