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हिंदूवादी छवि के संगीत पर रासुका कहीं मुस्लिम वोट बैंक को सियासी मैसेज तो नहीं?

लखनऊ। मुजफ्फरनगर हिंसा में शासन-प्रशासन की चूक की बात अब मुख्यमंत्री से लेकर डीजीपी तक मान रह

By Edited By: Published: Wed, 25 Sep 2013 09:26 AM (IST)Updated: Wed, 25 Sep 2013 09:30 AM (IST)
हिंदूवादी छवि के संगीत पर रासुका कहीं मुस्लिम वोट बैंक को सियासी मैसेज तो नहीं?

लखनऊ। मुजफ्फरनगर हिंसा में शासन-प्रशासन की चूक की बात अब मुख्यमंत्री से लेकर डीजीपी तक मान रहे हैं। अब जब बात दंगे के दोषियों पर कार्रवाई की आ रही है तो भी सरकार चूकती ही नजर आ रही है। इतने बड़े दंगे के आरोपी दो विधायक बड़े आराम से जमानत पा जाते हैं, जबकि एक पर रासुका लगा दी जाती है। राजनीतिक हलकों में भाजपा विधायक संगीत सोम की गिरफ्तारी के गहरे सियासी मतलब निकाले जा रहे हैं।

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दरअसल, मुजफ्फरनगर के दंगे ने प्रदेश की सपा सरकार के सियासी आधार पर तगड़ी चोट की है। यूपी में मुसलमानों के मजबूत समर्थन के बूते केंद्र में दावेदारी मजबूत करने की तैयारी में जुटी सपा को इस दंगे के बाद मुस्लिमों का जैसा गुस्सा झेलना पड़ा, वह निश्चित रूप से उसके लिए खतरे की घंटी है। मुजफ्फरनगर के शरणार्थी कैंपों में अखिलेश मुर्दाबाद के नारे सपा के सियासी समीकरण को हिलाने वाले वाकये के तौर पर देखा जा रहा है। लिहाजा अब सियासी डैमेज कंट्रोल का अभियान तेज कर दिया गया है। सबसे जरूरी शायद नाराज मुसलमानों को सकारात्मक संदेश देना है। ऐसे में संगीत सोम पर रासुका निश्चित रूप से सपा प्रबंधन की मुश्किलें एक हद तक आसान करेगा।

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वे आजाद हैं, इन पर रासुका

दंगा भड़काने के 16 दोषियों में से अब तक मात्र तीन ही पकड़े गए। बाकी नेता न सिर्फ खुलेआम घूम-फिर रहे हैं, बल्कि वरिष्ठ भाजपा नेता हुकुम सिंह तो विधानसभा की कार्यवाही तक में शिरकत कर चुके हैं। इसी प्रकार बाकी राजनेता और खाप चौधरी भी अपनी जगह बेफिक्र हैं। सोम समेत जिन तीन विधायकों को पिछले दिनों गिरफ्तार किया गया, उनमें भी दो के खिलाफ पुलिस सबूत ही नहीं दे पाई और वे बड़े आराम से जमानत पा गए। जबकि सोम की जमानत अर्जी पर सुनवाई से पहले ही प्रशासन ने उन पर रासुका ठोक दी।

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संगीत पर ही निशाना क्यों?

संगीत सरधना से भाजपा विधायक रहते हुए क्षेत्र में न सिर्फ सक्रिय थे, बल्कि हिंदुत्ववादी संगठनों के साथ लगातार गोकशी और अन्य मामलों को लेकर क्षेत्र में बेहद मुखर रहे हैं। हाल ही में मेरठ के नंगलामल में हुए फसाद पर भी उनके तेवर आक्रामक थे। सोम हिंदुत्व की मोदी ब्रांड राजनीति के माकूल चेहरे के तौर पर उभर रहे हैं। सपा आलाकमान को स्थानीय नेतृत्व से भी सोम की सक्रियता की खबरें पहले से ही मिलती रही थीं। सियासी पंडितों का मानना है कि दंगे की आड़ में सोम पर शिकंजा कसकर सरकार ने एक तीर से दो निशाने भी साधे हैं। एक तो भाजपा पर दंगे भड़काने के आरोपों को पुख्ता करना और दूसरे एक उग्र हिंदूवादी नेता पर सख्त कार्रवाई कर मुसलमानों के जख्मों पर मरहम लगाना। मतलब कि संगीत पर कार्रवाई कानूनी कम, सियासी ज्यादा लग रही है। आरोपों में घिरे आजम खां और अमीर आलम जैसे सत्तापक्ष के नेताओं पर चुप्पी भी सियासी संदेश दे रही है। इसी प्रकार तमाम सुबूतों के बावजूद सपा नेता राशिद सिद्दीकी पर कार्रवाई को लेकर आंखें मूंदना भी शायद सियासी मजबूरी ही है।

दंगे भड़काने के आरोपी हुकुम सिंह जैसे वरिष्ठ नेता, सईदुज्जमां और कादिर राना जैसे मजबूत मुस्लिम चेहरों के साथ-साथ खाप चौधरियों पर भी आंख मूंदने के पीछे का कारण साफ दिख रहा है। हुकुम की गिरफ्तारी जहां सरकार की किरकिरी करा सकती है, वहीं सईदुज्जमां या कादिर जैसे नेताओं पर शिकंजा पहले से ही नाराज मुस्लिम समुदाय को और खफा कर सकता है। इसी प्रकार खाप चौधरियों को गिरफ्तार कर सरकार जाटों के आक्रोश को और हवा भी नहीं देना चाहती। डीजीपी देवराज नागर ने मेरठ में बातों-बातों में यह इशारा भी दे दिया कि हुकुम, जमां या खाफ चौधरियों पर हाथ नहीं डाला जाएगा। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष डा. लक्ष्मीकांत वाजपेयी का तर्क है कि संगीत सोम की राजनीतिक सक्रियता से सपा नेताओं के कई बड़े हितों का नुकसान हुआ। अब उन पर रासुका लगवाकर खीझ उतारी जा रही है। दंगे का आरोप तो आजम पर भी है, लेकिन उनकी गिरफ्तारी तो दूर, रिपोर्ट तक दर्ज नहीं हो रही है। जनता सरकार का यह सियासी खेल बखूबी समझ रही है।

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