आजादी के 70 साल बाद भी कानूनी परंपराओं में है गुलामी का प्रतीक, समाजसेवी ने छेड़ी बदलाव की लड़ाई
कानूनी परंपराओं में लेडी ऑफ जस्टिस के चित्र में बदलाव का मुद्दा उठाया समाजसेवी अशोक कुमार भार्गव ने।
लखनऊ[नीरज मिश्र]। आमजन से जुड़े सरोकारों को जिम्मेदारों तक पहुंचा उसे अंजाम तक ले जाने वाले राजधानी के अशोक कुमार भार्गव ने इस बार एक नया अति संवेदनशील मु्द्दा कानूनी परंपराओं में लेडी ऑफ जस्टिस(रोमन लेडी) के चित्र में बदलाव को लेकर उठाया है। उनका मानना है कि कानून की किताबें हों या फिर न्यायालय, सभी में लेडी ऑफ जस्टिस का स्टेच्यू विद्यमान हैं। आजादी के सत्तर साल बीतने के बाद भी रोमन लेडी का चित्र ब्रिटिश काल की याद दिलाता है। तस्वीर ही नहीं अस्त्र और शस्त्र से भी यह भारतीय नजर नहीं आती है। बेहतर हो तो सरकार इस दिशा में सोचे और इस चित्र के स्थान पर परिधानों के साथ भारतीय महिला का चित्र अंकित किया जाए।
18 दिसंबर, 2017 में समाजसेवी अशोक कुमार भार्गव ने देश के कानून मंत्री रविशकर प्रसाद को मामले में पत्र लिखा। वह बताते हैं कि आमतौर पर ऐसे मसलों में जवाब देना आसान नहीं होता, लेकिन सरकार ने उनके इस अनुरोध को न केवल स्वीकार किया बल्कि इसका उत्तर भी मिनिस्ट्री ऑफ लॉ एंड जस्टिस के अंडर सेक्रेटरी एस. विजय गोपाल की ओर से मिला। वास्तव में सरकार की ओर से हुई यह शुरुआत स्वागत योग्य है। इसमें बताया गया कि मसले को भारत के उच्चतम न्यायालय को भेज दिया गया है। उनका कहना है कि आजादी मिले 70 साल हो चुके हैं, पर कानूनी परंपराओं में चल रहा यह चित्र गुलामी की याद दिलाता है। उनका कहना है कि लेडी ऑफ जस्टिस के हाथ में जो लंबी और दोधारी तलवार है उस तरीके की तलवारों का चलन भारत में नहीं होता है। यहा अर्धचंद्राकार तलवार का इस्तेमाल किया जाता था। चाहे वह इतिहास के पूर्व शासकों को ले लें या फिर देवताओं की तलवारों का। भारतीय महिला का परिधान भी इससे मेल नहीं खाता है। इस मसले को महसूस करते हुए कानून मंत्रलय ने उच्चतम न्यायालय को पत्र लिखा है।