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Ram Mandir Bhumi Pujan: अब मनेगी असली दिवाली, खुद को गौरवांवित महसूस कर रहीं पुरावेत्ता डॉ. सुधा मलैया

Ram Mandir Bhumi Pujan राम के अस्तित्व की प्रमाणिकता स्थापित करने वाले पुराविज्ञानी की 40 सदस्यीय टीम में शामिल थीं मध्यप्रदेश के दमोह की पुरातत्वविद डॉ. सुधा मलैया।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Wed, 05 Aug 2020 09:55 AM (IST)Updated: Wed, 05 Aug 2020 10:45 AM (IST)
Ram Mandir Bhumi Pujan: अब मनेगी असली दिवाली, खुद को गौरवांवित महसूस कर रहीं पुरावेत्ता डॉ. सुधा मलैया
Ram Mandir Bhumi Pujan: अब मनेगी असली दिवाली, खुद को गौरवांवित महसूस कर रहीं पुरावेत्ता डॉ. सुधा मलैया

अयोध्या, (प्रहलाद तिवारी)। राममंदिर भूमिपूजन की शुभ घड़ी में रामनगरी में राम के अस्तित्व की प्रमाणिकता स्थापित करने वाले इतिहासकार भी मुदित हैं। उन्हें खुशी है कि उनके शोध कार्य अदालती साक्ष्य के रूप में काम आए। हालांकि, रामकाज में लगे अधिकांश पुराविज्ञानी दिवंगत हो चुके हैं, लेकिन 40 सदस्यीय टीम में शामिल मध्यप्रदेश के दमोह की पुरातत्वविद डॉ. सुधा मलैया उमंग व उत्साह से प्रफुल्लित हैं। जिसका इंतजार उन्हें वर्षों से था, अब वह घड़ी आने जा रही है। इस ऐतिहासिक पल की साक्षी बनने के लिए वह मध्यप्रदेश से रामनगरी आ चुकी हैं।

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कारसेवकपुरम में डॉ. सुधा मलैया से मुलाकात हुई तो उनकी खुशी सहज ही झलक पड़ी। उन्होंने कहा कि नौ नवंबर 2019 को देश के पुरुषोत्तम को सर्वोत्तम न्याय मिला था। कोर्ट के इस फैसले के रूप में भारतीय अस्मिता, परंपरा व विरासत के साथ न्याय हुआ। अब पांच अगस्त को राममंदिर के भूमिपूजन पर स्वतंत्र भारत की असली दिवाली होगी। रामकाज में अपने योगदान को लेकर वह गौरवान्वित महसूस करती हैं। कहती हैं कि हम उदार हैं, सहिष्णु हैं, पर अब हम अपनी अस्मिता को लेकर सजग हुए हैं। सनातन धर्म की यह ध्वज पताका अब युगों तक अक्षुण्ण रहेगी। उनका मानना है कि राममंदिर के भूमिपूजन के साथ सनातन धर्म की पुनस्र्थापना का मार्ग भी प्रशस्त होगा।

मलैया का खोजा प्रमाण बना दस्तावेज छह दिसंबर 1992 को बाबरी ढांचा गिरा तो डॉ. सुधा मलैया ने कई शिलालेखों के फोटो खींचे थे। उन्होंने 12वीं सदी के विष्णु हरि अभिलेख (लगभग पांच फुट लंबे व दो फुट चौड़े बलुआ पत्थर पर अंकित पंक्तियां) को कैमरे में कैद किया था। संस्कृत भाषा में लिखा यह स्तंभ 11 वीं शताब्दी में श्रीराम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के वक्त लगा था। उसको अदालत में साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया गया, लेकिन अंकित अक्षर पढऩे में न आने के कारण वह वर्ष 1996 में न्यायालय के आदेश पर दोबारा रामनगरी आई थीं। डॉ. सुधा मलैया बताती हैं कि 18 जून 1992 में समतलीकरण के दौरान 40 अवशेष मिले थे।


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