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घंटों बीत रहा इंटरनेट पर समय, मोबाइल की लत बच्‍चों को बना रही मनोरोगी Lucknow News

लखनऊ दैनिक जागरण के कार्यक्रम हेलो डॉक्‍टर कार्यक्रम में केजीएमयू के मानसिक रोग विभाग के प्रोफेसर डॉ आदर्श त्रिपाठी से विश्‍व मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य दिवस पर खास बातचीत।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Thu, 10 Oct 2019 07:10 PM (IST)Updated: Sat, 12 Oct 2019 08:02 AM (IST)
घंटों बीत रहा इंटरनेट पर समय, मोबाइल की लत बच्‍चों को बना रही मनोरोगी Lucknow News
घंटों बीत रहा इंटरनेट पर समय, मोबाइल की लत बच्‍चों को बना रही मनोरोगी Lucknow News

लखनऊ, जेएनएन। मोबाइल न मिलने पर बच्चे खाना नहीं खाते, दूध नहीं पीते, घर की चीजों को तोडऩे के साथ चीखने-चिल्लाने, मारपीट और ङ्क्षहसा पर उतारू हो जाते हैं। कुछ ऐसा माहौल शायद हर दूसरे घर में देखने को मिल जाएगा। मोबाइल, लैपटॉप, टैबलेट, टीवी समेत तमाम इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद दैनिक जीवन का हिस्सा बन चुके हैं। बच्चे हों या युवा हर उम्र के लोग घंटों डिजिटल उत्पादों पर समय बिता रहे हैं। कोई मोबाइल पर ऑनलाइन गेम, तो कोई आकर्षित करते विज्ञापनों और कोई वेब सीरीज पर पसंदीदा शो व फिल्मों को देखते हुए घंटों अपना समय स्क्रीन पर गुजार रहा है। ऐसे में, लोग नींद न आना, आंखों से जुड़ी समस्याओं का शिकार होना, बीपी सहित मनोरोग संबंधी तमाम प्रकार की बीमारियों का शिकार हो रहे हैं।

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खासकर बच्चे व युवा मोबाइल की लत के चलते खुद ही इन रोगों को दावत दे रहे हैं और टेक्नोलॉजी एडिक्शन का शिकार हो रहे हैं। विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस के मौके पर गुरुवार को दैनिक जागरण कार्यालय में केजीएमयू के मनोरोग चिकित्सक डॉ. आदर्श त्रिपाठी ने पाठकों को इन रोगों से बचाव व उपायों पर पूछे गए सवालों के जवाब दिए

सवाल : मेरी बेटी बीएससी फाइनल ईयर में पढ़ रही है। ज्यादातर समय मोबाइल पर बिताती है। कुछ कहो तो कहती है कि पढ़ाई से संबंधित चीजें देख रही हूं। ज्यादा कहने पर नाराज हो जाती है, क्या करें।

[संगीता शुक्ला, अलीगंज]

जवाब : बेटी को सीमित समय के लिए मोबाइल इस्तेमाल करने को कहें। साथ ही उससे पूछें कि एक दिन में वह कितने घंटे इस्तेमाल करती है और इतना इस्तेमाल क्यों करती है। म्यूचुअल बातचीत करके उसे समझाइए कि ज्यादा इस्तेमाल खतरनाक हो सकता है। मोबाइल का कंटेंट व विज्ञापन भी दिमाग पर असर डालते हैं और बार-बार मोबाइल देखने के लिए प्रेरित करते हैं।

सवाल : मोबाइल का इतना ज्यादा इस्तेमाल हो रहा है, उससे जो तरंगें निकलती हैं, उससे क्या हानि होती है।

[प्रदीप कुमार, काकोरी]

जवाब : मोबाइल का इस्तेमाल बुरा नहीं है, बल्कि यह उपयोगी चीज है। बशर्ते, उसे सीमित समय व सही तरीके से इस्तेमाल किया जाए। ज्यादा इस्तेमाल ही नुकसानदेह होता है जो कई तरह की बीमारियों को जन्म देता है। बच्चे हों या बड़े मोबाइल पर मनोरंजन का समय तय कर लें।

