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Independence Day 2022: मडियांव छावनी में राजा दिग्विजय ने अंग्रेजों को किया था पराजित, पढ़ें रोचक किस्सा

Independence Day 2022 राजा दिग्विजय सिंह ने मड़ियांव छावनी में अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए थे। राजा की दहशत से अंग्रेज छावनी छोड़कर फरार हो गए। बाद में अंग्रेजों ने रेजीडेंसी में शरण ली। चिनहट और रेजीडेंसी के युद्ध में भी राजा ने फिरंगियों की ईंट से ईंट बजाई थी।

By Vrinda SrivastavaEdited By: Published: Mon, 15 Aug 2022 07:29 PM (IST)Updated: Mon, 15 Aug 2022 07:29 PM (IST)
Independence Day 2022: मडियांव छावनी में राजा दिग्विजय ने अंग्रेजों को किया था पराजित, पढ़ें रोचक किस्सा
Independence Day 2022: राजा दिग्विजय ने अंग्रेजों को किया था पराजित.

लखनऊ, जागरण संवाददाता। राजा दिग्विजय सिंह ने मड़ियांव छावनी में अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए थे। राजा की दहशत से अंग्रेज छावनी छोड़कर फरार हो गए। बाद में अंग्रेजों ने रेजीडेंसी में शरण ली। मड़ियांव क्रांति के बाद चिनहट और रेजीडेंसी के युद्ध में भी राजा दिग्विजय सिंह ने फिरंगियों की ईंट से ईंट बजाई थी।

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1857 स्वतंत्रता संग्राम में जिन वीर सपूतों ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया, उनमें राजा दिग्विजय सिंह का नाम पूरे सम्मान से लिया जाता है। राजा ने पंद्रह वर्ष की आयु में राजगद्दी संभाली। बाद में 27 वर्ष की आयु में देश की स्वतंत्रता के लिए इस क्रांति में कूद पड़े।

आसपास के इलाके में आज भी आल्हा गायक उनकी वीरता की गाथा सुनाते हैं। महोना तालुका के उमरिया गांव में राजा दिग्विजय सिंह का किला था। उनके पूर्वज 14वीं सदी में मालवा के धारनगर से आए थे। पिता राजा विश्राम सिंह व भाई पृथ्वीपाल सिंह थे। पत्नी राजरानी लखीमपुर के धौरहरा राजघराने से थीं। राजा की कोई औलाद नहीं थी।

कुर्सी लखनऊ जिले की एक तहसील थी, जिसके 45 गांव राजा के अधिकार में थे। 1857 में तालुका के बहुत से गांव ब्रिटिश हुकूमत ने अपने कब्जे में कर लिए थे। इससे नाराज राजा अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध के मौके की तलाश करने लगे। 20 मई को वह कुर्सी तहसील गए, वहां मेरठ क्रांति व दिल्ली में बहादुर शाह जफर के गद्दीनशीन होने की जानकारी मिली।

मालगुजारी जमा किए बिना वह वापस अपने उमरिया लौट आए। उन्होंने महोना के कानून गो को गिरफ्तार कर छीने गए गांवों पर वापस कब्जा करने में लग गए। 30 मई को मड़ियांव छावनी में हमला कर कई अंग्रेज अफसरों के बंगले जलाने के बाद उनकी संपत्तियां जब्त कर लीं। अंग्रेजों को खदेड़ते हुए रेजीडेंसी में कैद होने के लिए मजबूर कर दिया।

अपनी दो तोप और चार सौ लड़ाकों के साथ उन्होंने लोहे वाले पुल पर मोर्चा डाल दिया। वहीं से रेजीडेंसी पर गोलाबारी शुरू की। हमले में चीफ कमिश्नर हेनरी लॉरेंस घायल हो गया। हमले के कुछ समय बाद उसकी मौत हो गई। आज भी यह तोपें रेजीडेंसी में रखी हुई हैं। पहली दिसंबर को बख्शी का तालाब की लड़ाई में कई अंग्रेजों को घायल किया।

दो दिसंबर को अंग्रेजी फौजों ने राजा के किले पर कब्जा कर लिया, लेकिन राजा दिग्विजय सिंह घाघरा नदी पार कर बेगम हजरत महल से जा मिले और युद्ध करते हुए नेपाल चले गए। एक वर्ष बाद वह फिर से लौटे, फिर अज्ञातवास में चले गए। वर्ष 1865 में रसोइया शत्रोहन प्रसाद की गद्दारी की वजह से राजा को सीतापुर से गिरफ्तार कर लिया गया।

कालापानी की सजा : 25 अक्टूबर 1865 में राजा को आजीवन कारावास के लिए कालापानी की सजा सुनाई। इसके लिए उन्हें 25 जनवरी 1877 को सेलुलर जेल भेज दिया गया। 1906 में राजा ने अपना दम तोड़ दिया।

राजा के विरुद्ध मुकदमे : मड़ियांव छावनी की क्रांति में अंग्रेज की हत्या, महोना थाना फूंकने, यूरोपियन कैदियों की हत्या, गांव पर कब्जा करने, टिकैतगंज बाजार पर धावा बोलने, चिनहट की लड़ाई में सहयोग करने सहित कई मामलों में आपराधिक मुकदमे चलाए गए।


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