लुप्त हो रही परंपराओं और गीतों को मिलेगी आधुनिकता की संजीवनी
राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन की पहल पर हर जिले में तैयार होगा सौ महिलाओं का समूह। प्रशिक्षण के लिए मिशन की ओर से समूहों को आर्थिक मदद भी दी जाएगी।
लखनऊ, (जितेंद्र उपाध्याय)। संतान जन्म होने पर गाया जाने वाला सोहर जुग जुग जिया सू ललनवा ... हो या छठ पर गाए जाने वाले गीत कांचहिं बांस की बहंगिया बहंगी लचकत जाय...। यह पारंपरिक लोकगीत न केवल पर्व का उल्लास दोगुना कर देते हैं, बल्कि त्योहारों या उत्सव के अवसर पर की जाने वाली तैयारियों के श्रम की थकान भी मिटा देते हैं। यूपी-बिहार हो या देश का कोई अन्य प्रांत, भाषा-बोली अलग हो सकती है पर भाव सबमें एक सा है। लेकिन, आधुनिक गीतों, हिपहाप और डीजे ने इनकी चमक फीकी कर दी है। अब इन्हें नवजीवन देने की नई पहल हुई है।
एक बार फिर चैती, कहरवा, मंगल गीत, सुग्गा गीत, वैवाहिक गारी, माड़व गीत व हल गीत लोगों के अंदर भारतीय संस्कृति को परखने की ऊर्जा प्रदान करेंगे। भारतीय संस्कृति में समाहित ऐसे पारंपरिक गीतों को आधुनिकता का रंग देने की पहल राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन ने की है। इसे अमली जामा पहनाने के लिए पहले चरण में प्रदेश के 35 जिलों की महिला समूहों को चयन होगा। कुछ का किया जा चुका है। ग्राम स्तरीय समितियों को मिलाकर उन्हें पारंपरिक गीतों के प्रशिक्षण के लिए तैयार किया जाएगा। एक जिले में 100 महिलाओं के समूह को शादी विवाह, मुंडन व तिलक जैसे समारोह में गाए जाने पारंपरिक गीतों का प्रशिक्षण दिया जाएगा। इसके लिए उस गांव या जिले की बुजुर्ग महिलाओं से गीतों का संग्रह कराया जाएगा। संग्रहीत गीतों को संगीत से सजाने के लिए आधुनिक वाद्य यंत्रों का भी इंतजाम मिशन की ओर से कराया जाएगा।
क्षेत्रवार मिलेगा प्रशिक्षण
प्रशिक्षण के लिए क्षेत्रवार पारंपरिक गीतों को चुना जाएगा। पूर्वांचल, बुंदेलखंडी व अवधी क्षेत्र को बांटा जाएगा। राजधानी के साथ ही उन्नाव, हरदोई, सोनभद्र, चंदौली, इलाहाबाद, मिर्जापुर, सीतापुर, बलरामपुर व अंबेडकर नगर समेत रा'य ग्रामीण आजीविका मिशन वाले सभी 35 जिलों में इसका प्रशिक्षण दिया जाएगा। प्रशिक्षण प्राप्त महिलाओं के समूह को आयोजन में बुलाने के एवज में शुल्क का निर्धारण भी किया जाएगा। मिलने वाली रकम समूह की सभी महिलाओं को बराबर-बराबर बांटी जाएगी।
क्या कहते हैं अधिकारी
राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के निदेशक एनपी सिंह ने बताया कि लुप्त हो रही परंपराओं और गीतों को आधुनिकता का रंग देने का प्रयास है। इसके माध्यम से न केवल भारतीय संस्कृति के बारे में आने वाली पीढ़ी को बताया जा सकेगा बल्कि महिलाओं को अपने गांव में ही आर्थिक लाभ भी होगा। प्रशिक्षण के लिए मिशन की ओर से समूहों को आर्थिक मदद भी दी जाएगी।