सवाल : मेरा बेटा 22 साल का है, दिनभर मोबाइल पर गेम और क्रिकेट खेलता है। मना करने पर मानता नहीं, बल्कि गुस्सा हो जाता है।

[मनोज गुप्ता, बलरामपुर]

जवाब : बड़े बच्चों को मना करना थोड़ा मुश्किल होता है, मगर उनको आदेश देकर नहीं बल्कि प्यार से समझाने का प्रयास करें। तरीका यही है कि नियम बनाइए कि रात को सात-आठ बजे के बाद परिवार का कोई सदस्य मोबाइल इस्तेमाल नहीं करेगा।

सवाल : मेरा बेटा 16 साल का है, नौवीं में पढ़ रहा है, उसे बुरी तरह से मोबाइल की लत लग चुकी है। पबजी गेम खेलता है, अगर उससे फोन ले लो तो आत्महत्या तक करने की कोशिश करता है, उसे इस लत से कैसे बचाऊं।

[अजय सिंह, सीतापुर]

जवाब : बेटे से आप जबरदस्ती मोबाइल का इस्तेमाल बंद नहीं करा सकते हैं। अपनी राय उस पर न थोपें बल्कि उससे पूछिए कि तुम्हें कितनी देर मोबाइल इस्तेमाल करना है। यदि वह एक या दो घंटा इस्तेमाल करने की बात कहे, तब समयसीमा तय करके नियम लागू कर दीजिए और परिवार के दूसरे सदस्य भी इस नियम को फॉलो करें।

सवाल : मेरा बेटा 17 साल का है, इंटर फाइनल कर रहा है। वह पिछले एक साल से मोबाइल इस्तेमाल कर रहा है। दोस्तों के साथ शोर-शराबे वाले ङ्क्षहसक गेम खेलता है, छीन लो परेशान हो जाता है।

[माधवी, राजाजीपुरम]

जवाब : मोबाइल पर जो गेम हैं, उनमें युवाओं को बड़ा आनंद आता है, मगर आनंद की खोज में फंसे युवा अपने कॅरियर का गोल्डन पीरियड व जीवन बर्बाद कर रहे हैं। मोबाइल का बहुत ज्यादा इस्तेमाल लोगों पर दुष्प्रभाव डाल रहा है, ये बातें वैज्ञानिक शोध में साबित हुई हैं, बेटे को इनसे अवगत कराइए और समझाइए। साथ ही गैजेट हाईजीन नियम अपनाइए।

सवाल : मेरी दो बेटियां हैं, बड़ी तीन साल की और छोटी एक साल की। दोनों ही मोबाइल के पीछे परेशान रहती हैं। घर के काम करने के लिए पत्नी उन्हें मोबाइल पकड़ा देती है, अब वे दोनों किसी की नहीं सुनती।

[नितिन कुमार, गोमतीनगर]

जवाब : आजकल मां-बाप यही गलती करते हैं। अपने काम निपटाने के लिए बच्चों को मोबाइल दे देते हैं, शुरू में अच्छा लगता है, बाद में यह परेशानी बन जाती है। डॉक्टर भी छह साल से कम उम्र के बच्चों को मोबाइल से दूर रहने की सलाह देते हैं। आप दोनों पति-पत्नी आपस में तय करें कि अब बच्चों को मोबाइल नहीं देंगे। मोबाइल की जगह उन्हें खिलौने और किताबें लाकर दीजिए। 

सवाल : मेरा बेटा 20 साल का है, बीएससी कर रहा है। हमेशा मोबाइल में बिजी रहता है। हाईस्कूल, इंटर में फस्र्ट डिवीजन पास हुआ था, मगर अब मोबाइल के चलते उसकी पढ़ाई भी खराब हो रही है, उसे कुछ कहो तो पत्नी मना करती है। बहुत दुखी हूं, कैसे समझाऊं। 

[रमेश कुमार, बाराबंकी]

