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प्रासंगिक : शाइस्तगी कॉट एंड बोल्ड पास, एक मैच ने लखनऊ की शराफत की परतें उधेड़ दीं

इस एक मैच ने लखनऊ की शराफत की परतें उधेड़ दीं। इस मैच ने सिद्ध कर दिया कि लखनऊ महज हैसियत जताने का शहर बन कर रह गया है।

By Dharmendra PandeyEdited By: Published: Sun, 11 Nov 2018 03:44 PM (IST)Updated: Mon, 12 Nov 2018 10:50 AM (IST)
प्रासंगिक : शाइस्तगी कॉट एंड बोल्ड पास, एक मैच ने लखनऊ की शराफत की परतें उधेड़ दीं
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चूंकि सिपाहियों का ऐसा रौब चल नहीं सकता था तो उन्होंने बेहतर रास्ता निकाला। लखनऊ के ग्रामीण क्षेत्र के एक थाने के सिपाहियों ने 1500 रुपये वाले 500 टिकट ऑनलाइन खरीदे और फिर उन्हें पांच-पांच हजार में ब्लैक कर दिया। यहां बात हो रही है चार नवंबर को भारत और वेस्ट इंडीज के बीच लखनऊ में खेले गए टी 20 क्रिकेट मैच की।

इस एक मैच ने लखनऊ की शराफत की परतें उधेड़ दीं। इस मैच ने सिद्ध कर दिया कि लखनऊ महज हैसियत जताने का शहर बन कर रह गया है।

अब थोड़ा पहले चलते हैं, नवाबों के लखनऊ में-

एक बार एक साहब किसी के यहां खाने पर गए। उनके लिए बड़े प्यार से बड़ी खूबसूरत प्याली में बालाई लायी गई। मियां ने एक चम्मच मुंह में रखा और रखते ही उनका मुंह बन गया। मेहमान ने तिरछी नजर से मेजबान को देखा और मेजबान ने देखा उस नौकर को जिसने बालाई यूं पेश करने की हिमाकत की थी। मेहमान ने फिर दूसरा चम्मच न उठाया। मेहमान के जाते ही मेजबान ने नौकर को नौकरी से फुर्सत दे दी। भला क्यों? क्योंकि नौकर ने बालाई में दानेदार चीनी डाली थी जबकि कायदा था पिसी चीनी का। चीनी पिसी होती तो खाते समय मुंह से कड़ कड़ की आवाज न आती और मेहमान-मेजबान को शर्मिंदगी न होती। यह अदा थी लखनऊ की जहां खाना खाने का भी अपना अदब था, शऊर था।

बहरहाल, अब तो उस दौर की कल्पना भी अपराध है लेकिन, ऐसा भी नहीं होना चाहिए कि शहर का सारा ताकतवर अमला एक स्टेडियम को बंधक रखने दौड़ पड़े। वह भी उस सरकार में जिसका खेल मंत्री चेतन चौहान जैसा बड़ा खिलाड़ी रहा हो। हाल यह था कि एक मंत्री अपने बेटे को बॉल ब्वाय बनाने के लिए ताकत लगाए हुए थे।

सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन के मुताबिक किसी भी मैच के पास उस स्टेडियम की कुल दर्शक क्षमता के केवल दस प्रतिशत तक दिए जा सकते हैं। कोर्ट का यह भी निर्देश है कि पास पाने वालों के नाम बीसीसीआइ की वेबसाइट पर डाले जाएंगे। इस सख्ती के कारण ही इंदौर तथा मुंबई में वानखेड़े स्टेडियम ने मैच कराने से मना कर दिया था। दर्शकों को स्टेडियम तक पहुंचाने में भी स्थानीय प्रशासन बिल्कुल फेल हो गया। ग्रीन पार्क में गाड़ी बड़े आराम से भीतर तक जाती है लेकिन यहां तो मीलों पहले से वह जाम लगा कि हजारों दर्शक मैच शुरू होने के आधे घंटे बाद स्टेडियम पहुंच सके।

जैसे कानपुर और ग्रीन पार्क एक दूसरे के पूरक हैं, वैसे ही कुछ वर्षों बाद खेल प्रेमियों के बीच इकाना और लखनऊ भी जाने जाएंगे। शर्त यह है कि यहां नियमित बड़े मैच होने चाहिए।

...और यह तभी होगा जब फोकस खेल पर होगा।  


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