'मुझे लगता था कि कोरस जी सबसे बड़े सिंगर हैं'
बॉलीवुड अभिनेता पंकज त्रिपाठी व लोक गायिका मेघा श्रीराम ने साझा की पुराने दिनों की याद, कदम संस्था की ओर से शहर में गांव: यू ही इधर-उधर की कार्यक्रम का आयोजन
लखनऊ (जागरण संवाददाता)। जब मैं छोटा था तो मुझे लगता था कि कोरस जी सबसे बड़े सिंगर हैं। हर कैसेट में उनका नाम कई बार लिखा होता था। सात साल बाद जब मैं पटना छात्र संघ में सक्रिय था, तो वहां के एक सभागार में नाटक हुआ। मैं भी गया। वहां पहुंचा तो पता चला कि सीन से पहले कोरस आएंगे। मैं बहुत खुश था। अपने दोस्त से पूछा कि क्या कोरस जी पटना शिफ्ट हो गए हैं। लेकिन दोस्त ने कोई जवाब नहीं दिया और मुझे चुप करा दिया। थोड़ी देर में चार लोग आए और गाने लगे। मैंने पूछा इसमें कोरस जी कौन हैं, तो आयोजक ने बताया कि चारों कोरस है। फिर बाद में उन्होंने मुझे बताया कि कोरस किसी व्यक्ति का नाम नहीं समूह गायन को कहते हैं। यह बातें जब राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त बॉलीवुड अभिनेता पंकज त्रिपाठी ने कही, तो सभी श्रोता हंस पड़े।
मौका था कदम संस्था की ओर से शनिवार की शाम मॉल एवेंयू स्थित लेबुआ रिसॉर्ट में आयोजित 'शहर में गांव: यूं ही इधर उधर की' का। कार्यक्रम में आए अभिनेता पंकज त्रिपाठी व लोक गायिका मेघा श्रीराम डाल्टन ने अपने गांव में गुजारे पुराने दिनों की याद ताजा की। उनके साथ पटकथा लेखक तकी इमाम ने एक के बाद एक सवाल किए। बातचीत के बीच-बीच में मेघा श्रीराम ने लोकगीतों का गुलदस्ता पेश कर समां बांध दिया। एक सवाल के जवाब में पंकज त्रिपाठी ने कहा कि एक दिन जब अभिनय का सफर पूरा हो जाएगा तो गांव लौट जाएंगे। पुराना किस्सा सुनाते हुए कहा कि जब बड़े भाई की शादी हुई तो काफी कुछ सामान मिला। पहली बार टेपरिकार्डर घर आया था। उसके साथ कई सारे फिल्मों की कैसेट भी थी। यह 1986 की बात हैं मैं उस समय 11 साल का था। पंकज ने गांव के विकास और वहां की समस्याओं को बयां करते हुए कहा कि सड़क तुम अब पहुंची हो गांव, जब सारा गांव शहर जा चुका है। लोक गायिका मेघा ने बनारस में बिताए दिनों पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि मैं बनारस में रहकर भी ज्यादा कुछ सीख नहीं सकी। मेरा पूरा समय विश्वविद्यालय की छात्र क्रांति में बीतता था। मैंने उप्र, बिहार व झारखंड में लोकगायन की शिक्षा ली और कई प्रस्तुतियां दी, फिर हुनर के बाजार मुंबई शिफ्ट हो गई। जब भी मुंबई में अकेली होती अपने वतन की बहुत याद आती थी। मेघा ने अवधी लोक गीत रद्यु बरसंग जाओ अब न अवध मे रहबे व पनिया भरन गयो सहित कई लोक गीतों को गुनगुनाकर श्रोताओं की तालियां बटोरीं। कार्यक्रम का संचालन कर रहे तकी इमाम ने कहा कि लखनऊ से जाने के बाद यहां की ईद और दीवाली की शाम सबसे ज्यादा याद आती थी। इस मौके पर विलायत जाफरी, तारिक कमर व भूपेश राय सहित कई लोग शामिल रहे।