अयोध्या के इस अनोखे बैंक में रुपये नहीं राम नाम का होता है लेखा-जोखा, सीताराम नाम जमा है हजार करोड़
अयोध्या में छावनी पीठाधीश्वर महंत नृत्यगोपालदास की प्रेरणा से नाम बैंक की स्थापना सन 1970 के कार्तिक कृष्ण पक्ष एकादशी को हुई। उसी समय से पुनीतरामदास नाम बैंक के मैनेजर की भूमिका में हैं। बैंक में 15 हजार करोड़ सीताराम नाम जमा हो चुके हैं।
अयोध्या [रघुवरशरण]। यह अनोखा बैंक है। यहां रुपये का नहीं राम नाम का लेखा-जोखा होता है। बैंक का नाम है, सीताराम नाम बैंक। यह बैंक शीर्ष पीठ मणिरामदास जी की छावनी के उसी भव्य आगार में है, जिसकी श्वेत-संगमरमरी दीवारों पर वाल्मीकि रामायण के सभी 24 हजार श्लोक उत्कीर्ण हैं। ...तो नाम बैंक की पूंजी भी कम नहीं हैं। बैंक में 15 हजार करोड़ सीताराम नाम जमा हो चुके हैं। छावनी पीठाधीश्वर महंत नृत्यगोपालदास की प्रेरणा से नाम बैंक की स्थापना सन 1970 के कार्तिक कृष्ण पक्ष एकादशी को हुई। उसी समय से पुनीतरामदास नाम बैंक के मैनेजर की भूमिका में हैं।
पुनीतरामदास बताते हैं कि बैंक की शुरुआत नाम लेखन की कॉपी देने के साथ हुई। इसे मां सीता और श्रीराम का चमत्कार कहेंगे कि बैंक के संपर्क में जो भी आया, वह नाम लेखन की मुहिम में शामिल होता गया। किसी ने एक कॉपी लिखी, किसी ने चार कापी लिखी। बैंक की ओर से उपलब्ध कराई जाने वाली नाम लेखन की कॉपी 64 पेज की होती है और इसमें सीताराम लेखन के लिए 21 हजार तीन सौ खाने होते हैं। यानी किसी ने एक कॉपी लिखी, तो उसने 21 हजार तीन सौ बार सीताराम की आवृत्ति की। हालांकि शुरू से ही बैंक का सदस्य उन्हें ही बनाए जाने का नियम रहा है, जिन्होंने कम से कम पांच लाख बार नाम लेखन किया हो।
बैंक के ऐसे 27 हजार से अधिक सदस्य हैं, जो देश के विभिन्न प्रांतों से लेकर विदेशों में बसे भारतवंशी हैं। नाम बैंक कॉपियां देने के साथ लिखीं कापियां जमा भी करता है और सदस्यों को पास बुक भी देता है। बैंक के रजिस्टर में संबंधित व्यक्ति का नाम-पता के साथ लिखित आराध्य नाम लेखन की संख्या का रिकार्ड मेनटेन किया जाता है। सदस्यों की पास बुक में भी उनके लिखित नाम लेखन की संख्या तिथिवार दर्ज होती है। यह व्यवस्था बनाए रखने के लिए पुनीतरामदास के दो सहयोगी भी हैं, जो सामान्य बैंक की तरह इस अनूठे बैंक में भी अपनी सेवा देते नजर आते हैं। कोई रजिस्टर भर रहा होता है, तो कोई प्रचुर मात्रा में आने वाली कॉपियों की गिनती कर रहा होता है। शुरुआती कुछ दशकों तक नाम बैंक को प्रभावी बनाए रखने के लिए श्रद्धालुओं को प्रोत्साहित करने की जरूरत पड़ी। मणिराम छावनी सेवा ट्रस्ट की ओर से सर्वाधिक नाम लेखन जमा करने वाले तीन श्रद्धालुओं को सालाना सम्मानित भी किया जाता रहा। बाद में ऐसे प्रयास के बिना ही नाम बैंक की पूंजी में तीव्र वृद्धि होती गई।
गत आठ-नौ महीनों में ही जमा हुए अरबों आराध्य नाम- रामलला के पक्ष में सुप्रीम फैसला और उसके बाद रामजन्मभूमि पर मंदिर निर्माण शुरू होने के बीच बैंक में नाम लेखन की आवक कई गुना बढ़ गई है। आठ-नौ महीनों के दौरान ही बैंक में अरबों आराध्य नाम जमा हो चुके हैं।
जगह की कमी पड़ने पर सरयू में अर्पित की जाने लगीं- भक्ति के लिपिकरण का अभियान व्यापक होने के साथ ही बैंक में जमा होने वाली कॉपियों को सहेजने की चुनौती खड़ी होने लगी। कॉपियां इतनी संख्या में आने लगीं कि वाल्मीकि रामायण भवन का प्रशस्त प्रखंड छोटा पड़ने लगा। ढाई दशक पूर्व बैंक संचालन से जुड़े संतों ने गहन विमर्श के बाद कॉपियों को पुण्यसलिला सरयू में विसर्जित करने का निर्णय किया। प्रत्येक वर्ष सावन के उत्तरार्द्ध में पुण्यसलिला का प्रवाह जब शिखर पर होता है, तब नाम लिखित कापियां सरयू की गोद में अर्पित की जाती हैं। इसके बावजूद वाल्मीकि रामायण भवन के कोनों-किनारों पर नाम लिखित कॉपियों का बराबर अंबार नजर आता है।
अति आह्लादकारी है यह अनुभव : पंजाबी बाबा- मणिरामदास जी की छावनी सेवा ट्रस्ट के सचिव कृपालु रामदास पंजाबी बाबा कहते हैं, सर्वोच्च सत्ता की नाम व्याप्ति सतत-शाश्वत प्रक्रिया है और इसमें सहयोगी बनने का अनुभव अति आह्लादकारी है।