जवाब : आपकी चिंता जायज है। आपस में पति-पत्नी तालमेल बैठाकर बेटे से बात करें। मां को समझाइए कि मोबाइल उपयोगी है, पर युवा होते बच्चों के शारीरिक व मानसिक बीमारियां दे रहे हैं। आपस में बात करके ही समस्या सुलझाएं।

सवाल : मेरा बेटा 25 साल का है, बीए कर चुका है। नौकरी की तलाश में है, प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारियां तो कर रहा है, पर पढ़ाई नहीं करता। बस, मोबाइल पर हर समय व्यस्त रहता है। पढऩे को कहो तो कहता है मन नहीं लगता।

[पुष्पा मिश्रा, बलरामपुर]

जवाब : इस उम्र में उनको समझाना मुश्किल तो है क्योंकि वह खुद समझदार हैं, पर आप उसे कुछ दूसरे काम सीखने को प्रेरित करें। जिसमें उनका मन लगता हो। मोबाइल का इस्तेमाल कम करने को कहें, फिर भी यदि वह नहीं मानें तो बेटे की काउंसिलिंग कराइए।

सवाल : मेरी उम्र 33 वर्ष है, दिनभर में चार-पांच घंटे मोबाइल इस्तेमाल करता था। अब सिरदर्द बना रहता है, दर्द बढऩे पर मोबाइल का इस्तेमाल कुछ कम किया है, मगर लत नहीं छूटी, क्या करूं।

[पवन कुमार, अंबेडकरनगर]

जवाब : यदि आपको लगता है कि मोबाइल का इस्तेमाल आपको नुकसान पहुंचा रहा है तो कंट्रोल भी आपको ही करना होगा। सीमित समय तय करिये और एक छोटी डायरी में मोबाइल इस्तेमाल करने का समय नोट करिये। धीरे-धीरे समय सीमा कम करते जाइए। कुछ दिन मोबाइल से दूर रहिए, पार्क में घूमने जाइए, नींद पूरी लीजिए, नींद न आए तो किताबें पढि़ए, सोने से दो घंटे पहले खाना खाइए। सिरदर्द के लिए बालों में तेल मालिश करिये।

सवाल : मेरी बेटी तीन साल की है, मोबाइल एडिक्ट हो चुकी है। खाना खाते वक्त मोबाइल न मिले तो रोती है, हर वक्त उसे मोबाइल चाहिए।

[आशुतोष मिश्रा, श्रावस्ती]

जवाब : आप दोनों पति-पत्नी आपस में निर्णय लें कि कैसे बेटी को इस लत से छुड़ाएं। यह नहीं कि एक ने मना किया तो दूसरे ने मोबाइल पकड़ा दिया। यदि वह खाना नहीं खाती, रोती है तो उसे रोने दीजिए। कुछ देर बाद वह खुद चुप हो जाएगी। तीन-चार दिन वह परेशान होगी, धीरे-धीरे ठीक हो जाएगी। आप दोनों उससे बात करिए, प्यार करिए, घुमाने ले जाइए। मगर उसके खाने-पीने के साथ मोबाइल को लिंक मत करिये।

सवाल : मेरी तीन बेटियां हैं। बड़ी बेटी सातवीं में और छोटी सेकेंड में पढ़ रही है। दोनों ही मोबाइल चलाती हैं, देर रात तक जागती हैं, पति भी मोबाइल पर घंटों गेम खेलते हैं, कैसे सबकी आदत छुड़ाऊं।

[कल्पना, अमीनाबाद]

जवाब : सभी के लिए मोबाइल उपयोग करने के नियम बनाइए। बड़े हों या बच्चे सभी को खुद पर कंट्रोल रखने को कहिए। आसानी से लत नहीं छूटेगी, मगर उनके मोबाइल इस्तेमाल करने का समय तय कर दीजिए। उनको बताइए कि कंटेंट डेवलपर आजकल ऐसे ही गेम बनाते हैं, जिससे लोग अपना ज्यादा समय मोबाइल पर बिताएं और कंपनी को रेवेन्यू मिले।

