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High Risk Pregnancy: गर्भ में जुड़वां बच्चे -एक जिंदा, दूसरा मरा-डॉक्‍टरों के आगे चैलेंज Lucknow News

लखनऊ के डफरिन अस्पताल में पहला केस चार माह से गर्भ में मृत पांच माह का बच्चा। जल्‍द होगी डिलीवरी।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Sun, 08 Dec 2019 10:04 AM (IST)Updated: Mon, 09 Dec 2019 07:11 AM (IST)
High Risk Pregnancy:  गर्भ में जुड़वां बच्चे -एक जिंदा, दूसरा मरा-डॉक्‍टरों के आगे चैलेंज Lucknow News
High Risk Pregnancy: गर्भ में जुड़वां बच्चे -एक जिंदा, दूसरा मरा-डॉक्‍टरों के आगे चैलेंज Lucknow News

लखनऊ, जेएनएन। 26 वर्षीय महिला गर्भवती होने पर काफी खुश थी। डॉक्टरों ने पहले जांच में जुड़वा बच्चों की पुष्टि की। शुरुआत में दोनों सेहतमंद रहे। वहीं पांच माह पर एक की मौत हो गई, जबकि दूसरा अब नौ माह में पहुंच चुका है। डफरिन अस्पताल में यह पहला केस आया है। ऐसे में डॉक्टर अब प्रसव कराने की तैयारी कर रही हैं।

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राजधानी निवासी 26 वर्षीय महिला अप्रैल में गर्भवती हुई। उसने डफरिन अस्पताल में पंजीकरण कराया। एएनसी चेकअप हुए। डॉक्टरों ने गर्भ में दो बच्चों की पुष्टि की। जुड़वा बच्चा सुनकर ससुराल से लेकर मायके तक से महिला को बधाई मिलने लगीं। घर की बुजुर्ग जच्चा-बच्चा के सेहत के नुस्खे देने लगे। वहीं पांचवें माह पर जांच हुई। इसमें अल्ट्रासाउंड रिपोर्ट में एक बच्चे की हार्ट बीट नहीं मिली। डॉक्टरों ने एक बच्चे को मृत घोषित कर दिया। ऐसे में महिला खुद व दूसरे बच्चे के स्वास्थ्य को लेकर चिंतित हो गई। लिहाजा, डॉक्टरों ने उसे ढांढस बंधाया। प्रमुख अधीक्षका डॉ. नीरा जैन ने गर्भवती को भर्ती कर इलाज शुरू किया।

पेट में चार माह से मरा, नौ माह का जिंदा बच्चा

डॉ. नीरा जैन के मुताबिक गर्भवती में एक बच्चा पांच माह पर मृत हो गया। वह चार माह से पेट में ही है। वहीं दूसरा बच्चा अब नौ माह का हो चुका है। उसके प्रसव का समय आ गया है। यह हाईरिस्क पे्रग्नेंसी का केस है। 10 दिन तक भर्ती कर महिला को गुरुवार को डिस्चार्ज कर दिया गया। उसे प्रसव की तारीख 30 दिसंबर दी गई है। मगर, 12 दिसंबर को महिला को बुलाया गया है। ऐसे में दोबारा चेकअप कर प्रसव का निर्णय लिया जाएगा। इस तरह के वह अब तक छह केस कर चुकी हैं, वहीं डफरिन में पहला केस है।

क्या कहना है एक्सपर्ट का

लोहिया संस्थान की स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉ. मल्विका के मुताबिक जुड़वा बच्चों वाली 100 में से तीन गर्भवती के एक बच्चे की मौत हो जाती है। इसे फीटस पेपिरेसियस कहते हैं। इसका कारण एक बच्चे के प्लेसेंटा में डिफेक्ट होना, उसमें ब्लड सप्लाई न होना, जेनेटिक डिफेक्ट से उसका विकास न होना है। यह भ्रूण सूखकर अंदर चिपक जाता है। मगर दूसरा बच्चा फिर भी स्वस्थ रहता है। कारण दोनों अलग-अलग एम्नियॉटिक सैक होते हैं। प्रसव के समय दोनों बाहर निकाल दिए जाते हैं।   

डॉ नीरा जैन ने कहा कि कभी कभी शुरुआत में ही गर्भ में पल रहे जुड़वां बच्‍चों में से एक की मौत हो जाती है। वहीं कुछ मामलों में गर्भ में चार या पांच महीने के बच्‍चे होकर भी मृत्‍यु हो जाती है। ऐसे में अगर दूसरा बच्‍चा स्‍वस्‍थ्‍य है तो उसे फुल टर्म पर ही डिलीवर किया जाता है। वहीं अगर कुछ मामलों में गर्भवती को किसी तरह की दिक्‍कत होती है तो प्री टर्म डिलीवरी या सिजेरियन भी कराया जा सकता है। जुड़वा बच्‍चे अगर अलग अलग सेक में है तो ऐसे मामले में अगर एक भ्रूण की मौत हो जाती है तो मां को किसी तरह के सेप्टिक की संभावना नहीं होती है। इस केस में महिला का सिजेरियन किया जाएगा।   

आइयूडी के भी हैं मामले 

डॉ नीरा जैन ने बताया कि इंट्रा यूटेराइन डेथ यानि आइयूडी में सिंगल बच्‍चे की मौत में तुरंत डिलीवरी कराने की जरूरत नहीं रहती है। ऐसे में नार्मल डिलीवरी कराने की कोशिश की जाती है। मरीज को समझाते हैं नार्मल है, सायकोलॉजिकल प्रॉब्‍लम होती है कि अगर बच्‍चा मर गया है तो मां भी मर जाएगी। फुल टर्म में अकेला बच्‍चा होता है तो उसे जल्‍द से जल्‍द डिलीवरी कराकर निकाल देते हैं। 


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