मैनपुरी योजना सफल होती तो कांप जाता ब्रिटेन का सिंहासन Lucknow News
लघु फिल्म निर्माता शाह आलम की पुस्तक बागियों की अमरगाथा का संस्मरण।
लखनऊ [आशुतोष मिश्र]। भारतीय स्वतंत्रता के इतिहास में मैनपुरी षडयंत्र के नाम से दर्ज यह योजना अगर फलीभूत हुई होती तो ब्रिटेन का शाही सिंहासन डगमगा गया होता। क्रांतिकारियों के संगठन मातृवेदी ने 1918 में अंग्रेजी हुकूमत को उखाड़ने के लिए एक साथ 12 जिलों के कलेक्टर और एसपी को मौत के घाट उतारने की योजना बनाई थी, लेकिन ऐन वक्त पर दलपत सिंह की मुखबिरी ने न सिर्फ योजना पर पानी फेरा, बल्कि आजादी के 11 दीवानों को असंख्य अमानवीय यातनाओं से भरी कालकोठरी में धकेल दिया।
इस योजना के पीछे मंशा थी कि इंग्लैंड को भारतीयों के गुस्से का अहसास कराया जाए और उन्हें हिंदुस्तान छोड़ने के लिए सोचने पर विवश किया जाए। योजना कामयाब होने से पहले मुखबिरी की भेंट चढ़ गई। फिर यातनाओं का दौर शुरू हुआ। मैनपुरी के जसराना तहसील के कुढ़ी गांव (अब फिरोजाबाद जिला) में जन्मे गोपीनाथ, मैनपुरी के चंदीकरा गांव के सिद्धगोपाल चतुर्वेदी, बेवर के कढ़ोरी लाल, कानपुर के रोशनाई गांव के फतेह सिंह आदि साथियों के साथ खुद को दी जा रही यातनाओं का जिक्रऔरैया के मुकुंदी लाल गुप्ता ने पत्र में किया था। बेड़ियों में जकड़े उन लोगों को हथकड़ियों से एक साथ बांध दिया जाता था। रात 11 बजे गिनती होती थी। उसी समय सफाईकर्मी कनस्तरों में पेशाब आदि करा ले जाता था। इसके बाद अगर पेशाब लगे तो तसलों में करना पड़ता था। सुबह इन्हीं तसलों में खाना परोसा जाता था। इसके बाद भी ये शूरवीर टूटे नहीं।
गुमनाम रहे इन बलिदानियों को नमन.. : मैनपुरी केस की सजा काटकर निकले मुकुंदीलाल भारत छोड़ो आंदोलन में शामिल हुए और सात साल नौ माह के लिए फिर कैद कर लिए गए। सिद्धगोपाल चतुर्वेदी पांच साल कठोर कारावास में रहे। गोपीनाथ सात वर्ष सश्रम कारावास से छूटने के बाद निरंतर क्रांति की च्वाला भड़काने में जुटे रहे। मैनपुरी केस में आलीपुर पट्टी के दम्मीलाल पांडेय ने सात साल की नारकीय सजा भोगी तो प्रभाकर प्रभाकर पांडेय पांच साल कैद में रहे। इसके बाद भी दोनों क्रांति पथ पर चलते ही रहे। कानपुर के रोशनाई गांव निवासी फतेह सिंह इस केस में गिरफ्तार किए गए लोगों में सबसे कम उम्र 20 वर्ष के थे। इन्हें भी पांच साल की सश्रम सजा हुई थी।
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