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    चीन के मेंथा क्रिस्टल बाजार की चमक फीकी करेगा भारत, होगा कई राज्यों में विस्तार

    By Divyansh RastogiEdited By:
    Updated: Tue, 18 Aug 2020 03:27 PM (IST)

    आपदा के बीच क्रिस्टल के बड़े वैश्विक बाजार में कदम बढ़ाने की तैयारी। भारत विश्व का सबसे बड़ा मेंथॉल उत्पादक देश बना। उत्तर प्रदेश से शुरू हुई मेंथा बेल्ट।

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    चीन के मेंथा क्रिस्टल बाजार की चमक फीकी करेगा भारत, होगा कई राज्यों में विस्तार

    लखनऊ [रूमा सिन्हा]। मेंथा के सबसे बड़े उत्पादक भारत की निगाहें अब चीन के अधिपत्य वाले सगंध उद्योग से जुड़े मेंथा क्रिस्टल और इससे जुड़े अन्य आवश्यक उत्पादों के बड़े वैश्विक बाजार पर हैं। ऐसा संभव हुआ है काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च (सीएसआइआर) से संबद्ध संस्थान सीमैप के सतत शोध प्रयासों से, जिसने दो दशक के भीतर भारत को मेंथा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बना दिया। देश में कभी जो मेंथा ऑयल आयात किया जाता था, आज भारत अकेले वैश्विक मांग की 80 फीसद आपूर्ति करने लगा है। यही वजह है कि अब चीन के क्रिस्टल बाजार को कड़ी टक्कर देने की तैयारी है, जिसे वह भारत से ही आयात ऑयल के जरिये तैयार कर दुनिया में दबदबा कायम किए हुए था।

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    चीन को 55 हजार टन ऑयल का निर्यात

    एसेंशियल ऑयल एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष योगेश दुबे बताते हैं कि मेंथा क्षेत्र में भारत ने चीन को घुटनों पर ला दिया है। इस साल भारत से लगभग 55 हजार टन ऑयल चीन को निर्यात किया गया। चीन इस मेंथा ऑयल का उपयोग क्रिस्टल व अन्य उपयोगी उत्पाद बनाने में करता है, जिनकी अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमत 200 से लेकर 25 हजार रुपये तक है। यानी चीन हमसे कच्चा माल लेकर मोटा मुनाफा अन्य देशों से कमाता है। ऐसा नहीं कि भारत में क्रिस्टल बनाने की कोशिश नहीं हुई मगर अभी तक मात्रा काफी कम है। बदलते हालात में जब हमारी चीन से दूरियां बढ़ रही हैं और आत्मनिर्भर भारत का नारा बुलंद है। ऐसे में भारतीय उद्योगों के लिए मेंथा क्रिस्टल का एक बड़ा बाजार खुल गया है। जरूरत इस बात की है कि बजाय मेंथा ऑयल के निर्यात के यहां से सीधे मेंथा क्रिस्टल तैयार कर दुनिया भर में एक्सपोर्ट किए जाएं। उद्यमी अरङ्क्षवद नंदा बताते हैं कि बीते कई वर्षों से वह इसके लिए आवाज उठाते रहे हैं। अब यह अवसर मिला है, जिस पर हम काम कर रहे हैं। सरकार को चाहिए कि वह चीन को कच्चा माल भेजना बंद करे, जिससे उसकी कमर खुद ब खुद टूट जाएगी। वह बताते हैं कि क्रिस्टल बनाना कोई रॉकेट साइंस नहीं। कई उद्योग यह काम कर भी रहे हैं। नंदा कहते हैं कि हमें शोध पर भी जोर देना होगा, जिससे अधिक उपज वाली नई वैरायटी विकसित की जा सकें। सरकार मेंथा पर 1.5 प्रतिशत मंडी शुल्क लेती है। इस धनराशि को यदि रिसर्च में खर्च किया जाए तो किसानों के साथ-साथ उद्योगों को बड़ी राहत मिल सकती है।

    सिंथेटिक मेंथा क्रिस्टल पर लगे रोक

    मेंथा कारोबार से जुड़े लोग आत्मनिर्भर भारत के नारे से उत्साहित हैं। वे कहते हैं कि जर्मनी और मलेशिया से निर्यात किए जाने वाले ङ्क्षसथेटिक मेंथॉल पर भी रोक लगाई जानी चाहिए। ओरल केयर जैसे टूथपेस्ट के क्षेत्र में काम करने वाली मल्टीनेशनल कंपनियां इसका आयात करती हैं। भारत व साउथ ईस्ट एशिया में मलेशिया से इसकी आपूर्ति की जाती है। यदि इस पर प्रतिबंध लग गया तो भारत में बड़े पैमाने पर प्राकृतिक मेंथॉल क्रिस्टल की खपत होगी। हालांकि, नंदा को डर है कि जिस तरह से अफ्रीका व साउथ ईस्ट एशिया में मेंथा की तरफ रुझान बढ़ रहा है, वैसे में यदि सरकार ने दो कदम आगे बढ़कर इस क्षेत्र में काम नहीं किया तो हो सकता है कि भारत इस पर अपना वर्चस्व गवां दे।

    सिम उन्नति से बदलेगा परिदृश्य

    एरोमा मिशन के तहत सीमैप की ओर से सगंध पौधों की खेती के लिए किसानों को सहयोग दिया जा रहा है। उत्तर प्रदेश मेंथा के क्षेत्र में अग्रणी है। इसका श्रेय सीमैप के वैज्ञानिकों को जाता है। संस्थान ने मेंथा की ऐसी कई बेहतरीन किस्में विकसित की हैं, जो उच्च गुणवत्ता का ऑयल देती हैं। यही नहीं, मेंथा के क्रिस्टल बनाने की तकनीक भी विकसित की है। निदेशक डॉ. प्रबोध कुमार त्रिवेदी बताते हैं कि एरोमा मिशन के तहत मेंथा की खेती का जबरदस्त विस्तार किया गया है। वैज्ञानिक डॉ. वेंकटेश और उनकी टीम ने 100 से 110 दिन में तैयार होने वाली नई वैरायटीे सिम-उन्नति विकसित की है, जो 15 से 20 प्रतिशत अधिक मेंथॉल देती है। उत्तर प्रदेश में विशेष रूप से लखनऊ, बाराबंकी, लखीमपुर, पीलीभीत, शाहजहांपुर, रायबरेली, रामपुर, मुरादाबाद, बरेली, बदायूं आदि में किसान मेंथा की खेती करते हैं। अब मेंथा का विस्तार बिहार समेत अन्य राज्यों तक हो गया है।