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संवादी : सोशल मीडिया ने बढ़ाईं लेखकों की चुनौतियां

सोशल मीडिया के लगातार बढ़ रहे दायरे से कामर्शियल फिक्शन और उपन्यासकार भी अछूते नहीं हैं। समय के साथ बदलाव यहां पर भी महसूस किया जा रहा है जो तेजी के साथ परिवर्तन ला रहा है।

By Ashish MishraEdited By: Published: Fri, 07 Oct 2016 08:53 PM (IST)Updated: Fri, 07 Oct 2016 09:00 PM (IST)
संवादी : सोशल मीडिया ने बढ़ाईं लेखकों की चुनौतियां

लखनऊ [राजीव वाजपेयी] । सोशल मीडिया के लगातार बढ़ रहे दायरे से कामर्शियल फिक्शन और उपन्यासकार भी अछूते नहीं हैं। समय के साथ बदलाव यहां पर भी महसूस किया जा रहा है जो तेजी के साथ परिवर्तन ला रहा है। देश के दो युवा उपन्यासकारों पंकज दुबे और सुजाता एस. सबिनस से शाम के सत्र में सुरेश मैथ्यू से संवाद व साक्षात्कार में डिजिटल मीडिया से कामर्शियल फिक्शन में हो रहे बदलावों पर चर्चा की तो तमाम ऐसे बिंदु निकलकर सामने आए जिनसे पता चला कि न केवल उपन्यासकार अपने आप को बाजार के मुताबिक लिखने के लिए मजबूर हो रहे हैं बल्कि अपने आपको स्थापित करने के लिए तमाम तरह के प्रयोग भी कर रहे हैं।

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हिंदी और अंग्रेजी में एक साथ अब तक चार किताबें लिखकर चर्चा में आए पंकज इस बदलाव के लिए न केवल पूरी तरह तैयार बल्कि इसके जबर्दस्त हिमायती भी हैं। पंकज का कहना है कि अगर इतना बड़ा प्लेटफार्म मुफ्त में मिल रहा है तो फिर इसका इस्तेमाल करने में क्या गुरेज है। दोनो किताबों के लिए बेस्ट सेलर्स का खिताब पाने वाले पंकज सोशल मीडिया को कामर्शियल फिक्शन के लिए बिलकुल मुफीद मानते हैं।

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उनका कहना है कि अब राइटर बदलाव के दौरे से गुजर रहे हैं। सोशल मीडिया के व्यापक दायरे और अलग-अलग नेचर के पाठक वर्ग को अपनी किताब पढ़ानी है तो उसी तरह से उसे पेश भी करना होगा।अब उपन्यासकारों काम केवल लिखने तक ही सीमित नहीं रहा बल्कि उसे किताब की मार्केटिंग भी उसी तरह से करने के लिए नए-नए इनोवेशन करने होंगे। पंकज ने हाल ही में प्रकाशित किया अपनी किताब इश्कियापा के लिए एल्बम लांच किया।

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यू टयूब से लेकर तमाम सोशल साइट्स पर बेहद पंसद किया गया और हजारों पाठक सीधे उनसे जुड़ गए। वहीं सुजाता एस. सबिनस की राय पंकज से कुछ जुदा नजर आई। सुजाता भी तेजी के साथ सोशल मीडिया के जरिए हो रहे इस परिवर्तन और उससे होने वाले दबावों को महसूस कर रही है, लेकिन उनका कहना है कि मंच पर भीड़ बढऩे से गुणवत्ता प्रभावित हो रही है। बहुत कुछ पाठकों और बाजार को देखकर लिखा जा रहा है जो आने वाले दिनों के लिए ठीक नहीं है।

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सोशल मीडिया के व्यापक दायरे के बावजूद संगीता का मानना है कि अगर लेखन यानी उपन्यास में गुणवत्ता है तो पाठक को खींचने में कोई दिक्कत नहीं है। इसलिए अगर स्टोरी स्ट्रांग है तो फिर कोई दिक्कत नहीं है। लेखक की ईमानदारी ही उसे भीड़ से अलग खड़ा करेगी। सुजाता का मानना है कि सोशल मीडिया का प्रभाव किताबों पर तो पड़ रहा है, लेकिन यह भी सच है कि हाथ में अपनी लिखी किताब पकडऩे की जो अनुभूति होती है उसका आनंद डिजिटल वल्र्ड में नहीं मिल सकता।


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