Move to Jagran APP

Ayodhya : रामलला मंदिर निर्माण के साथ श्रीराम जन्मभूमि परिसर में सहेजनी होगी त्रेतायुगीन धरोहर

अयोध्या की पौराणिकता विवेचित करते ग्रंथों के वर्णन के आधार पर विवेचनी सभा ने रामनगरी की 84 कोसीय परिधि में जो 148 शिलालेख लगवाए उनमें से 43 अकेले रामकोट क्षेत्र में थे।

By Umesh TiwariEdited By: Published: Thu, 11 Jun 2020 09:44 PM (IST)Updated: Thu, 11 Jun 2020 11:37 PM (IST)
Ayodhya : रामलला मंदिर निर्माण के साथ श्रीराम जन्मभूमि परिसर में सहेजनी होगी त्रेतायुगीन धरोहर
Ayodhya : रामलला मंदिर निर्माण के साथ श्रीराम जन्मभूमि परिसर में सहेजनी होगी त्रेतायुगीन धरोहर

अयोध्या [रघुवरशरण]। 70 एकड़ में विस्तृत श्रीराम जन्मभूमि परिसर में रामलला की जन्मभूमि के अलावा अनेक त्रेतायुगीन अनेक धरोहर हैं। इनकी पुष्टि जीर्ण-शीर्ण टीलों के साथ उस शिलालेख से होती है, जिसे सन 1902 में एडवर्ड तीर्थ विवेचनी सभा की ओर से लगवाया गया था। अयोध्या की पौराणिकता विवेचित करते रुद्रयामल, स्कंदपुराण एवं विष्णु पुराण जैसे ग्रंथों के वर्णन और विशद स्थलीय शोध के आधार पर विवेचनी सभा ने रामनगरी की 84 कोसीय परिधि में जो 148 शिलालेख लगवाये, उनमें से 43 अकेले रामकोट क्षेत्र में थे।

loksabha election banner

श्रीराम जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण के लिए मुकर्रर 70 एकड़ भूमि रामनगरी के इसी रामकोट क्षेत्र में है और इस 70 एकड़ के परिसर में ही विवेचनी सभा के शिलालेख से सज्जित ऐसे दर्जन भर के करीब स्थल हैं, जिनसे युगों बाद भी भगवान राम के समय की गवाही बखूबी बयां होती है। इनमें से वह कुबेर टीला तो इसी बुधवार को चर्चा में भी आ चुका है, जहां भव्य मंदिर निर्माण की कामना से मणिरामदास जी की छावनी के उत्तराधिकारी महंत कमलनयनदास ने भोले बाबा का अभिषेक किया। शास्त्रों में उल्लेख है कि युगों पूर्व धनपति कुबेर ने इस स्थल पर भगवान शिव की आराधना की थी।

श्रीराम जन्मभूमि परिसर में कुबेर टीला के अलावा भगवान राम की लंका विजय में अहम भूमिका निभाने वाले वानर वीर नल एवं नील का टीला भी संरक्षित है। एक अन्य वानर वीर गवाक्ष, जिनकी स्मृति चुनिंदा शास्त्रों तक सिमट कर रह गयी है, उनकी विरासत यहां गवाक्ष के नाम से लगे शिलालेख से जीवंत होती है। विवेचनी सभा ने रामजन्मभूमि अथवा माता कौशल्या के भवन के ही बगल राजा दशरथ की दूसरी रानी के नाम का सुमित्रा भवन भी चिह्नित किया था।

पौराणिक स्थलों का संरक्षण-संवर्धन जरूरी : अयोध्या की पौराणिकता के संरक्षण की मुहिम चलाने वाले हनुमानगढ़ी से जुड़े संत आचार्य रामदेवदास कहते हैं, मंदिर निर्माण के साथ 70 एकड़ के परिसर में स्थित पौराणिक स्थलों के साथ संपूर्ण रामकोट क्षेत्र के पौराणिक स्थलों का संरक्षण-संवर्धन किया जाना चाहिए। उनकी मानें, तो रामजन्मभूमि पर मंदिर निर्माण का क्षण अत्यंत सुखद है, पर भगवान राम के ही समय की कई अन्य धरोहरें उपेक्षित हैं, जबकि सच्चाई यह है कि इन धरोहरों की सहेज-संभाल से रामजन्मभूमि पर बनने वाले मंदिर की आभा-प्रभा में और वृद्धि की जा सकती है।

विकसित हो पर्यटन का समृद्ध पैकेज : रामकोट क्षेत्र यदि रामजन्मभूमि और हनुमानगढ़ी-कनकभवन जैसी त्रेतायुगीन धरोहरों से गौरवांवित है, तो हनुमान जी के पिता की याद से जुड़ा केशरी टीला, जांबवान किला, द्विविध किला आदि के रूप वानर वीरों की विरासत हाशिए पर सरकती जा रही है। रामकथा मर्मज्ञ पं. राधेश्याम शास्त्री के अनुसार त्रेतायुगीन पुरास्थलों को सहेज कर रामकोट क्षेत्र को तीर्थ के साथ पर्यटन के समृद्ध पैकेज के रूप में विकसित किया जा सकता है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.