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लखनऊ में अंतरराष्ट्रीय कला शिविर का आगाज, दस देशों के कलाकार रचेंगे रामादर्शों का वैश्विक सरोकार

International Art Camp in Lucknow अयोध्या शोध संस्थान संस्कृति विभाग उत्तर प्रदेश द्वारा अंतर्राष्ट्रीय कला शिविर का आयोजन हो रहा है। दस देशों के कलाकारों ने भगवान श्रीराम के जन सरोकारों और वैश्विक संदर्भों को अपने कला मुहावरों में रूप देना शुरू कर दिया है।

By Vikas MishraEdited By: Published: Mon, 18 Oct 2021 02:14 PM (IST)Updated: Mon, 18 Oct 2021 06:15 PM (IST)
लखनऊ में अंतरराष्ट्रीय कला शिविर का आगाज, दस देशों के कलाकार रचेंगे रामादर्शों का वैश्विक सरोकार
दस देशों के कलाकारों ने श्रीराम के जन सरोकारों और वैश्विक संदर्भों को मुहावरों में रूप देना शुरू किया है।

लखनऊ, जागरण संवाददाता। अयोध्या शोध संस्थान, संस्कृति विभाग, उत्तर प्रदेश द्वारा अंतर्राष्ट्रीय कला शिविर का आयोजन हो रहा है। दस देशों के कलाकारों ने भगवान श्रीराम के जन सरोकारों और वैश्विक संदर्भों को अपने कला मुहावरों में रूप देना शुरू कर दिया है। रूपंकर कला में अरूप को रुपायित कर पाना मुश्किल है, लेकिन दुनिया के कई चित्रकारों ने ऐसा किया है। पॉल क्ली, हेनरी मातीस या क्लाड मोने इसी अर्थ में विश्व कला में प्रतिष्ठित हुए हैं। स्वीडन में रह रहीं युवा चित्रकार निशा शर्मा संप्रति इसी अर्थ को अन्य संदर्भ में आकार दे रही हैं। इस चार दिवसीय कला शिविर में विभिन्न देशों से जो दस प्रतिभासंपन्न कलाकार प्रतिभाग कर रहे हैं। उनमें निशा ने स्वीडन स्थित अपने स्टूडियो में काम शुरू किया है।

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विषय है- वैश्विक परिप्रेक्ष्य में राम। उनका अपना शिल्पवैशिष्ट्य है। वे रूपाकार तो रचती हैं लेकिन व्यक्ति या प्रकृति के रूप नहीं। स्पष्टता के लिए इसे अमूर्त कहा जाता है, या फिर नॉन फिगरेटिव। वर्ण्य-विषय वे प्रकृति या गतानुगतिक जीवन से लेती हैं। उनके अनुसार इस प्रकार वह अपने आंतरिक गोलार्ध को बाहरी प्रतीक सौंपती हैं जिसे हम रेप्लिका कहते हैं। ऐसे विषय को वे कागज या कैनवास पर मूर्त करने के लिए एक्रिलिक रंगों का प्रयोग बिंदु और वलयों से करती हैं, या करती आ रही हैं। यह उनका शिल्पवैशिष्ट्य है। इसी शिल्पवैशिष्ट्य की आंच और आभा लिए उन्होंने शनिवार से रूपायन आरंभ किया। विषय पूर्वविदित है।

विषय सभी के लिए एक है लेकिन दृष्टिकोण और कोर्टेक्स इमेज यानी अंतः संस्कार सभी चित्रकारों के अलग हैं। कई एकल प्रदर्शनियों की धनी और दुनिया के कई प्रमुख देशों में अपने काम प्रदर्शित कर चुकी निशा शर्मा संधू संप्रति उस राम के अमूर्तन को बिंदु और वलय सौंप रहीं हैं जो उनके अंतस में है। काम पूरा होने पर ही प्रत्यक्ष हो पाएगा कि कितना अमूर्त रुपायित हो पाया और कितनी पवित्रता के साथ। शिविर में रागिनी उपाध्याय- नेपाल, चोकोरदा अलित- इंडोनेशिया, स्वप्निल श्रीवास्तव- डेनमार्क, मनुषिका बुद्धिनी- श्रीलंका, प्रो रेसत बसर- तुर्की, ब्रायन मुल्विहिल-कनाडा, चंचल बंगा-इजराइल और सकार फरवक-क़ुर्ड्स भी अपने-अपने ढंग से कलाकृति को रूप देना शुरू कर चुके हैं जो कल-परसों तक अपने पूर्ण वैभव के साथ उपस्थित होगी।

शिविर के समन्वयक डॉ अवधेश मिश्र ने बताया कि ये चित्र दुनिया में भारतीय संस्कृति के प्रति आदर और श्रद्धा के उदाहरण के रूप में संग्रहणीय होंगे। अयोध्या शोध संस्थान के निदेशक डॉ लवकुश द्विवेदी ने बताया कि ये कलाकृतियां संस्थान की अमूल्य धरोहर के साथ कलाकारों, कला प्रेमियों और जनमानस के लिए ज्ञान और सांस्कृतिक आस्था का विषय होंगी।सांस्कृतिक पर्यटन को भी ऐसे आयोजनों से बढ़ावा मिलेगा जो भारतीय सांस्कृतिकी और अर्थव्यवस्था के लिए भी यह एक शुभ संकेत है।


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