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Ayodhya Ram Mandir Verdict 2019: विहिप ने निभाई ऐतिहासिक भूमिका...1984 में लिया था रामजन्मभूमि मुक्ति का संकल्प

Ayodhya Ram Mandir Verdict 2019 विश्व हिंदू परिषद ने रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद मामले पर राष्ट्रव्यापी जनांदोलन खड़ा कर आम आदमी का ध्यान इस ओर खींचा।

By Umesh TiwariEdited By: Published: Sat, 09 Nov 2019 01:16 PM (IST)Updated: Sat, 09 Nov 2019 10:41 PM (IST)
Ayodhya Ram Mandir Verdict 2019: विहिप ने निभाई ऐतिहासिक भूमिका...1984 में लिया था रामजन्मभूमि मुक्ति का संकल्प
Ayodhya Ram Mandir Verdict 2019: विहिप ने निभाई ऐतिहासिक भूमिका...1984 में लिया था रामजन्मभूमि मुक्ति का संकल्प

लखनऊ, जेएनएन। लगभग पांच सौ वर्ष से हिंदू और मुसलमानों के बीच विवाद का कारण बना रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद यदि 21वीं सदी के दूसरे दशक में निर्णीत हुआ तो इसमें सबसे अहम भूमिका विश्व हिंदू परिषद (विहिप) की मानी जाएगी। परिषद ने इस मामले पर राष्ट्रव्यापी जनांदोलन खड़ा कर आम आदमी का ध्यान इस ओर खींचा।

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29 अगस्त, 1964 को मुंबई के संदीपनि आश्रम में जन्मी विश्व हिंदू परिषद ने लगभग 20 वर्ष बाद 1984 में दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित अपनी पहली धर्म संसद में अयोध्या, मथुरा और काशी के धर्मस्थलों को हिंदुओं को सौंपने का प्रस्ताव पारित किया था। इस प्रस्ताव को ओंकार भावे ने धर्मसंसद में रखा था। इसके बाद 21 जुलाई, 1984 को अयोध्या के वाल्मीकि भवन में बैठक कर विहिप ने रामजन्मभूमि यज्ञ समिति का गठन किया। इसका अध्यक्ष उत्तर प्रदेश के मौजूदा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गुरु गोरक्षपीठाधीश्वर महंत अवेद्यनाथ को व महामंत्री दाऊदयाल खन्ना को बनाया गया, जबकि महंत रामचंद्रदास परमहंस व महंत नृत्यगोपाल दास उपाध्यक्ष चुने गए।

उसी वर्ष सात अक्टूबर काे विहिप ने सरयू तट पर रामजन्मभूमि मुक्ति का संकल्प लिया और अगले दिन इस मसले पर जनजागरण के उद्देश्य से एक पदयात्रा शुरू की। पदयात्रा की पूर्व संध्या पर अयोध्या के वाल्मीकि भवन में बैठक कर रामजन्मभूमि मुक्ति आंदोलन के 35 सदस्यीय संरक्षक मंडल का गठन किया गया। इस बैठक में मौजूदा केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने यह कह कर हलचल मचा दी कि वह मंदिर निर्माण के लिए कारसेवा करने वाले पहले कारसेवक होंगे। यात्रा 14 अक्टूबर को लखनऊ पहुंची, जहां बेगम हजरत महल पार्क में हुई विशाल सभा में विहिप के संस्थापक महासचिव अशोक सिंहल ने प्रस्ताव रखा कि रामजन्मभूमि का स्वामित्व अविलंब जगद्गगुरु रामानंदाचार्य को सौंप दिया जाय। तब तक श्री राम जन्मभूमि न्यास का गठन नहीं हुआ था। यह मंदिर निर्माण की मांग को लेकर पहली जनसभा थी।

अयोध्या से निकली यात्रा को दिल्ली तक जाना था और वहां भी जनसभा तथा तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को ज्ञापन देने की योजना थी, लेकिन यात्रा उत्तर प्रदेश की सीमा में ही थी कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या 31 अक्टूबर को कर दी गई। इंदिरा जी की हत्या से उपजी राष्ट्रव्यापी शोक लहर का असर स्वाभाविक रूप से मंदिर आंदोलन की गति पर भी पड़ा। कुछ दिनों की खामोशी के बाद 1985 में विहिप ने मंदिर निर्माण से जुड़ी गतिविधियां फिर तेज की और श्री रामजन्मभूमि न्यास का गठन किया। तेजी से घूमे घटनाक्रम में एक फरवरी 1986 को विवादित स्थल का ताला खोलने का आदेश जिला व सत्र न्यायाधीश ने दिया और उसी दिन ताला खुल गया और वहां पूजापाठ शुरू हो गया। अगले ही दिन विहिप ने भगवदाचार्य स्मारक सदन में बैठक कर रामजन्मभूमि का स्वामित्व श्री रामजन्मभूमि न्यास को सौंपने की मांग की।

इस बैठक में महंत अवेद्यनाथ, परमहंस रामचंद्रदास व महंत नृत्यगोपाल दास के अलावा विहिप के कई शीर्ष नेता माैजूद थे। विहिप की सक्रियता का ही नतीजा था कि 1989 में पालमपुर अधिवेशन में भाजपा ने रामजन्मभूमि पर भव्य मंदिर निर्माण को अपने चुनाव घोषणापत्र में शामिल करने का एलान कर दिया। नौ नवंबर 1989 को विहिप ने पूरे देश में शिलापूजन कार्यक्रम की घोषणा कर माहौल गर्म कर दिया। 24 जून 90 को विहिप के केंद्रीय मार्गदर्शक मंडल की बैठक हरिद्वार में हुई जिसमें 30 अक्टूबर (देवोत्थानी एकादशी) से मंदिर के लिए कारसेवा करने का एलान किया गया। एलान के मुताबिक बड़ी संख्या में कारसेवक अयोध्या पहुंचे और उत्तर प्रदेश की तत्कालीन मुलायम सिंह यादव सरकार की तमाम सख्ती के बावजूद विवादित ढांचे पर चढ़ कर न सिर्फ झंडा फहराया बल्कि ढांचे काे आंशिक रूप से क्षति भी पहुंचाई। हालांकि ढांचे की रक्षा के लिए सुरक्षाबलों ने गोलीबारी की जिसमें कई कारसेवकों की जान भी गंवानी पड़ी।

इसके दो दिन बाद अयोध्या में ही एकत्र रहे हजारों कारसेवकों ने फिर ढांचे को निशाना बनाया और उनका मुकाबला एक बार फिर पुलिस की गोलियों से हुआ। इस दिन भी कई कारसेवक हताहत हुए। इस घटनाक्रम ने पूरे देश के हिंदुओं में ज्वार पैदा कर दिया। छह दिसंबर, 92 की घटना को भी इसी घटनाक्रम की परिणति के रूप में देखा जाता है। विश्व हिंदू परिषद ने मंदिर के लिए सिर्फ आंदोलन का रास्ता ही अपनाया हो ऐसा भी नहीं है परिषद ने जब-जब सुलह समझौते की कोशिश हुई तो उसमें भी सक्रिय भागीदारी की। इसी तरह की कोशिश एक दिसंबर 90 व 14 दिसंबर 90 को अयोध्या में हुई जब बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के साथ विहिप ने द्विपक्षीय वार्ता की। हालांकि यह बातचीत सफल नहीं हुई।


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