बीते पांच साल में दो गुना हुआ वायु प्रदूषण
जहरीली हवा सेहत के लिए गंभीर : भारतीय विषविज्ञान अनुसंधान संस्थान (आइआइटीआर) द्वारा जारी हालिया एंवायरमेंटल रिपोर्ट।
लखनऊ, जेएनएन। नया लखनऊ कहे जाने वाले गोमती नगर में हवा काफी प्रदूषित है। बड़ी-बड़ी गगनचुंबी अट्टालिकाओं के बीच जहां यह इलाका शहर को नया चेहरा दे रहा है वहीं दूषित हवाएं लोगों का दम फुला रही हैं। यह स्थिति तब है जबकि यहां राम मनोहर लोहिया व जनेश्वर जैसे बड़े-बड़े पार्क हैं जो स्वच्छ प्राणवायु के सिलिंडर का काम करते हैं।
दरअसल चौतरफा हो रहे निर्माण कार्य व जाम इलाके में प्रदूषण की असल वजह हैं। भारतीय विषविज्ञान अनुसंधान संस्थान (आइआइटीआर) द्वारा जारी हालिया एंवायरमेंटल रिपोर्ट पर नजर डालें तो निलंबित कणकीय पदार्थ (एसपीएम) 10 की मात्र मानक 100 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर के मुकाबले लगभग डेढ़ से दो गुना तक पहुंच गई है। वहीं पीएम 2.5 यानी अति नन्हे कण भी मानक 60 माइक्रो ग्राम प्रति घन मी. के मुकाबले अधिक मिले हैं। खास बात यह है कि बीते पांच सालों के दरम्यान प्रदूषण की मात्र में ज्यादा अंतर नहीं आया है।
बढ़ रहे हैं सांस संबंधी रोग
लगातार प्रदूषित हवा में सांस लेना बाशिंदों की सेहत पर भारी पड़ रहा है। बुजुर्गो, वयस्कों के साथ-साथ स्कूली बच्चों की सेहत भी दांव पर है। अस्थमा, ब्रांकाइटिस, एलर्जिक राइनाइटिस जैसी दिक्कतों में इजाफा हो रहा है। केवल सांस से जुड़ी समस्याएं ही नहीं चर्म रोग भी बढ़ रहे हैं।
खुद भी लें जिम्मेदारी
बढ़ते प्रदूषण का सबसे ज्यादा प्रभाव क्षेत्रीय निवासियों पर पड़ता है। कारण यह है कि उन्हें ऐसे वातावरण में 24 घंटे रहना होता है। इसलिए अपने इलाके के प्रदूषण को कम करने के लिए पहल उन्हें ही करनी होगी। सड़कों व बाजारों में वाहन आड़े-तिरछे न खड़े करें। इससे जाम की स्थिति पैदा होती है। जाम को वायु प्रदूषण के लिए मुख्य वजह माना गया है। संभव हो तो हर घर की सामने पेड़ लगाएं। पार्को को हरा-भरा रखें। कूड़ा जलाने वालों को उससे होने वाले नुकसान के बारे में जागरूक करें।
प्रशासन रखें ध्यान
- खोदाई के बाद जल्द से जल्द गड्ढों को भरा जाए।
- जरूरत पड़ने पर पानी का छिड़काव हो।
- जहां तक संभव हो लूज टाइल्स बिछाए जाएं व घास लगाई जाए।
क्या है पीएम 10 : हवा में मौजूद ऐसे नन्हें धूल के कण जिनका आकार 10 माइक्रो ग्राम प्रति घन मीटर या उससे कम हो।
क्या है पीएम 2.5 : यह हवा में मौजूद ऐसे नन्हें कण होते हैं जो सांस के जरिए सीधे फेफड़ों में पहुंच कर पैबस्त हो जाते हैं।
यह है अनिवार्य
- शिकायतें दर्ज करने के लिए ऑनलाइन पोर्टल विकसित किया जाए।
- प्रमुख शहरों में सड़कों की सफाई के लिए चरणबद्ध रूप से मैकेनाइच्ड वैक्यूम क्लीनिंग की व्यवस्था की जाए।
- निर्माण गतिविधियों से उत्पन्न धूल के नियंत्रण के लिए आवश्यक प्रबंध किए जाएं। उल्लंघन करने वाले पर दंडात्मक कार्यवाही की जाए।
- निर्माण सामग्री को निर्धारित स्थलों पर ढंककर रखा जाए।
- निर्माण सामग्री ले जाने वाले वाहनों सामग्री ढंककर ले जाएं।
- पेड़ों से झड़ने वाली पत्तियों की कम्पोस्टिंग की जाए।
- ऐसे डीजी सेट जो निर्धारित मानकों के अनुरूप स्थापित न हो के विरुद्व कार्यवाही की जाए।
- ट्रैफिक मैनेजमेंट सुधारा जाए।