कुश्ती ही मेरे लिए सब कुछ : विनेश फोगाट
एशियन गेम्स की गोल्ड मेडलिस्ट विनेश फोगाट को साई सेंटर में किया गया सम्मानित।
लखनऊ(जागरण संवाददाता)। जब से बड़ी हुई सिर्फ कुश्ती के बारे में ही सोचा। मेरे लिए फिल्में, हीरो और करियर सबकुछ कुश्ती ही है। सुबह उठने से लेकर रात सोने तक सिर्फ दाव-पेंच की ही बातें जहन में चलती रहती हैं। जब किसी चैंपियनशिप में खेलने जाती हूं तो मुझे देश के लिए सिर्फ पदक दिखता है। यह कहना है जकार्ता में हुए एशियन गेम्स की स्वर्ण पदक विजेता विनेश फोगाट का। सोमवार को वह साई सेंटर पहुंचीं। यहा विनेश और दिव्या काकरान को सम्मानित किया गया। अगला लक्ष्य ओलंपिक:
एशियन गेम्स में चोट के बावजूद अपने दमदार प्रदर्शन का लोहा मनवा चुकीं विनेश का कहना है कि जब आप कामयाब होने लगते हो तो आपके प्रशसक आपसे और ज्यादा उम्मीद करने लगते हैं। अब हमारा लक्ष्य ओलंपिक में पदक जीतकर एक बार फिर देश का मान बढ़ाना है। महिला पहलवान ने कहा कि जिस समय मुडो चोट लगी थी ऐसा लगा कि इस बार एशियन गेम्स से मुझ पर वापस जाना पड़ेगा, लेकिन परिवार और प्रशसकों की दुआ ने मुडो मजबूती दी जिसकी वजह से बड़ी सफलता मिली।
मेरी दिवानगी सिर्फ कुश्ती में:
स्टार रेसलर ने कहा कि मुझे फिल्में पसंद है और न ही हीरो-हीरोइन। पिछले दस सालों में मैं केवल 8-9 फिल्में ही देखीं है। मेरी दिवानगी सिर्फ कुश्ती में है।
हारने के बाद घर जाने का मन होता है:
अपना अनुभव शेयर करते हुए इस स्टार रेसलर ने कहा कि जब किसी चैंपियनशिप में सफलता नहीं मिलती तो मैं परिवार के साथ समय बिताना पसंद करती हूं। उन्होंने कहा कि कई बार बार करियर में निराशा हाथ लगती है, ऐसे में परिवार ही मजबूती से साथ खड़ा होता है। विनेश ने कहा कि देशवासियों का प्यार मैट पर उतरने और जीतने के लिए प्रेरित करता है। मा के हाथ की पूड़ी-खीर बहुत पसंद है:
विनेश ने बताया कि जब भी मैं घर में होती हूं मा से पूड़ी-खीर की डिमाड तुरंत होती है। अगर मैं ट्रेनिंग पर हूं तो मेरे लिए ट्रेनिंग सबसे पहले है। उन्होंने कहा कि मुडो खुशी है कि कि आजकल की लड़किया भी रेसलिंग में अपना करियर देख रही हैं। मुझे उम्मीद है कि भविष्य में देश को और भी विनेश मिलेंगीं जो पदक जीतकर भारत को गौरान्वित करेंगीं।
भारतीय कोच सर्वश्रेष्ठ :
विनेश ने कहा कि एक साथ कई खिलाड़ियों को प्रशिक्षित करना आसाना नहीं होता, हमारे देश में कोच के पर बहुत दबाव रहता है। विदेशों में एक खिलाड़ी पर एक कोच होने से उनकी तैयारी बेहतर होती है। उन्होंने अपना अनुभव साझा करते हुए कहा कि हंगरी में एक कोच के अंडर में ट्रेनिंग की है। अगले कुछ महीने के लिए वहीं फिर से जाना चाहूंगी। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि भारतीय कोच अच्छे नहीं है।