फ्रंटल लोब पर पड़ता है असर

वैज्ञानिक रिसर्च कहती है कि बच्चों के फ्रंटल लोब पर इसका दुष्प्रभाव पड़ रहा है। फ्रंटल लोब मस्तिष्क का वह हिस्सा होता है, जो सही-गलत व व्यवहारिक निर्णय लेने में मदद करता है। पर इस लत के चलते फ्रंटल लोब प्रभावित होता है जो बच्चों में सही व गलत का निर्णय लेने की क्षमता को कमजोर बना रहा है। उनकी सोच, विचार व भावनाओं को प्रभावित करता है। इसीलिए अक्सर बच्चे एग्रेसिव होकर पैरेंट्स पर हमला तक कर देते हैं।

इन लक्षणों को न करें नजरअंदाज

  • मोबाइल पर जरूरत से ज्यादा समय बिताना ही मोबाइल एडिक्शन है
  • आंखों की रोशनी कम होना, उनमें सूखापन और दर्द की शिकायत होना, आंखों के नीचे काले घेरे 
  • सिरदर्द, कमर दर्द, याददाश्त कमजोर होना
  • पढऩे-लिखने या एकाग्रता वाले कामों में मन व ध्यान न लगा पाना

दुखी रहना या चिड़चिड़ापन होना

  • 12 से 14 वर्ष तक के बच्चों में नर्व, स्पाइन और मसल्स की समस्याएं होना
  • स्पॉन्डिलाइटिस, लंबर स्पॉन्डिलाइटिस, वजन बढऩा, ऊर्जा की कमी, थकान होना जैसी दिक्कतों का बढऩा
  • लीड लगाकर मोबाइल पर गाने सुनना या गेम खेलने से कानों में सीटी जैसी आवाज होना
  • जरा-जरा सी बात पर एग्रेसिव हो जाना, आपस में मारपीट, झगड़ करना
  • एडिक्ट बच्चे में मोबाइल व इंटरनेट इस्तेमाल करने की निरंतर इच्छा का होना
  • नशा या शराब जैसी लत की तरह मोबाइल न मिलने पर कष्ट महसूस होना, बेचैन रहना
  • डिप्रेशन, एंजाइटी डिसऑर्डर, आत्महत्या के विचार आना
  • यदि बच्चा मोबाइल या इंटरनेट एडिक्ट है तो काउंसिलिंग के जरिये इलाज हो जाता है, मगर गंभीर अवस्था में दवाएं भी चलाई जाती हैं।

गैजेट हाईजीन की आदत अपनाएं

  • गैजेट हाईजीन का मतलब है जीवन में ऐसे नियमों का पालन करना जो आपको गैजेट से दूर रखें
  • नोटिफिकेशन बंद करके रखें इंटरनेट यूजर समय सीमा निर्धारित करें
  • यदि कोई 60 वर्ष का व्यक्ति सोशल मीडिया या विदेश में रहने वाले बच्चों से वीडियो कॉल पर बात करते हुए अपना समय दे रहा है तो कोई हर्ज नहीं, मगर बच्चों व किशोरों का समय देना गलत है
  • बच्चों को मोबाइल व इंटरनेट एडिक्शन से बचाने के लिए सबसे पहले अभिभावक खुद को गैजेट से दूर रखने का प्रयास करें
  • वैज्ञानिक रिसर्च कहते हैं कि पांच साल तक के बच्चों को कतई मोबाइल न दें, भले ही वह कितना जिद करे।
  • नियम बनाएं कि खाना खाते समय परिवार का कोई भी सदस्य गैजेट का इस्तेमाल नहीं करेगा
  • सोने से दो घंटे पहले और सुबह जागने के तुरंत बाद गैजेट का इस्तेमाल न करें।
  • बहुत जरूरी हो तभी बच्चों को गैजेट दें, मगर उसके कंटेंट का ध्यान भी रखें
  • गंभीर समस्या होने पर मनोरोग चिकित्सक को दिखाएं। मोबाइल एडिक्ट मरीजों के लिए विशेष तरह की दवाएं हैं जो गंभीर परिस्थितियों में दी जाती हैं।

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