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राजधानी में दसवीं मोहर्रम का जुलूस 'यौमे-आशूरा' निकला

रंग-बिरंगे ताजिये लेकर निकाला गया जुलूस। जगह-जगह भारी पुलिस फोर्स रही तैनात।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Fri, 21 Sep 2018 01:56 PM (IST)Updated: Fri, 21 Sep 2018 08:38 PM (IST)
राजधानी में दसवीं मोहर्रम का जुलूस 'यौमे-आशूरा' निकला
राजधानी में दसवीं मोहर्रम का जुलूस 'यौमे-आशूरा' निकला

लखनऊ(जेएनएन)। पुलिस मुस्तैदी के बीच राजधानी के पुराने इलाके में 10वीं मोहर्रम 'यौमे-आशूरा' का जुलूस निकाला गया। रंग-बिरंगे ताजिये लेकर जुलूस निकाला गया। चारो तरफ हुसैन की याद में मातम की आवाजें गूज उठी। हर अजादार मातम-ए-हुसैनी का सोगवार था। इस दौरान जगह-जगह भारी पुलिस फोर्स तैनात रही। जवानों ने कई रूटों पर मार्च करके हालात का जायजा भी लिया।

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जुलूस विक्टोरिया स्ट्रीट से अकबरी गेट, नक्खास व बिल्लौचपुरा होता हुआ गिरधारी सिंह इंटर कालेज, मंसूर नगर तिराहा शिया यतीम खाना होता हुआ दरगाह हजरत अब्बास पहुंचा। इस दौरान अजादारों ने मातम कर करबला के शहीदों को पुरसा दिया।

क्यों मनाया जाता है मोहर्रम
मोहर्रम के महीने में इस्लाम धर्म के संस्थापक हजरत मुहम्मद साहब के छोटे नवासे इमाम हुसैन और उनके 72 साथियों को इराक के बयाबान में जालिम यजीदी फौज ने शहीद कर दिया था। हजरत हुसैन इराक के शहर करबला में यजीद की फौज से लड़ते हुए शहीद हुए थे।

ताजिया  निकालना
आशुरा के दिन सुन्नी समुदाय का एक पंथ जुलूस की शक्ल में ताजिया निकालता है। ताजिया बांस, कागज, स्टील, लकड़ी और चांदी से बनाया जाता है। ताजिया इमाम हुसैन की कब्र की नकल होता है। ताजिये का जुलूस इमामबाड़ा से सुबह के समय निकलता है और कर्बला (हर शरह में कर्बला नाम का एक स्थान होता है।) में पहुंचकर खत्म हो जाता है। कर्बला में ताजिये को दफना दिया जाता है। यह कार्यक्रम सुबह में शुरू होकर शाम तक समाप्त हो जाता है।

इलाज में आगे आया हुसैनी ब्लड डोनर क्लब
प्रत्येक वर्ष मुहर्रम के दौरान होने वाले खंजरों के मातम में अनेक लोग घायल हो जाते हैं। हुसैनी ब्लड डोनर क्लब ने तय किया कि वे इस बार अपना रक्तदान जरूरतमंद मरीजों और घायलों के लिए करेंंगे। ऐसा उन्होंने सातवीं और आठवीं मुहर्रम के रोज किया भी। महासचिव रियाज हसन ने बताया कि क्लब से जुड़े अनेक सदस्यों ने रक्तदान किया। जबकि मुहर्रम पर शुक्रवार को क्लब के सदस्यों की टीम और एंबुलेंस जुलूस के साथ साथ चली और करीब 250 मातम करने वालों का इलाज कर उनको राहत बख्शी।


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