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संवादी : सोशल मीडिया बना 'स्त्री विमर्श की नई चौपाल

संवादी के सत्र युवा भारत : नई अनुगूंजें विषय पर जब मंच पर चर्चा हुई तो स्त्री विमर्श को सोशल मीडिया के माध्यम से धार दे रहीं पांच साहसी बेटियों ने पूरी बेबाकी के साथ अपनी राय रखी।

By Ashish MishraEdited By: Published: Fri, 07 Oct 2016 08:41 PM (IST)Updated: Fri, 07 Oct 2016 08:50 PM (IST)
संवादी : सोशल मीडिया बना 'स्त्री विमर्श की नई चौपाल

लखनऊ [आशीष त्रिवेदी] । सोशल मीडिया स्त्री विमर्श की एक नई चौपाल है जहां पर आप खुलकर महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर चर्चा कर सकते हैं। पुराने वक्त में तो पुरुष ही सिर्फ घर में बाहर दलान में चौपाल लगाकर गांव व देश की राजनीति और मुद्दों पर चर्चा कर सकते थे, लेकिन सोशल मीडिया के आने से बड़ा बदलाव तो हुआ है। मगर तत्कालिकता को इसकी शक्ति व कमजोरी दोनों हैं। संवादी के सत्र युवा भारत : नई अनुगूंजें विषय पर जब मंच पर चर्चा हुई तो स्त्री विमर्श को सोशल मीडिया के माध्यम से धार दे रहीं पांच साहसी बेटियों ने पूरी बेबाकी के साथ अपनी राय रखी। इसमें मंच संचालन वेबसाइट रीप्रेजेंट की एडिटोरियल प्रमुख व पत्रकार वत्सला श्रीवास्तव ने किया।

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कार्यक्रम में वेबसाइट लल्लन टॉप चला रहीं प्रतीक्षा पांडे ने कहा कि सोशल मीडिया पर हमें एक लाइन में अपनी बात कहनी होती है, जब हम स्त्री के मासिक धर्म की पीड़ा से लेकर समाज में उसके प्रति रखी जाने वाली खराब सोच पर मारक शब्द लिखते हैं तो निश्चित तौर पर समाज के पूर्वाग्रह टूटते हैं। आखिर सोसाइटी में लोग तब-तक खामोश क्यों रहते हैं जब-तक कोई निर्भया कांड नहीं हो जाता। मेरे फेसबुक पोस्ट पढ़कर मां भी रोयी, क्योंकि उन्हें समझ में आया कि उन्हें जबरन त्याग की देवी बनाया गया और वह डर के कारण विरोध न कर पाईं।

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प्रतिष्ठित मिरांडा हाउस कॉलेज की टीचर व ङ्क्षहदी में चैट्स स्टिकर हीमोजी बनाने वाली अपराजिता शर्मा ने कहा कि औरतें की बीमारी व मासिक धर्म की पीड़ा कोई नहीं समझता। आखिर महिलाओं को बच्चा पैदा करने की मशीन क्यों समझा जाता है। आखिर मासिक धर्म होने पर उसे क्यों छिपाएं। समाज महिलाओं से जुड़ी हर चीज को गंदी निगाह से क्यों देखता है। क्लास में महिलाओं से जुड़ी हर परेशानी को पूरी बेबाकी से साझा करते हैं।

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फेसबुक पर बेबाक टिप्पणी के लिए मशहूर स्वाती मिश्रा बिहार में पत्रकार हैं, वह कहती हैं कि पुराने जमाने में पुरुष ही दलान में बैठकर चर्चा कर सकते थे, मगर अब ऐसा नहीं है। सोशल मीडिया स्त्री विमर्श पर खुलकर चर्चा करने की नई चौपाल है। मेरी मां केवल कक्षा सात तक पढ़ी हैं, लेकिन व पढ़े-लिखे पिता जी से ज्यादा क्रांतिकारी हैं।

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गोरखपुर की रहने वाली रीवा सिंह ने मंच से कहा कि वह ऐसी लड़की नहीं जिसे समाज ने मैन्युफैक्चर किया हो। समाज हमें कोई काम करने की आजादी नहीं छूट देता है और वह तभी आजाद होंगी जब महिलाओं को आंकने का पैमाना खत्म हो। इन सभी ने यह भी कहा कि फेसबुक पर मेरी सोच व टिप्पणी से कोई असहमत होकर अनफ्रेंड हो तो उसकी चिंता नहीं करते।


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